जौनपुर: जम्मू-कश्मीर के फेमस पर्यटन स्थल पहलगाम में हाल ही में आतंकवादियों ने हिंदुओं को चुन-चुनकर गोली मारी थी. वहीं, इस आतंकी हमले के दौरान जौनपुर निवासी अधिवक्ता सूर्यमणि पांडेय और उनकी पत्नी विजयलक्ष्मी की जान बाल-बाल बची थी. यह परिवार हमले की जगह से महज 500 मीटर की दूरी पर मौजूद था. जहां गोलियों की तड़तड़ाहट भरी आवाज सुनकर उनके होश उड़ गए थे.
आतंकवादियों ने अचानक बोला हमला
आतंकियों ने वहां अचानक हमला बोल दिया था. वहां मौजूद लोगों के अनुसार आतंकवादियों ने धर्म पूछ-पूछकर गोलियां लोगों को मार रहे थे. इस भयावह घटना को अधिवक्ता सूर्यमणि पांडेय और उनका परिवार कभी भूल नहीं पाएंगे. वहां की घटना सुनकर अभी भी वह परेशान हो जाते हैं.
धर्म पहचान कर हमला कर रहे थे आतंकवादी
सूर्यमणि पांडेय और उनकी पत्नी विजयलक्ष्मी पर्यटन के उद्देश्य से कश्मीर गए थे. वे दोनों पहलगाम की वादियों का आनंद ले रहे थे कि तभी चारों ओर अफरा-तफरी मच गई. अचानक गोलियों की आवाजें गूंजने लगीं और लोग इधर-उधर भागने लगे. उनका परिवार जिस स्थान पर मौजूद था. वहां से चंद कदमों की दूरी पर आतंकियों ने हमला किया था. उसी समय उन्हें एक घोड़े वाले ने परिवार को सतर्क किया और कहा कि आतंकवादी ऊपर हमला कर रहे हैं, और धर्म पहचान कर लोगों को निशाना बना रहे हैं.
पत्नी ने मांग से सिंदूर और माथे से बिंदी हटाई
वहीं, घोड़े वाले ने सूर्यमणि पांडेय और उनकी पत्नी विजयलक्ष्मी को सलाह दी कि तुरंत अपने धार्मिक प्रतीकों को हटा लें. इसके बाद वह और डर गए थे. इस डरावने माहौल में विजयलक्ष्मी ने मांग से सिंदूर और माथे से बिंदी हटा दी और सिर को ढक लिया था. वहीं, सूर्यमणि पांडेय ने अपने हाथ में बंधा हुआ कलावा काट दिया. दोनों ने किसी तरह साहस जुटाया और वहां से भागते हुए नीचे की ओर आए. नीचे सेना के जवानों की मौजूदगी में उन्हें राहत मिली और सुरक्षित होटल तक पहुंचाया गया.
कश्मीर की असलियत है डरावनी
आतंकवादियों द्वारा इस तरह के घटनाक्रम ने उनके परिवार को मानसिक रूप से झकझोर दिया है. सूर्यमणि पांडेय ने बताया कि उन्होंने अपनी जिंदगी में कभी इतना डर महसूस नहीं किया था. उन्हें ऐसा लगा जैसे मौत उनके सामने खड़ी हो. अब वे तय कर चुके हैं कि भविष्य में कभी भी कश्मीर नहीं जाएंगे. उनका कहना है कि कश्मीर भले ही धरती का स्वर्ग कहा जाता हो, लेकिन वहां की असलियत बहुत डरावनी है.
घटना को कभी नहीं भूल पाएंगे
यह घटना एक बार फिर से यह सोचने पर मजबूर कर देती है कि आम नागरिक, विशेषकर पर्यटक, वहां कितने सुरक्षित हैं. सूर्यमणि पांडेय और उनका परिवार भले ही सुरक्षित बच निकला, लेकिन यह अनुभव उनके जीवन में एक गहरे जख्म की तरह रह जाएगा. प्रशासन और सरकार को इस ओर गंभीरता से ध्यान देने की आवश्यकता है. ताकि भविष्य में ऐसी घटनाओं से बचा जा सके और पर्यटकों का विश्वास फिर से बहाल हो सके.