men are equally emotional like women study claims know full story samp | महिलाओं के ऊपर से हटेगा ‘इमोशनल’ टैग, पुरुष भी नहीं होते कम, जानें क्या है पूरा मामला

admin

Share



महिलाओं को पुरुषों के जितनी आजादी पाने और बराबर अधिकार प्राप्त करने में कई सालों का संघर्ष लगा है और अभी भी ये लड़ाई नाकाफी है. मगर महिलाओं को हमेशा से एक पहलू पर पुरुषों से बहुत आगे रखा जाता रहा है और वो है ‘इमोशन’. महिलाओं को पुरुषों से ज्यादा इमोशनल (भावनात्मक) माना जाता है और इस टैग की आड़ में कई बार उनकी भावनाओं और प्रतिक्रिया को अतार्किक या गैर-जरूरी बता दिया जाता है. लेकिन मिशीगन यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने इस धारणा को तोड़ते हुए दावा किया कि महिलाएं और पुरुष दोनों बराबर ‘इमोशनल’ होते हैं. आइए इस स्टडी के बारे में जानते हैं.

ये भी पढ़ें: World Vegan Day 2021: आप भी नहीं हैं ‘शुद्ध शाकाहारी’!, ये चीज खाकर कर रहे हैं बड़ी गलती

महिलाओं के बराबर ही इमोशनल होते हैं पुरुष
मिशीगन यूनिवर्सिटी में साइकोलॉजी की U-M Assistant Professor, Adriene Beltz और उनके सहयोगियों द्वारा की गई स्टडी में दावा किया गया है कि दोनों लिंगों की तुलना करने पर सामने आया कि पुरुषों में भी महिलाओं के जितने ही भावनात्मक उतार-चढ़ाव आते हैं. हालांकि, इसके पीछे के कारण अलग-अलग हो सकते हैं. आपको बता दें कि, इस शोध में 75 दिनों तक 142 पुरुषों और महिलाओं की दैनिक भावनाओं के सकारात्मक और नकारात्मक दोनों पहलू का अध्ययन किया गया. इस रिजल्ट को सपोर्ट करने के लिए Beltz उदाहरण देते हुए कहती हैं कि किसी स्पोर्ट इवेंट के दौरान पुरुषों में होने वाले भावनात्मक उतार-चढ़ाव को ‘पैशनेट (जोशिला)’ कह दिया जाता है, मगर एक महिला के अंदर किसी इवेंट के कारण (चाहे उकसाने पर ही) हुए इमोशनल चेंज को ‘इर्रेशनल (तर्कहीन)’ बता दिया जाता है.

ये भी पढ़ें: गर्दिश में सितारे: पाकिस्तान को सिखाया सबक, सादगी से गुजारी जिंदगी और फिर पत्नी के बाद खुद भी इस बीमारी से जिंदगी हार गए थे ‘स्कूटर वाले CM’

सिर्फ हॉर्मोन के कारण महिलाओं को नहीं दे सकते हैं ‘इमोशनल’ टैग
साइंस कहता है कि महिलाओं में पुरुषों से ज्यादा हॉर्मोनल चेंज होते हैं और ये बदलाव इमोशनल चेंज भी लाते हैं. जिस कारण महिलाएं पुरुषों से ज्यादा इमोशनल होती हैं. लेकिन, इस स्टडी के शोधकर्ताओं ने कहा कि सिर्फ हॉर्मोन के कारण महिलाओं को इमोशनल टैग नहीं दिया जा सकता है. क्योंकि, बेशक हॉर्मोनल चेंज के कारण इमोशनल चेंज आता है. लेकिन इसके पीछे कई अन्य कारण भी प्रमुख हो सकते हैं.

बता दें कि Beltz ने इस स्टडी में शामिल महिलाओं को चार ग्रुप में बांटा था. जिसमें से एक ग्रुप को नैचुरल हॉर्मोनल साइकिल पर रखा गया था और बाकी तीन ग्रुप को अलग-अलग ओरल कॉन्ट्रासेप्टिव (मौखिक गर्भनिरोध) पर रखा गया था. कॉन्ट्रासेप्टिव मेथड अपनाने के दौरान महिलाओं में हॉर्मोनल उतार-चढ़ाव काफी आते हैं. लेकिन इसके बाद भी महिलाओं के चारों ग्रुप की भावनाओं में कोई प्रमुख अंतर नहीं देखा गया.

महिलाओं को इस चीज से रखा जाता था दूर
Michigan News के मुताबिक शोधकर्ता कहते हैं कि महिलाओं को ऐतिहासिक रूप से शोधों में भागीदारी से इस धारणा पर यकीन करके दूर रखा जाता था कि महिलाओं में ओवेरियन हॉर्मोन फ्लक्चुएशन (अंडाशय से निकलने वाले हॉर्मोन में उतार-चढ़ाव) इमोशन को प्रभावित करते हैं. लेकिन Beltz कहती हैं कि ये धारणा बिल्कुल भ्रामक है.

यहां दी गई जानकारी किसी भी चिकित्सीय सलाह का विकल्प नहीं है. यह सिर्फ शिक्षित करने के उद्देश्य से दी जा रही है.



Source link