Agency:News18 Uttar PradeshLast Updated:February 21, 2025, 07:09 ISTMahakumbh Mela 2025 : महाकुंभ में साधु संत लगभग 45 दिन रहकर कैसे गुजर बसर कर रहे हैं? इस पर शोध करने वाले बीए तृतीय वर्ष के अर्थशास्त्र विभाग की छात्रा कीर्ति द्विवेदी बताती हैं कि यहां पर रहने वाले साधु संतों …और पढ़ेंX
कीर्ति इलाहाबाद विश्वविद्यालयहाइलाइट्ससाधु संतों की आय का मुख्य जरिया भक्तों का चढ़ावा है.साधु संत भक्तों के ठहरने का इंतजाम करके भी रेवेन्यू जुटाते हैं.साधु संत धार्मिक वस्तुएं बेचकर भी आय अर्जित करते हैं.
रजनीश यादव/प्रयागराज: महाकुंभ हर साल बाद आयोजित होता है. यह धर्म- संस्कृति और आधात्म का समागम है. यहां पर देशभर से लाखों की संख्या में लोग पुण्य कमाने के लिए आते हैं. वहीं यहां आने वाले साधु संत व्यापारी वर्ग और कई लोग बेहतरीन इनकम करने की आस में भी रहते हैं. यहां पर आने वाले साधु संत किस प्रकार लगभग 45 दिन बिता देते हैं और कैसे अपना खर्च चलाते हैं? इस पर इलाहाबाद विश्वविद्यालय की छात्र-छात्राएं इस पर शोध कर रहे हैं. आइए जानते हैं इन सवालों के जवाब.
जीवन को गुणवत्तापूर्ण जीने और सुचारू रूप से चलने के लिए अर्थ का बहुत महत्वपूर्ण योगदान होता है. जिसके लिए आदमी दिन रात मेहनत करता है. कुंभ में आए साधु संत लगभग 45 दिन रहकर कैसे गुजर बसर कर रहे हैं इस पर शोध करने वाले बीए तृतीय वर्ष के अर्थशास्त्र विभाग की छात्रा कीर्ति द्विवेदी बताती हैं कि यहां पर रहने वाले साधु संतों आय का मुख्य जरिया भक्तों का चढ़ावा होता है.लोकल 18 से बात करती हुई कीर्ति द्विवेदी ने बताया कि यहां साधु संत अपनी इनकम जनरेट करने के लिए चढ़ावे के साथ-साथ यहां आने वाले भक्तों के ठहरने का इंतजाम करके भी रेवेन्यू जुटा लेते हैं. इसके अलावा इनका कोई बड़ा भक्त आता है तो वह बड़ा दान करके जाता है. तो वहीं कुछ संत अपने द्वारा तैयार कर की गई धार्मिक चीजों जैसे कि रुद्राक्ष का माला, तुलसी का माला और अन्य धार्मिक वस्तुएं भक्तों को उचित दाम पर देकर भी रेवेन्यू जेनरेट करते हैं
कैसे करते हैं जीवन यापन? क्या मिलती है व्यवस्था?
संगम की रेत पर देखते ही देखते जहां एक भव्य नगर बस जाता है. वहीं यहां पर लाखों संत रहकर ध्यान और तपस्या करते हैं, लेकिन इनका जीवन यापन कैसे होता है. इस पर शोध कर रहे इलाहाबाद विश्वविद्यालय के आशुतोष केसरवानी जो कि अर्थशास्त्र विभाग के बीए तृतीय वर्ष के छात्र हैं वह बताते हैं कि यहां पर रहने वाले साधु संतों का जीवन बहुत कठिन होता है. न इनको शुद्ध जल की प्राप्ति हो रही है, न बिजली की. लगभग 35 साधु संतों पर इस तरह के रिसर्च कर चुके आशुतोष बताते हैं कि यहां पर कुछ मौनी साधु हैं और कुछ गृहस्थ साधु हैं, जो महाकुंभ में केवल साधु बनते हैं. इसके बाद गृहस्थ जीवन जीने लगते हैं. जैसे कि वह कपड़े की दुकान चला लेते हैं या फिर कुछ और कमाई का जरिया ढूंढ लेते हैं. उन्होंने बताया कि जैसे यहां पर शुद्ध रुद्राक्ष की माला ₹50 से लेकर 100 रुपए तक श्रद्धालुओं को बेचा जाता है. तो वहीं मेले के अंदर यह माला ₹300 की मिलती है. इससे भी साधु संतों की कमाई हो जाती है. उन्होंने बताया कि इन 45 दिनों में साधु संतों को प्रशासन की ओर से कोई विशेष खास सुविधा नहीं मिल पाती है.
Location :Allahabad,Allahabad,Uttar PradeshFirst Published :February 21, 2025, 07:09 ISThomeuttar-pradeshमहाकुंभ में 45 दिनों तक कैसे रहते हैं साधु-संत? कैसे चलता है उनका खर्चा?