Niti Aayog Director Urvashi Prasad Suffered From Cancer: कैंसर एक दर्दनाक बीमारी है, जिसका सा्मना करना आसान नहीं होता. नीति आयोग की डायरेक्टर उर्वशी प्रसाद इस बीमारी से पीड़ित है. उन्होंने बताया कि इस बीमारी से गुजरते हुए एक एक पल बिताना कितना मुश्किल है. कैसे वो हर दिन मौत का इंतजार कर रही है, जो बेहद खौफनाक है. ये डर उन्हें डिप्रेशन की तरफ बार-बार ढकेल रहा है.
उर्वशी प्रसाद ने सुनाई दर्द भरी दास्तां
उर्वशी प्रसाद ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर लिखा, ‘ये मैं हूं, जो पिछले हफ्ते कुछ ऐसी दिख रही थी, ऑफिस में एक रेग्युलर डे के दौरान बिल्कुल ‘नॉर्मल’ और तैयार. कल रात, मैं परेशान हो गई और पूरी तरह टूटकर बिखर गई, मैं खुद से और अपने वजूद से नफरत करने लगी. मैं सिर्फ रात को अकेले खामोशी में रो सकती थी. ये कैंसर की बदसूरत असलियत है जिसके बारे में हम अक्सर बात नहीं करते. शारीरिक निशान तो दिखाई देते हैं, लेकिन मानसिक और भावनात्मक घावों का क्या? एंटी-कैंसर ट्रीटमेंट जो हमारे लिए जो सारी टॉक्सिसिटी छोड़ देते हैं, उसके बारे में क्या? सजा-ए-मौत की कतार पर खड़े एक कैदी की तरह जीना कितना मुश्किल है. ये न जानते हुए कि कौन सा स्कैन आपके अंत की खबर लेकर आएगा. यही वो है जिसके बारे में हमें बात करने की जरूरत है.’
‘मेरे कैंसर के डाइगनोसिस के बाद के पहले कुछ हफ्तों के लिए, मैं बस काम नहीं कर पा रही थी. मैं सिर्फ एक ऐसी व्यक्ति थी जो अपने न्यूनतम दैनिक कार्यों को पूरी तरह सदमे में ले जा रही थी. मैं अपने डाइगनोसिस से आगे कुछ भी नहीं सोच सकती थी, इसके था ‘मृत्युदंड’ मेरी जिंदगी का हिस्सा बन गया था.’
‘एक लेखक होने के नाते, मैं घंटों तक अपने लैपटॉप के साथ बैठकर स्क्रीन को घूरते हुए भी एक वाक्य को एक साथ जोड़ने के लिए पर्याप्त ध्यान केंद्रित नहीं कर पाती थी, इस उम्मीद में कि आखिर में कुछ क्लिक करेगा. किसी के साथ नियमित बातचीत नहीं कर पाती थी. मैं अपने सहयोगियों से उनके कार्यालयों में मिलती थी, लेकिन यह भी नहीं जानती थी कि उनसे क्या कहना है. मैं अपने कपड़े और सामान देखती थी और सोचती थी कि क्या मतलब है? क्या मैं कभी फिर से तैयार हो पाऊंगी? क्या मैं कभी फिर डांस कर पाउंगी?’
‘मुझे डिप्रेशन और खुदकुशी के ख्याल में फेंक दिया गया था. जब मैंने एंटी-डिप्रेसेंट लेना शुरू किया, तभी मैं अपने और अपने जीवन का कुछ हिस्सा वापस पा सकी. लेकिन कहानी वहीं खत्म नहीं हुई. इसके बाद कभी कोई खुशी हासिल नहीं हुई. ये एक रोजाना की मुश्किल लड़ाई है. एंटी-डिप्रेसेंट्स और एंटी-एनीवेल्टी दवाइयां भी कई दिनों तक मदद नहीं कर पाती हैं, जैसा कि कल रात मेरे मामले में हुआ था.’
This is me just last week. Perfectly “normal” & poised during a regular day at the office. Last night, I was a mess. Completely broken & shattered. I hated myself, my very existence. I could only scream & cry in the silence of the night. This is the ugly reality of cancer that we… pic.twitter.com/em3zoJX4Qo
— Urvashi Prasad (@urvashi01) December 17, 2023
‘मुझे नहीं पता कि मेरी कठिन लड़ाई कितनी देर चलेगी, लेकिन मैं इसे ऐसे किसी भी व्यक्ति के साथ एकजुटता में साझा करना चाहती हूं जो एक समान अनुभव से गुजर रहा है. मैं किसी के लिए ‘प्रेरणा’ नहीं हूं और न ही मैं बनने की इच्छा रखती हूं, मुझे बस पता है कि इंसान कितना अकेला हो जाता है जब सिर्फ आप ही अपनी खामोश चीखें सुन सकते हैं.’
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