सृजित अवस्थी/ पीलीभीत: उत्तरप्रदेश का पीलीभीत जिला आज भले ही बाघों के कारण जाना जाता है. लेकिन दशकों पहले पीलीभीत की पहचान बांसुरी उत्पादक जिले के तौर पर भी है. बांसुरी कारीगरी यहां का परंपरागत कारोबार है. बांसुरी का निर्माण का सबसे प्रमुख चरण महिलाओं के बिना अधूरा है. ऐसे में कहा जा सकता है कि महिलाएं ही बांस को बांसुरी का रूप देती हैं.
बांसुरी का उत्तर प्रदेश के पीलीभीत से सदियों पुराना नाता है. सैकड़ों वर्ष पहले सूफी संत सुभान शाह ने पीलीभीत में बांसुरी कारीगरों को बसाया था. तब से यहां यह कारोबार किया जाता है. वैसे तो कारीगरी मूल रूप से पुरुषों का काम माना जाता है. लेकिन, महिलाओं के हाथ लगे बिना इस बांसुरी के सुर अधूरे रह जाएंगे. यहां रहने वाले तमाम मुस्लिम परिवार आज भी अपने पुश्तैनी काम के रूप में बांसुरी उद्योग चला रहे हैं.
बांसुरी बनाने की पूरी प्रक्रियासबसे पहले लंबे बांस को बांसुरी के आकार के हिसाब से काटा जाता है. कटाई के बाद बांस की छिलाई की जाती है. फिर बांसुरी में सुरों के लिए गर्म सलाखों से छेद किया जाता है. आखिर में बांसुरी के ऊपरी सिरे पर डॉट लगा कर उसे अलग-अलग रंगों से रंगा जाता है. इसके बाद, बांस से बजाने योग्य बांसुरी बन पाती है.
महिलाएं ही देती हैं बांस के टुकड़े को सुरबांसुरी बनाने की सबसे महत्तवपूर्ण प्रक्रिया उसमें सुर देने की ही होती है. वहीं इस काम को केवल महिलाएं ही करती है. इसके पीछे की असल वजह पर अधिक जानकारी देते हुए पीलीभीत के वरिष्ठ पत्रकार डॉ. अमिताभ अग्निहोत्री बताते हैं कि शुरुआती दौर में तो महिलाओं को कारोबार में हांथ बंटाने के लिहाज से जोड़ा गया था. लेकिन समय के साथ साथ महिलाओं ने बांसुरी में सुर देने के कार्य में महारथ हासिल कर ली. उसके बाद से ये हुनर महिलाओं का ही बनकर रह गया. वहीं महिलाएं पीढ़ी दर पीढ़ी इस हुनर को अपनी बहू और बेटियों को देती हैं.
.Tags: Local18, Pilibhit news, Uttar Pradesh News HindiFIRST PUBLISHED : March 22, 2024, 23:35 IST
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