हरिकांत शर्मा/आगरा. उत्तरप्रदेश के आगरा में एक ऐसा मंदिर मौजूद है जहां भगवान विष्णु के छठवें अवतार भगवान परशुराम (Lord Parshuram) का जन्म हुआ था. हिंदू मान्यताओं के अनुसार यहां परशुराम ने अपने पिता की आज्ञा पर अपनी मां का ही सिर काटा था. ये मंदिर त्रेतायुग से आज भी अपने होने की गवाही दे रहा है. भगवान परशुराम का ये मंदिर मौजूद है आगरा से लगभग 15 किलोमीटर दूर रुनकता में.
ऐसी मान्यता है कि भगवान विष्णु के छठवें अवतार भगवान परशुराम का जन्म आगरा से लगभग 15 किलोमीटर दूर रुनकता( Runakata) जगह पर माना जाता है. हालांकि इसके कोई ठोस साक्ष्य तो नहीं है, लेकिन शास्त्रों में इसका जिक्र जरूर मिलता है. उस समय इस जगह का नाम रुंड (सिर) कटा (काटा) था. भगवान परशुराम ने अपने पिता की आज्ञा पर अपनी मां का सिर इसी स्थान पर काटा था. इसी वजह से इसका नाम रुंड कटा सेअपभ्रंश होते-होते रुनकता हो गया.
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पिता के कहने पर परशुराम जी ने काट दिया था मां का सर
आज भी यहां के लोगों को त्रेता युग की कहानी सभीलोगों की जुबां पर चढ़ी हुई है. माना जाता है कि एक बार भगवान परशुराम के पिता ऋषि जमदग्नि यज्ञ कर रहे थे तोअपनी पत्नी रेणुका को यमुना से पानी लाने के लिए कहा. काफी देर हो जाने के बाद भी रेणुका नहीं लौटी तो उन्हें क्रोध आ गया. अपने बेटे परशुराम को बुलाया और मां के सिर को धड़ से अलग करने का आदेश दिया.
भगवान परशुराम ने अपनी मां का सिर धड़ से अलग कर दिया और अपनी मां को बचाने आने वाले भाइयों को भी मार डाला. यह दृश्य देखकर ऋषि जमदग्नि बहुत प्रसन्न हुए और परशुराम को वरदान मांगने को कहा, अगले पल ही भगवान परशुराम ने सभी को जीवित करने का वरदान मांग किया.
जहां हुई थी धर्म की लड़ाई वह है रेणुका क्षेत्र
13 सालों से मंदिर की देखरेख करने वाले महंत गोकर्ण पांडे बताते हैं इस जगह को रेणुका क्षेत्र इसलिए कहते हैं. क्योंकि यहां पर भी धर्म की लड़ाई हुई है. यहां पर भगवान परशुराम और सहस्त्रबाहु की लड़ाई हुई थी. भारत में चार जगह धर्म क्षेत्र है. उनमें से पहला कासगंज शूकर क्षेत्र, दूसरा पुष्कर धर्म क्षेत्र, तीसरा कुरुक्षेत्र और चौथा रेणुका क्षेत्र है.
ऋषि जमदग्नि, परशुराम भगवान शिव को प्रसन्न कर लाए थे अपने साथ
ऐसा माना जाता है कि भगवान परशुराम और उनके पिता ऋषि जमदग्नि भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए कैलाश पर्वत गए और वहां से अपने साथ चलने का आग्रह किया तो भगवान शिव ने दोनो को एक-एक शिवलिंग दे दिया. जब दोनों शिवलिंग को लेकर आ रहे थे तो और रुनकता से 6 किलोमीटर पहले नित्य क्रिया के लिए वह रुक गए.
शिवलिंग को भी एक ही जगह रख दिया. जैसे ही वह नित्य क्रिया से मुक्त होकर शिवलिंग को उठाने पहुंचे तो भविष्यवाणी हुई कि उनका एक नाम अचलेश्वर भी है. अब वह यही स्थापित होंगे और उनके इस जगह को कैलाश नाम से जाना जाएगा. आज भी वहां कैलाश मंदिर मौजूद है.
भगवान है सब के मंदिर के जीर्णोद्धार की जरूरत
महंत गोकर्ण पांडे बताते हैं कि इस मंदिर का जीर्णोद्धार लंबे समय से नहीं हुआ है. जीर्णोद्धार इसलिए नहीं हुआ है कि लोग मानते हैं कि भगवान परशुराम केवल ब्राह्मणों के ही भगवान हैं. लेकिन भगवान में भेदभाव कैसा? शायद यही वजह है कि इस मंदिर का जीर्णोद्धार नहीं हुआ.
ब्रेकिंग न्यूज़ हिंदी में सबसे पहले पढ़ें News18 हिंदी| आज की ताजा खबर, लाइव न्यूज अपडेट, पढ़ें सबसे विश्वसनीय हिंदी न्यूज़ वेबसाइट News18 हिंदी|Tags: Agra news, UP newsFIRST PUBLISHED : April 22, 2023, 20:43 IST
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