Revolutionary surgery at Sir Ganga Ram Hospital fixes rare internal disorder here’s how they did it | सर गंगा राम अस्पताल में अनोखी सर्जरी! एंडोस्कोपिक तकनीक से आंत और गर्भाशय की जटिल बीमारी का सफल इलाज

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Revolutionary surgery at Sir Ganga Ram Hospital fixes rare internal disorder here's how they did it | सर गंगा राम अस्पताल में अनोखी सर्जरी! एंडोस्कोपिक तकनीक से आंत और गर्भाशय की जटिल बीमारी का सफल इलाज



दिल्ली स्थित सर गंगाराम अस्पताल के डॉक्टरों ने एक बड़ी मेडिकल उपलब्धि हासिल करते हुए जटिल फिस्टुला (असामान्य आंतरिक मार्ग) का सफल इलाज किया है. डॉक्टरों ने दिल की सर्जरी में इस्तेमाल होने वाले कार्डियक ओक्लूडर फिस्टुला क्लोजर डिवाइस की मदद से दो महिलाओं के रेक्टोवेजाइनल और एंटेरोवेजाइनल फिस्टुला को बंद किया. यह तकनीक उन मरीजों के लिए एक नई उम्मीद लेकर आई है, जिनके लिए पारंपरिक सर्जरी जटिल और जोखिमभरी होती.
पहली मरीज 61 वर्षीय महिला थीं, जो गर्भाशय ग्रीवा के कैंसर के इलाज के दौरान दी गई रेडिएशन थेरेपी के बाद रेक्टोवेजाइनल फिस्टुला से पीड़ित थीं. इस समस्या के कारण मल का निकास योनि से हो रहा था, जिससे उन्हें भारी असुविधा का सामना करना पड़ रहा था. दूसरी मरीज 65 वर्षीय महिला थीं, जो छोटी आंत और योनि के बीच असामान्य संपर्क (एंटेरोवेजाइनल फिस्टुला) की समस्या से जूझ रही थीं. दोनों ही मरीज पहले कई असफल सर्जरी करवा चुकी थीं और उनके इलाज के सीमित विकल्प थे.
डॉक्टरों की टीम ने किया अनोखा इलाजइन मरीजों को गंगाराम अस्पताल के गायनोकोलॉजिक ऑन्कोलॉजी विशेषज्ञ डॉ. राहुल मोदी ने गैस्ट्रोएंटरोलॉजी विभाग के प्रमुख डॉक्टर डॉ. अनिल अरोड़ा और डॉ. शिवम खरे को रेफर किया. इस जटिल प्रक्रिया को अंजाम देने के लिए पीडियाट्रिक कार्डियोलॉजिस्ट डॉ. नीरज अग्रवाल ने भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. उन्होंने दिल की बीमारी के लिए इस्तेमाल होने वाले कार्डियक ओक्लूडर डिवाइस को इन जटिल फिस्टुला मामलों के लिए अनुकूलित किया.
मिनिमली इनवेसिव प्रक्रिया से मिली राहतडॉक्टरों ने एंडोस्कोपिक तकनीक के जरिए बिना बड़ी सर्जरी किए फिस्टुला को बंद कर दिया. इससे न केवल मरीजों की रिकवरी जल्दी हुई, बल्कि संक्रमण और अन्य जटिलताओं का खतरा भी कम हो गया. डॉ. शिवम खरे ने बताया कि कार्डियक ओक्लूडर डिवाइस का उपयोग करना एक अनूठा समाधान है, जिससे खतरा कम होता है और मरीज जल्दी ठीक हो सकते हैं. डॉ. अनिल अरोड़ा ने कहा कि यह उपलब्धि चिकित्सा विज्ञान में मल्टी-स्पेशियलिटी सहयोग की अहमियत को दर्शाती है और भविष्य में इस तकनीक से कई मरीजों को लाभ मिल सकता है.
मरीजों की जिंदगी में आई खुशहालीइस उपचार के बाद दोनों मरीजों को काफी राहत मिली. 61 वर्षीय महिला ने खुशी जताते हुए कहा कि सालों की तकलीफ के बाद अब मैं सामान्य जीवन जी सकती हूं. वहीं, 65 वर्षीय मरीज ने कहा कि अब मेरा मल त्याग पूरी तरह से सामान्य हो गया है और मैं इसके लिए डॉक्टरों की आभारी हूं.



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