मोहन प्रकाश/सुपौल. अयोध्या में प्रभु श्रीराम का भव्य मंदिर बनने का करोड़ों लोगों का सपना साकार हो रहा है. 22 जनवरी को नवनिर्मित मंदिर में प्रभु श्रीराम की प्रतिमा का प्राण प्रतिष्ठा होने जा रहा है. इसे लेकर पुरी दुनिया के सनातनियों में उत्सवी माहौल है. लेकिन इसके लिए लोगों को शुरूआत में काफी कुछ झेलना पड़ा. सुपौल सदर प्रखंड के बसबिट्टी पंचायत के वार्ड-2 निवासी ललन कामत बताते हैं कि उस समय लंबी प्लानिंग के बाद अयोध्या स्थित मंदिर तक पहुंचे थे. इस क्रम में 15 दिन तक जेल में भी रहना पड़ा था.
पहली बार में नहीं हुए सफल, जाना पड़ा था जेलउन्होंने बताया कि उस समय प्लानिंग के तहत 29 अक्टूबर 1990 को पहले सहरसा के रास्ते बनारस पहुंचे. लेकिन उत्तरप्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव की सरकार ने वहां कर्फ्यू लगा दिया और बनारस स्टेशन से ही करीब 60-70 कार सेवकों को गिरफ्तार कर सेंट्रल जेल ले गए. जहां स्थिति सामान्य होने पर 15 दिन बाद सभी को पुन: बस से बनारस स्टेशन लाकर छोड़ दिया गया.
इसके बाद हम सभी अयोध्या पहुंचे. जहां दो-तीन दिन तक घुमते रहे. लेकिन उस समय विवादित ढांचा तोड़ा न जा सका. इसके बाद हमलोग लौट आए. वे कहते हैं कि उस समय का नारा था राम लला हम आएंगे, मंदिर वहीं बनाएंगे.
दूसरी बार गोपनीय तरीके से पहुंचे थे सभीउन्होंने बताया कि दूसरी बार गोपनीय तरीके से वर्ष 1992 में बाबरी मस्जिद विध्वंस से दो दिन पहले ही अपने गांव के ही एक अन्य साथी रजनीश सिंह के साथ अयोध्या पहुंचे. वहां दिगंबर अखाड़ा में हमलोग ठहरे थे. उस समय कल्याण सिंह का आदेश था कि मस्जिद नहीं तोड़ना है. वहां राम जन्म भूमि तक पहुंचने के रास्ते में दिगंबर अखाड़ा से एक से डेढ़ किलोमीटर के रास्ते में चार-पांच बेरिकेट था.
स्थानीय प्रशासन की पूरी कोशिश थी कि वहां तक कोई नहीं पहुंचे. लेकिन, कारसेवक जोश से भरे हुए थे. जैसे-तैसे सभी वहां पहुंचे और फिर बेकाबू भीड़ ने विवादित ढांचा को तोड़ कर बगल की खाई में गिरा दिया.
.Tags: Bihar News, Local18, Supaul News, UP newsFIRST PUBLISHED : January 5, 2024, 10:05 IST
Source link