Rahul Sanghvi Cricketer: भारत में एक से बढ़कर एक ऐसे क्रिकेटर हुए जिन्हें टैलेंट होने के बावजूद टीम इंडिया में लंबे समय तक खेलने का मौका नहीं मिला. कुछ की जगह प्लेइंग-11 में नहीं बनी तो कुछ को एक या दो मैच के बाद ही बाहर का रास्ता दिखा दिया गया. उन्हीं में से एक प्लेयर राहुल सांघवी हैं. महान स्पिनर बिशन सिंह बेदी को अपना गुरु मानने वाले राहुल को हवा में बॉल उछालने के कारण ‘फ्लाइट मास्टर’ भी कहा जाता है.
1992 में मिला था खास मौका
3 सितंबर को राहुल सांघवी 50 साल के हो गए. दिल्ली और नॉर्थ जोन के लिए बड़े शानदार स्पिनर थे. उनका गेंदबाजी एक्शन खास था. गेंदों को ‘लूप’ देने की ऐसी आदत थी कि शायद ही इस गेंदबाज ने करियर के दौरान कभी सपाट गेंदबाजी की हो. दिल्ली के चुनौतीपूर्ण मैदानों पर खेलने में माहिर हो चुके राहुल के लिए 1992 में एक खास मौका आया था. तब वह 18 साल के थे और फिरोजशाह कोटला में ईरानी कप के लिए स्टैंडबाई में रखे गए, वो भी इसलिए क्योंकि मनिंदर सिंह की उंगली में हल्की चोट लगी थी. वह मैच तो राहुल को खेलने का मौका नहीं मिला लेकिन एक युवा खिलाड़ी के रूप में दिल्ली टीम के सितारों के साथ ड्रेसिंग रूम शेयर करने का मौका जरूर मिला. यह बहुत ही रोमांचक और जबरदस्त सीखने का अनुभव था जिसने राहुल सांघवी को जल्द से जल्द रणजी ट्रॉफी खेलने के लिए प्रेरित किया था. तब टी20 का जमाना नहीं था और रेड बॉल क्रिकेट हर खिलाड़ी का सपना होता था.
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1998 में राहुल ने किया डेब्यू
1994 तक आते-आते राहुल सांघवी को भारतीय अंडर-19 टीम के साथ इंग्लैंड दौरे पर जाने का मौका मिला था. वहां उन्होंने अपनी स्पिन गेंदबाजी से सभी को प्रभावित किया था. इसके चार साल बाद 1998 में राहुल का नेशनल टीम में डेब्यू हुआ और उन्हें वनडे मैचों में खेलने का मौका मिला. उन्होंने जिम्बाब्वे के खिलाफ ट्रायंगुलर सीरीज में बेहतरीन गेंदबाजी की. उसी साल शारजाह में कोका कोला कप के फाइनल में भी राहुल ने ऑस्ट्रेलियाई बल्लेबाजों को बांधने में अहम भूमिका निभाई थी.
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ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ मिला था टेस्ट में डेब्यू
इन दिनों की तरह तब भी भारतीय क्रिकेट टीम में जगह बनाना आसान नहीं था. राहुल का टीम से अंदर-बाहर होना चलता रहा. दूसरी ओर, उनका प्रयास भी लगातार जारी रहा. दो सालों में वह 10 वनडे मैच खेल चुके थे. एक बार फिर उनकी मेहनत रंग लाई और 2000-01 में उन्हें ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ टेस्ट मैच खेलने का मौका मिला. यह एक सपना पूरा होने जैसा था. वानखेड़े स्टेडियम से शुरू हुई वह बड़ी ऐतिहासिक सीरीज थी. जिसके पहले मैच में सांघवी ने वही कर दिखाया जिसकी उनसे उम्मीद थी.
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महान खिलाड़ी का लिया था विकेट
उस समय टीम की कप्तानी सौरव गांगुली कर रहे थे, जो एक स्पिनर का रणनीतिक रूप से उपयोग करना बखूबी जानते थे. सांघवी ने मैच की पहली पारी में 10.2 ओवर गेंदबाजी की और 2 ओवर मेडन फेंकते हुए 67 रन देकर 2 विकेट लिए. सांघवी के खाते में एक बहुत महत्वपूर्ण विकेट था—स्टीव वॉ का. इसके बाद उनको शेन वार्न का भी विकेट मिला.
पूरा हुआ था राहुल का सपना
भारत उस मैच को हार गया था, लेकिन बाद के दो मैचों में टीम इंडिया ने जो वापसी की उसके लिए वह सीरीज आज भी याद की जाती है. सांघवी ने इस टेस्ट मैच को एक सपना पूरा होने जैसा बताया. लेकिन यह ज्यादा समय तक नहीं चला. यह मौका भी उनके लिए स्थायी नहीं रहा और उन्हें एक बार फिर टीम से बाहर कर दिया गया. तब भारतीय क्रिकेट में युवा स्पिनर के तौर पर हरभजन सिंह का उदय हो रहा था. अनिल कुंबले अपनी जगह स्थापित थे. सांघवी सिर्फ एक ही टेस्ट खेल पाए. इसके बाद उनको टेस्ट खेलने का मौका नहीं मिला. सांघवी ने 1 टेस्ट (2 विकेट), 10 वनडे मैच (10 विकेट) खेले और फर्स्ट क्लास क्रिकेट में 95 मैचों में 271 विकेट लिए. उनके सबसे अच्छे आंकड़े 7/42 रहे. 1994-95 से 2006-07 तक का उनका करियर बताता है कि क्रिकेट सिर्फ रिकॉर्ड्स का खेल नहीं, बल्कि सपनों और संघर्षों की एक दास्तान भी है.