Risk of retinopathy increase in premature born baby nerves of eyes get damaged in this disease | समय से पहले जन्मे बच्चे में इस बीमारी का खतरा, डैमेज हो जाती हैं आंखों की नसें

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समय से पहले जन्मे (प्रीमैच्योर) शिशु को आंखों से संबंधित बीमारी होने का खतरा अधिक रहता है. सबसे ज्यादा असर शिशु की आंखों की रेटिना पर देखने को मिल सकता है. यह तथ्य लखनऊई में स्थित केजीएमयू के नेत्र और बाल रोग विभाग के साझा शोध में सामने आए हैं. शोध पत्र क्लीनिकल एपिडेमियोलॉजी एंड ग्लोबल हेल्थ में प्रकाशित हुआ है.
बता दें कि 37 सप्ताह से पहले जन्मे शिशुओं को प्रीमैच्योर की श्रेणी में रखा जाता है. इनको उपचार की जरूरत पड़ती है. दो वर्ष में बाल रोग विभाग के नियोनेटल यूनिट में 2367 शिशुओं को भर्ती किया गया. इनमें से 340 शिशुओं को शोध में शामिल किया गया.
34 सप्ताह से पूर्व जन्म नवजातों में रेटिनोपैथी की समस्या दिखीनेत्र रोग विभाग के डॉक्टरों ने इनकी जांच कराई. 34 सप्ताह से पूर्व जन्मे ज्यादातर शिशुओं का वजन दो किलो से कम था. इनमें से 18.5 फीसदी बच्चों में रेटिनोपैथी की समस्या देखने को मिली. 30 सप्ताह से पहले जन्मे शिशुओं का वजन 1250 ग्राम से कम था. ऐसे 2.4 फीसदी शिशुओं में रेटिनोपैथी की गंभीर समस्या पाई गई.
वजन बढ़ने पर बीमारी ठीक होने की संभावना बढ़ीइलाज से जिन शिशुओं का वजन तेजी से बढ़ता है, उनमें बीमारी ठीक होने की गुंजाइश बढ़ जाती है. बाकी 79.0% बच्चों में आंखों की समस्या नहीं पाई गई.
सूख जाती हैं नसेंरेटिनोपैथी में आंखों को खून पहुंचाने वाली महीन नसें क्षतिग्रस्त हो जाती हैं. बाल रोग विभाग के डॉ. एसएन सिंह का कहना है कि मधुमेह पीड़ितों में यह समस्या अधिक देखने को मिलती है चिकित्सा विज्ञान में इसे डायबिटिक रेटिनोपैथी कहते हैं. बच्चों में भी रेटिनोपैथी की समस्या देखने को मिलती है.
आंखों की खास देखभालसमय पूर्व जन्मे बच्चों की आंखों को विशेष देखभाल की जरूरत होती है. डॉक्टर की सलाह पर समय-समय पर रेटिना की जांच भी कराएं. इससे बीमारी को शुरुआत में पकड़ सकते हैं. इसका पता चलते ही एक इंजेक्शन से इलाज मुमकिन है. रेटिना को ज्यादा नुकसान पहुंचने की दशा में ऑपरेशन की जरूरत पड़ती है.



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