रिपोर्ट- विशाल झा
गाज़ियाबाद: दिव्यांग व्यक्ति को देखकर अक्सर मन में यह ख्याल आता है कि उनकी जिंदगी बर्बाद हो गई. अब ये जब तक जियेंगे तब तक दूसरों पर बोझ बनकर रहेंगे. मिट्टी कैफे लोगों की इस सोच पर भारी पड़ता दिख रहा है. नाम बेशक मिट्टी हो लेकिन यहां बैठने पर आपको किसी लग्जरी कैफे जैसा ही महसूस होगा. जितना ही स्वादिष्ट इस कैफे का खाना है उतनी ही प्रेरणादायक इस कैफे की पीछे की कहानी भी है.
कॉलेज की एक छात्रा की सोच ने बदल दिया सैकड़ो दिव्यांगों का जीवनयह कैफे बेंगलुरु के एक एनजीओ मिट्टी सोशल फाउंडेशन की पहल का हिस्सा है. कोविड काल के वक्त मिट्टी कैफे चर्चाओं में आया था जब इस कैफे द्वारा 60 लाख लोगों को खाना उपलब्ध कराया गया था. सोशल इनीशिएटिव फाउंडेशन की एक सामाजिक पहल के द्वारा देश भर में 35 से अधिक ऐसे कैफे संचालित हो रहे हैं जिसमें दिव्यांगजन कर्मचारियों के रूप में कार्यरत हैं.
कैफे के आउटलेट अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे, यूनिवर्सिटी और कई बड़े महानगरों में उपलब्ध हैं. इस कैफे का सपना अलीना आलम ने अपने कॉलेज के दिनों में ही देख लिया था. आज करीब 500 से भी ज्यादा दिव्यांग कैफे से सीधे जुड़े हुए हैं. अब दिव्यांग किसी पर बोझ नहीं हैं बल्कि अपने परिवार का बोझ भी अपने कंधों पर उठा रहे हैं.
CJI और राष्ट्रपति भी कर चुके हैं तारीफअलीना ने News 18 Local को बताया कि इस कैफे में जितनी भी डेकोरेशन की जाती है वो सभी दिव्यांगों के द्वारा ही बनाए हुए सामान से होती है. लोगों को कैफे का एंबिएंस काफी ज्यादा पसंद आता है. इसके अलावा जिनको गिफ्ट आइटम्स खरीदना है उसके लिए भी एक अलग सी गैलरी सभी कैफे में मौजूद रहती है जो दिव्यांगों के द्वारा ही बनाकर तैयार की जाती है.
भारत के चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया डी चंद्रचूड़ ने सुप्रीम कोर्ट में अपने जन्मदिन के दिन इस कैफे का उद्घाटन किया था. इसके साथ ही भारत की राष्ट्रपति द्रोपति मुर्मू ने भी राष्ट्रपति भवन में इस कैफे का उद्घाटन किया था. देश के तमाम दिग्गज अधिकारी भी इन कैफे कर्मियों की हिम्मत की तारीफ करते नहीं थकते हैं.
Tags: Local18FIRST PUBLISHED : August 23, 2024, 22:03 IST