भारत में कैंसर एक गंभीर स्वास्थ्य समस्या बन चुका है, लेकिन इसका सटीक डेटा सरकार और हेल्थ एजेंसियों के पास नहीं है. एक्सपर्ट का मानना है कि अगर कैंसर को ‘नोटिफायबल डिजीज’ घोषित कर दिया जाए, तो एक सेंट्रल कैंसर डेटा सिस्टम तैयार किया जा सकता है, जिससे इलाज, रिसर्च और हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर को बेहतर बनाया जा सकता है. डॉक्टरों ने सरकार से अपील की है कि जल्द से जल्द इस पहल को लागू किया जाए, ताकि लाखों लोगों की जान बचाई जा सके.
अपोलो अस्पताल में चिकित्सा सेवा निदेशक लेफ्टिनेंट जनरल (रिटायर्ड) डॉ. बिपिन पुरी के अनुसार, नोटिफायबल डिजीज का मतलब है कि सरकार के पास पूरे देश का एक सेंट्रलाइज्ड डेटा हो, जिससे कैंसर के सही आंकड़े मिल सकें और बेहतर इलाज संभव हो. अभी तक सिर्फ इन्फेक्शियस डिजीज (संक्रामक बीमारियों) को ही नोटिफायबल माना जाता है, जैसे कोविड-19, प्लेग और हैजा. क्योंकि ये बीमारियां तेजी से फैलती हैं और महामारी का रूप ले सकती हैं. हालांकि, डॉक्टरों का मानना है कि कैंसर भी एक बड़ी स्वास्थ्य समस्या बन चुका है और इसे भी नोटिफायबल डिजीज घोषित करना बेहद जरूरी है.
90% कैंसर मरीजों का डेटा दर्ज ही नहीं होता!अपोलो कैंसर सेंटर में सर्जिकल ऑन्कोलॉजी, प्रमुख एवं वरिष्ठ सलाहकार डॉ. एसवीएस देव ने बताया कि भारत में मौजूद कैंसर मरीजों का सही आंकड़ा अभी तक पता नहीं है. मौजूदा समय में सिर्फ 10% मरीजों का ही डेटा रिकॉर्ड किया जाता है, क्योंकि हमारे पास सिर्फ हॉस्पिटल-बेस्ड रजिस्ट्रेशन सिस्टम है. ग्रामीण भारत में कैंसर के असली मरीजों की संख्या का कोई सटीक डेटा उपलब्ध नहीं है. अगर देश के सभी अस्पतालों और मेडिकल रिसर्च सेंटर को एक सिंगल प्लेटफॉर्म पर लाया जाए, तो कैंसर के असल मामलों का पता लगाया जा सकता है.
रिसर्च और हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर होगा मजबूतऑन्कोलॉजी फोरम नई दिल्ली की अध्यक्ष डॉ. गीता कदयप्रथ ने कहा कि भारत के कई इलाकों में कैंसर के मरीजों की संख्या का पता ही नहीं चलता. अगर सरकार के पास सटीक आंकड़े होंगे, तो हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर को मजबूत किया जा सकता है और कैंसर के इलाज को हर कोने तक पहुंचाया जा सकता है. 2/3 कैंसर के मामले रोके जा सकते हैं, लेकिन बिना सही डेटा के यह मुमकिन नहीं है.
तो सरकार अब तक इसे लागू क्यों नहीं कर रही?डॉ. बिपिन पुरी के मुताबिक, सरकार अभी तक सिर्फ संक्रामक बीमारियों को ही नोटिफाय करती आई है, क्योंकि ये जल्दी फैलती हैं और महामारी का रूप ले सकती हैं. अगर कैंसर को नोटिफाय कर दिया जाता है, तो सरकार को अधिक बजट और फंडिंग अलोकेट करनी होगी. इसके अलावा, डॉक्टर्स और सरकारी एजेंसियों की जवाबदेही भी बढ़ जाएगी.
क्या भविष्य में घर बैठे ब्लड टेस्ट से कैंसर का पता लग सकेगा?डॉ. एसवीएस देओ ने बताया कि ब्रिटेन में “PAN Cancer Detection Test” लॉन्च किया गया है, जो एक ऐसी होम किट होगी जिससे सिर्फ ब्लड टेस्ट से कैंसर का पता लगाया जा सकेगा. हालांकि, इसे भारतीय बाजार में आने में कम से कम 5 साल लग सकते हैं. साथ ही, AI टूल्स भी तेजी से विकसित हो रहे हैं, जो डॉक्टर्स के काम को आसान बनाएंगे, लेकिन उन्हें पूरी तरह से रिप्लेस नहीं कर पाएंगे.