हॉपकिंस मेडिसिन के अनुसार, ब्रोकन हार्ट सिंड्रोम को कार्डियोमायोपैथी या ताकोत्सुबो सिंड्रोम के नाम से भी जाना जाता है. इस बीमारी की पहचान सबसे पहले जापान में 1990 में किया गया था. यह तब होता है जब व्यक्ति अचानक से बहुत ज्यादा तनाव में आ जाता है. इससे दिल की मांसपेशियां कमजोर पड़ने लगती है.
ब्रोकन हार्ट सिंड्रोम मुख्य रूप से दो कारणों से हो सकता है- पहला इमोशनल जिसमें दुख, डर, गुस्सा, शॉक शामिल है, और दूसरा फिजिकल इसमें तेज बुखार, स्ट्रोक, सांस न आना, ब्लीडिंग, लो ब्लड शुगर शामिल है. हालांकि, इस बीमारी से ग्रस्त 30 प्रतिशत लोगों में इसका फर्स्ट स्टेज पर निदान नहीं हो पाता है. क्योंकि उनमें से कोई चीज कारक रूप में नहीं दिखायी पड़ती है.
ब्रोकन हार्ट सिंड्रोम के लक्षण
सीने में दर्दसांस लेने में कठिनाईअसामान्य रूप से पसीना आनाचक्करहार्ट बीट का बढ़ना
नोट- ये लक्षण स्ट्रेस बढ़ने के कुछ ही मिनटों या घंटों के भीतर शरीर में नजर आ सकते हैं.
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कितना खतरनाक हो सकता है ये सिंड्रोम
ब्रोकन हार्ट सिंड्रोम से मौत होने का भी जोखिम होता है. क्योंकि इसमें दिल की मांसपेशियां कमजोर पड़ने लगती है. ऐसे में तुरंत मेडिकल हेल्प न मिलने के कारण कोंजेस्टिव हार्ट फेल, लो ब्लड प्रेशर, शॉक का जोखिम बढ़ जाता है.
हार्ट अटैक और ब्रोकन हार्ट सिंड्रोम क्या अंतर है?
अधिकांश दिल के दौरे कोरोनरी धमनियों में रुकावटों और रक्त के थक्कों के कारण होते हैं, जो हृदय को रक्त की आपूर्ति करते हैं. जबकि ब्रोकन हार्ट सिंड्रोम से पीड़ित लोगों की हार्ट सेल्स एड्रेनालाईन और अन्य तनाव हार्मोन से जाम हो जाती हैं.
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ब्रोकन हार्ट सिंड्रोम का इलाज
इस बीमारी का कोई उपचार नहीं है. इससे पीड़ित लोगों का इलाज हार्ट अटैक की तरह ही किया जाता है. ब्रोकन हार्ट सिंड्रोम से पीड़ित कई लोग एक या दो महीने में पूरी तरह से ठीक हो जाते हैं. लेकिन कभी-कभी इलाज के बाद ब्रोकन हार्ट सिंड्रोम फिर से हो जाता है.