रिपोर्ट- सर्वेश श्रीवास्तव
अयोध्या. हिंदू धर्म में पितृपक्ष का बहुत बड़ा महत्व है. पितृपक्ष में श्रद्धा भाव के साथ अपने पूर्वजों को याद किया जाता है. धार्मिक मान्यता के मुताबिक, विधि-विधान पूर्वक पितरों का श्राद्ध करने से उनकी आत्मा को शांति मिलती है. पितृपक्ष में पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए पिंडदान और तर्पण किया जाता है, जिससे प्रसन्न होकर पूर्वज अपने कुल को सुख समृद्धि का आशीर्वाद देते हैं.
पितृपक्ष भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि से शुरू होता है. यह इस बार 10 सितंबर से शुरू हो कर 25 सितंबर तक चलेगा. कथावाचक जगतगुरु राम दिनेशाचार्य ने बताया कि पितृपक्ष का अर्थ होता है हमारे पूर्वजों केलिए विशेष माह. पितृपक्ष में प्रत्येक तिथि के अनुसार पूर्वजों का श्राद्ध किया जाता है. ब्राह्मणों को भोजन कराया जाता है और पूर्वजों के प्रति अपनी श्रद्धा स्थापित करते हैं. शरीर को पिंड कहा जाता है और हमारे पूर्वज भी पिंड हैं.
पितृपक्ष में नहीं करना चाहिए ये कार्यराम दिनेशाचार्य बताते हैं कि पितृपक्ष में कोई नए कार्य नहीं करना चाहिए. सजना और सवरना नहीं चाहिए, क्योंकि इस माह को शोक की तरह मनाया जाता है. ऐसे में पितृपक्ष में शोकाकुल का पालन करना चाहिए. पितृपक्ष में कोई नया कार्य नहीं करना चाहिए.
इसके साथ उन्होंने कहा कि पितृपक्ष में सुबह उठकर स्नान ध्यान करके अपने पूर्वजों को तर्पण देना चाहिए. तर्पण देने के साथ-साथ उनकी जो तिथि हो उसी दिन श्राद्ध करना चाहिए. कोई भोज्य पदार्थ नहीं सेवन करना चाहिए. सात्विकता के साथ जीवन यापन करना चाहिए. कोई मांगलिक कार्य नहीं करनी चाहिए. मांसाहारी भोजन का उपयोग नहीं करना चाहिए. लहसुन प्याज का भी सेवन नहीं करना चाहिए. इससे पूर्वज प्रसन्न होते हैं और अपने कुल को आशीर्वाद देते हैं.
(नोट: यहां दी गई जानकारी मान्यताओं पर आधारित है NEWS 18 LOCAL इसकी पुष्टि नहीं करता है.)ब्रेकिंग न्यूज़ हिंदी में सबसे पहले पढ़ें News18 हिंदी | आज की ताजा खबर, लाइव न्यूज अपडेट, पढ़ें सबसे विश्वसनीय हिंदी न्यूज़ वेबसाइट News18 हिंदी |Tags: Ayodhya News, Pitru PakshaFIRST PUBLISHED : September 07, 2022, 16:22 IST
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