मेरठः मेरठ के एक गांव में सन् 1857 से दशहरा नहीं मनाया गया. रावण की ससुराल से अनोखी कहानी. यहां त्योहार आते ही गांव में मायूसी छा जाती है. घरों में चूल्हे नहीं जलते. मेरठ का एक गांव ऐसा है जहां के बारे में जानकर आप आश्चर्य में पड़ जाएंगे. आमतौर पर सभी त्योहारों का इंतजार करते हैं. खासतौर पर असत्य पर सत्य की जीत का पर्व दशहरा पूरे देश में और देश के बाहर भी धूमधाम से मनाया जाता है, लेकिन मेरठ के इस गांव में दशहरा के दिन घरों में चूल्हे नहीं जलते. यहां दशहरा शब्द सुनते ही लोग मायूस हो जाते हैं. इस गांव में सैकड़ों सालों से दशहरा नहीं मनाया गया.मेरठ से 30 किलोमीटर दूर गगोल गांव की ऐसी कहानी है कि आप दंग रह जाएंगे. अगर आपसे पूछा जाए कि किसी भी त्योहार को आप कैसे मनाते हैं तो आप यही कहेंगे हंसी खुशी के साथ. लेकिन मेरठ का एक ऐसा गांव है जहां दशहरा त्योहार का नाम सुनते ही सबकी हवाईयां उड़ जाती हैं. यहां तक कि दशहरा शब्द सुनते ही लोग रुअंधे हो जाते हैं. जब पूरा देश दशहरा जैसा त्योहार मनाता है तो इस गांव में मातमी सन्नाटा रहता है. जब पूरा देश असत्य पर सत्य की जीत का पर्व हर्षोल्लास के साथ मनाता है तो इस गांव के घरों में चूल्हा भी नहीं जलता. ऐसे में न्यूज़ 18 ने इस गांव का दौरा किया और इस राज को जानना चाहा कि आखिर तकरीबन अट्ठारह हजार की आबादी वाला गांव दशहरा क्यों नहीं मनाता.
गगोल गांव के लोगों का कहना है कि जब मेरठ में क्रांति की ज्वाला फूटी थी. तो इसी गांव के तकरीबन 9 लोगों को दशहरे के दिन ही फांसी दी गई थी. गांव में पीपल का वो पेड़ आज भी मौजूद है. जहां इस गांव के 9 लोगों को फांसी दी गई थी. ये बात इस गांव के बच्चे-बच्चे में इस कदर घर कर गई है कि चाहे वो बच्चा हो या बड़ा. पुरुष हो या महिला दशहरा नहीं मनाता. यही नहीं इस दिन गांव में दशहरे के दिन किसी घर में चूल्हा तक नहीं जलता. वाकई में इस गांव की परंपरा निराली है और निराला है अपने गांव के शहीदों को नमन करने का तरीका.FIRST PUBLISHED : October 12, 2024, 12:14 IST