रात में अकेली लौट रही थी, कुछ लोगों ने घूर, फिर गाजीपुर की सुलेखा ने तैयार ऐसी लड़कियों की फौज

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रात में अकेली लौट रही थी, कुछ लोगों ने घूर, फिर गाजीपुर की सुलेखा ने तैयार ऐसी लड़कियों की फौज

गाजीपुर: रात का वक्त था और चारों ओर सन्नाटा पसरा था. गाजीपुर की संकरी गलियों से होकर एक लड़की अकेली अपने घर लौट रही थी. रास्ते में कुछ लोग खड़े थे जो उसे घूर रहे थे और कुछ फुसफुसा रहे थे. इससे सुलेखा डरी नहीं बल्कि उन्होंने कुछ ऐसा किया जिससे कि वह ऐसी स्थितियों से निपटने के लिए मजबूत हो सकें. इसके लिए सुलेखा ने मार्शल आर्ट की राह चुनी. इस विधा को आत्मरक्षा के लिए बेहतरीन माना जाता है.

सुलेखा सिंह एक नेशनल और इंटरनेशनल मार्शल आर्ट खिलाड़ी है. जब लड़के उसे घूर रहे थे तो उसकी आंखों में डर नहीं, बल्कि आत्मविश्वास झलक रहा था. उस रात जब सुलेखा घर पहुंचीं, तो उनके मन में एक फैसला पक्का हो चुका था “अब कोई भी लड़की डरेगी नहीं, क्योंकि मैं उन्हें मार्शल आर्ट सिखाऊंगी.”

शुरुआत कहां से हुई?सुलेखा का सफर आसान नहीं था. उन्होंने गाजीपुर के लूर्ड्स कॉन्वेंट स्कूल से पढ़ाई की. वहीं से मार्शल आर्ट में रुचि जगी. जब वह 12वीं क्लास में थीं तब पहली बार उन्होंने ताइक्वांडो में कदम रखा. उस वक्त ताइक्वांडो के गुरू मिस्टर सानू से उनकी ट्रेनिंग शुरू हुई लेकिन उस समय किसी ने नहीं सोचा था कि यही लड़की एक दिन अपने जिले की बेटियों के लिए मिसाल बनेगी.

जब उन्होंने ट्रेनिंग लेनी शुरू की तब वह अकेली लड़की थी जो 50 लड़कों के बीच खड़ी थी. लोगों ने कहा “ये लड़की मार्शल आर्ट कैसे सीखेगी?” घरवालों को भी चिंता थी कि कहीं उसे चोट न लग जाए, समाज भी कहता था कि लड़कियां कमजोर होती हैं लेकिन सुलेखा ने हार नहीं मानी.

आठ बार नेशनल और इंटरनेशनल खिलाड़ी बनने का सफरसुलेखा ने अपनी मेहनत और लगन से आठ बार नेशनल चैंपियनशिप में जगह बनाई. उन्होंने भारत के अलग-अलग हिस्सों में खेला और कई मेडल जीते. उनके पास गोल्ड और सिल्वर मेडल हैं लेकिन असली खुशी उन्हें तब मिली जब उन्होंने अपनी सीख को दूसरों तक पहुंचाने का फैसला किया.

200 लड़कियों को मुफ्त में मार्शल आर्ट सिखायासुलेखा जानती थी कि समाज में लड़कियों को कमजोर समझा जाता है. इसीलिए उन्होंने न केवल खुद को मजबूत बनाया, बल्कि 200 से अधिक लड़कियों को निशुल्क मार्शल आर्ट सिखाया. आज उनके सिखाए बच्चे ज़िले, राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर खेल रहे हैं. खुशी यादव, भूमि जैसी कई छात्राएं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बना चुकी हैं.

32 स्कूलों में लड़कियों को आत्मरक्षा का पाठसुलेखा सिर्फ एकेडमी तक ही सीमित नही हैं. सुलेखा ने 32 स्कूलों में जाकर लड़कियों को आत्मरक्षा की ट्रेनिंग दी. उनका मकसद सिर्फ मार्शल आर्ट सिखाना नहीं था, बल्कि हर लड़की के अंदर आत्मविश्वास भरना था. सुलेखा कहती हैं “जो लड़कियां डरती हैं, उनके लिए मार्शल आर्ट सबसे अच्छा तरीका है. यह सिर्फ आत्मरक्षा नहीं, बल्कि आत्मनिर्भरता भी सिखाता है. लड़कियों को खुद पर भरोसा रखना चाहिए, क्योंकि अब वो किसी से कम नहीं हैं.”

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