Myth Related To Fertility: भारत में फर्टिलिटी रेट घटता जा रहा है, इसके लिए आमतौर पर मॉडर्न लाइफस्टाइल और अनहेल्दी फूड हैबिट्स को जिम्मेदार ठहराया जाता है. हालांकि कई बार परेशानी इससे कहीं बढ़कर भी हो सकती है. फर्टिलिटी एक्सर्ट्स का मानना है कपल्स में अवेरनेस की कमी को भी जिम्मेदार ठहराया जाना चाहिए. इसको लेकर हमने इनफर्टिलिटी स्पेशलिस्ट डॉ. प्राची बेनारा (Dr. Prachi Benara), बिड़ला फर्टिलिटी एंड आईवीएफ, गुरुग्राम से खास बातचीत की.
शहरों में इनफर्टिलिटी ज्यादाडॉ. प्राची के मुताबिक अर्बन एरिया में 5 में 1 कपल को फर्टिलिटी ट्रीटमेंट की जरूरत है, वहीं रूरल एरिया में 6 में से 1 को इसकी नीड है. यानी शहरी इलाकों में इनफर्टिलिटी की परेशानी ज्यादा देखने को मिल रही है. यानी भारत में तकरीबन 25 फीसदी के आसपास लोगों को फर्टिलिटी से रिलेटेड इशू है.
टैबू को मिटाना होगाभारत में फर्टिलिटी को लेकर बात करना एक टैबू है, इसलिए कोई भी कपल अपने फैमिली या फ्रेंड्स से अपनी इस परेशानी के बारे में बात करने को लेकर कंफर्टेबल नहीं हैं. उनमें से बात की जाए तो 10 में से 1 ऐसे लोग फर्टिलिटी सेंटर पर पहुंच पाते हैं.
इन अफवाहों पर न करें यकीनडॉ. प्राची बेनारा ने बताया कि फर्टिलिटी को लेकर हमें ज्यादा से ज्यादा अवेयर होना पड़ेगा, जिससे कई तरह की मिथ पर यकीन करना बंद कर पाएंगे.
मिथ 1: सिर्फ महिला में दिक्कत हैआमतौर पर माना जाता है कि कपल को बच्चा नहीं हो रहा है, तो फीमेल में गड़बड़ी है, क्योंकि उन्हें ब्लेम करना आसान है. लेकिन अगर हम वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन की मानें तो इनफर्टिलिटी का रेशियो मर्द और औरत में 50:50 का है. कई बार मेल पार्टनर को चेक ही नहीं किया जाता कि उनमें कोई प्रॉब्लम भी है, ऐसे में कंसीव करना मुश्किल हो जाता है. बेहतर है कि मेल और फीमेल दोनों ही अपनी जांच कराएं.
मिथ 2: ये सिर्फ फिजिकल इशू हैभारत में काफी लोगों को लगता है कि इनफर्टिलिटी सिर्फ फिजिकल प्रॉबलम है, लेकिन कई बार कपल्स से बात करने पर पता चलता है कि 90 फीसदी परेशानी दिमाग में चल रही होती है. ऐसे में डॉक्टर को कई मसले पर बात करनी होती है, जैसे- उनका फैमिली स्ट्रेक्चर, लाइफस्टाइल और वो कितना टाइम एक दूसरे के साथ स्पेंड कर रहे हैं वगैरह.
मिथ 3: सिर्फ स्पर्म काउंट से लगेगा मेल फर्टिलिटी का पताअगर हम 100 मर्दों का सीमेन एनालिसिस करते हैं, तो उनमें से महज 25 फीसदी नॉर्मल निकलते हैं. जब भी हम सीमेन टेस्ट करते हैं तो इसमें सिर्फ स्पर्म काउंट का पता नहीं करते, बल्कि कई दूसरे पैरामीटर्स को भी चेक करते हैं. सबसे पहले स्पर्म वॉल्यूम देखा जाता है कि इजेकुलेशन के वक्त कितना सीमेन निकल रहा है, दूसरा स्पर्म काउंट देखा जाता है, तीसरा मॉर्टिलिटी (मूविंग कैपेसिटी) देखी जाती है और आखिर में स्पर्म मॉर्फोलॉजी (शेप) पता की जाती है.
नॉर्मल स्पर्म वॉल्यूम: 1 एमएलनॉर्मल स्पर्म काउंट: 16 मिलियन प्रति एमएल से ज्यादानॉर्मल मॉर्टिलिटी: 40 फीसदीनॉर्मल मॉर्फोलॉजी: पूरे सैंपल का 4 फीसदी
मिथ 3: सिगरेट-शराब से महिलाओं को ज्यादा खतराये बात सच है कि शराब पीने से महिलाओं की फर्टिलिटी को ज्यादा नुकसान पहुंचता है, वहीं अगर स्मोकिंग की बात करें तो मर्दों में रिस्क अधिक है क्योंकि सिररेट और बीड़ी से स्पर्म काउंट में भारी गिरावट आती है.
मिथ 4: सिर्फ इरेक्टाइल डिसफंक्शन से नहीं हो पाता इंटरकोर्सकई लोगों को लगता है कि सिर्फ इरेक्टाइल डिसफंक्शन से कपल के बीच इंटरकोर्स नहीं हो पाता जिसके लिए मेल पार्टनर जिम्मेदार होते हैं, लेकिन कई बार फीमेल में वेजिनेसमस (Vaginismus) भी इसकी वजह हो सकती है, ये वो कंडीशन है जिसमें वेजाइना में जब मेल प्राइवेट पार्ट को इंसर्ट किया जाता है तो योनी अचानक से टाइट हो जाती है.
मिथ 5: आईवीएफ में स्पर्म एक्सचेंज हो सकते हैंआपको याद होगा कि साल 2019 में एक बॉलीवुड फिल्म रिलीज हुई थी जिसका नाम था गुड न्यूज़ (Good Newwz) इसमें स्पर्म एक्चेंज होकर गलत पार्टनर में इंजेक्ट हो जाता है. इस फिल्म की पॉपुलैरिटी के बाद कई कपल को लगता है कि उनके साथ भी ऐसा हो सकता है. इसको लेकर डॉ. प्राची का कहना है कि स्पर्म की सेफ्टी को कई लेयर्स में इंश्योर किया जाता है, जैसे- आईवीएफ सेंटर में ही स्पर्म डोनेट किया जाए, इसमें कपल की आईडी ली जाए, ये स्पर्म खास इंसान का है इसको लेकर दो लोग गवाह के तौर पर साइन करते हैं, सैंपल में प्रोपर बारकोडिंग की जाती है. वेजाइना में स्पर्म डालते वक्त भी दो लोगों को गवाह बनाया जाता है, ताकि गलती की गुंजाइश न रहे. इसलिए कपल्स को इस बात की फिक्र नहीं करनी चाहिए.
मिथ 6: एग फ्रीज करने पर एक्पायरी डेट भी होती हैजब एग को स्टोर किया जाता है, तो इसे सिमिलर मेडिकल कंडीशन में रखा जाता है, ऐसा अगर होता है तो अंडे को अनलिमिटेड ईयर्स तक इसे स्टोर किया जा सकता है.
मिथ 6: एग फ्रीज करने के दौरान जो केमिकल यूज होता है उससे अंडे पर असर पड़ सकता हैडॉ. प्राची का कहना है कि ऐसा कुछ भी नहीं होता, क्योंकि अगर किसी भी तरीके से हेल्दी चाइल्ड बर्थ पर इफेक्ट पड़े, तो उसे डॉक्टर यूज नहीं करते, एग प्रिजर्व करने का तरीका इतना रिफाइन है कि खतरे की गुंजाइश नहीं बचती, यानी क्वालिटी ऑफ एग पर कोई असर नहीं पड़ता.
मिथ 7: फिजिकल रिलेशन की चाहत का फर्टिलिटी से कनेक्शन हैअगर किसी मर्द या औरत को फिजिकल रिलेशन की चाहत हद से ज्यादा है, तो क्या ये माना जा सकता है कि उसकी फर्टिलिटी अच्छी होगी? इस पर डॉ. प्राची का कहना है कि इन दोनों बातों का आपस में कोई रिश्ता नहीं है. क्योंकि यौन इच्छा में इजाफा आपके सराउंडिंग्स या ऑनलाइन एक्टिविटीज की वजह से भी हो सकता है.
मिथ 8: बच्चे पैदा करने से महिला की ब्यूटी पर असर पड़ता है?कई महिलाएं इसलिए बच्चे पैदा नहीं करना चाहती है, क्योंकि उन्हें लगता है कि उससे उनका शेप खराब हो जाएगा, या वो उम्र से ज्यादा बड़ी दिखेंगी. लेकिन सच तो ये है कि बच्चे को यूं ही नेमत नहीं कहा जाता है. डिलिवरी के बाद मां की एजिंग प्रॉसेस स्लो हो जाती है, क्योंकि नेचर ने हमें ऐसा बनाया है. यानी बच्चे पैदा करना महिलाओं की सेहत के लिए अच्छा है.
फर्टिलिटी से बचने के लिए क्या करें
1. शराब और सिगरेट से तौबा कर लें2. फिजिकल एक्टिविटीज को बढ़ाएं3. हेल्दी डाइट को चुनें4. फ्रोजेन या पैक्ड फूड्स से परहेज करें5. नॉर्मल वेट मेंटेन करें6. स्टेरॉयड लेने से बचें7. कपल एक दूसरे के साथ क्वालिटी टाइम स्पेंड करें
Disclaimer: प्रिय पाठक, हमारी यह खबर पढ़ने के लिए शुक्रिया. यह खबर आपको केवल जागरूक करने के मकसद से लिखी गई है. हमने इसको लिखने में सामान्य जानकारियों की मदद ली है. आप कहीं भी कुछ भी अपनी सेहत से जुड़ा पढ़ें तो उसे अपनाने से पहले डॉक्टर की सलाह जरूर लें.