Makar sankranti 2022 why khichdi offered to the idol know importance of gorakhpur gorakhnath temple nodvm

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Makar sankranti 2022 why khichdi offered to the idol know importance of gorakhpur gorakhnath temple nodvm



गोरखपुर. मकर संक्राति (Makar Sankranti 2022) के मौके पर भगवान गोरक्षनाथ को खिचड़ी चढ़ाने के लिए लाखों की संख्या में श्रद्धालु गोरखपुर आते हैं. इस बार गोरखनाथ मंदिर में मकर संक्रांति 15 जनवरी को मनाया जाएगा. आस्था का प्रतीक गोरक्षनाथ मंदिर गरीबों का प्रतिनिधित्व करता है, क्योंकि यहां पर भगवान को छप्पन भोग नहीं बल्कि खिचड़ी चढ़ाई जाती है. भगवान गोरक्षनाथ खिचड़ी में ही खुश हो जाते हैं, इसलिए मकर संक्राति के दिन लाखों की संख्या में भक्त खिचड़ी चढ़ाने आते हैं. खिचड़ी चढ़ाने आने वाले श्रद्धालुओं को लाइन से मंदिर परिसर में एंट्री मिलती है, गेट पर ही उनकी सुरक्षा जांच होती है. साथ ही इतनी ही भीड़ अन्दर जाने दिया जाता है जिससे अफरातफरी न मचे.
गेट पर महिलाओं और पुरुषों के लिए अलग-अलग लाइन लगती है. दोनों को दो गेट से प्रवेश दिया जाता हैमंदिर परिसर में प्रवेश करने के बाद श्रद्धालुओं को मेन मंदिर में जाने से पहले तीन जगहों पर रोका जाता है. सबसे पहले सुरक्षा जांच के बाद 50 मीटर आगे एक लाइन लगती है और यहां पर श्रद्धालुओं को रोका जाता है. मेन मंदिर के प्रांगण के बाहर श्रद्धालुओं को फिर रोका जाता है. मंदिर के अंदर प्रवेश करने के बाद एक बार फिर यहां से चार से पांच की संख्या में श्रद्धालुओं को छोड़ा जाता है जिससे आसानी से भक्त खिचड़ी को चढ़ा सकें. इस बार कोविड प्रोटोकाल के कारण विशेष सावधानी बरती जा रही है.
गोरक्षनाथ मंदिर का पौराणिक इतिहास 

भगवान गोरक्षनाथ को खिचड़ी चढ़ाने के बाद भक्त मंदिर की परिक्रमा कर बाहर निकलते हैं. भगवान गोरक्षनाथ को खिचड़ी चढ़ाने की परंपरा बहुत पुरानी है. मान्यता है कि त्रेता युग में गुरु गोरक्षनाथ भिक्षा मांगते हुए हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले की प्रसिद्ध ज्वाला देवी मंदिर गए. सिद्ध योगी दिखे तो ज्वाला देवी प्रकट हुईं और उन्हें भोजन के लिए आमंत्रित किया. देवी ने तरह-तरह का व्यंजन तैयार किया पर गुरु गोरक्षनाथ ने यह कहकर खाने से इंकार कर दिया कि वह तामसी भोजन नहीं करते हैं. इसलिए वो कुछ मांग कर ला रहे हैं, जिससे खिचड़ी बनेगी.
इधर गुरु गोरक्षनाथ भिक्षाटन करने के लिए निकले उधर देवी ने भोजन बनाने के लिए आग पर बर्तन में पानी चढ़ाया. गुरु गोरक्षनाथ भिक्षा मांगते हुए गोरखपुर चले आए और यहां पर भिक्षा पात्र रखकर धुनी जलाई और साधना में लीन हो गए. जिसके बाद जो भी इधर से गुजरा उनके पात्र में खिचड़ी डालता गया पर वो पात्र आजतक नहीं भरा. इस कारण भगवान गोरक्षनाथ गोरखपुर के ही होकर रह गए और इसी स्थान को अपनी तपस्थली बना डाला. इसके बाद से यहां पर साल भर श्रद्धालु भगवान गोरक्षनाथ को खिचड़ी चढ़ाते हैं पर मकर संक्राति को खिचड़ी चढ़ाने का विशेष महत्व होता है.
दूर-दूर से भक्त आते हैं खिचड़ी चढ़ाने

मकर संक्रांति के मौके पर गोरक्षनाथ मंदिर में लाखों की संख्या में भक्त खिचड़ी चढ़ाते हैं. पूर्वांचल के साथ साथ बिहार और नेपाल से  श्रद्धालु यहां आते हैं. यहां आने वाले श्रद्धालुओं का कहना है कि भगवान गोरक्षनाथ के खिचड़ी चढ़ाने और दर्शन करने से उनकी मनोकामना पूर्ण होती है इसलिए वो पूरे परिवार के साथ यहां पर दर्शनपूजन और खिचड़ी चढ़ाने आते हैं.
गोरक्षनाथ मंदिर से नेपाल का है खास रिश्ता 

ज्वाला देवी मंदिर में आज भी बाबा गोरखनाथ के इंतजार में पानी खौल रहा है. पहली खिचड़ी मकर संक्रांति के दिन तड़के गोरक्षपीठाधीश्वर चढ़ाते हैं. उसके बाद नेपाल नरेश की तरफ से आई खिचड़ी चढ़ाई जाती है और फिर उसके बाद श्रद्धालुओं के खिचड़ी चढ़ाने का सिलसिला शुरू होता है. ऐसी मान्यता है कि नेपाल राजवंश का उदभव गुरु गोरक्षनाथ के कारण हुआ था, इसलिए गुरु गोरक्षनाथ को वहां पर गुरु का स्थान हासिल है. जबतक वहां पर राजशाही रही तबतक वहां के सिक्कों पर गुरु गोरक्षनाथ के चित्र अंकित थे आज भी नेपाल में बड़ी संख्या में गुरु गोरक्षनाथ को मानने वाले श्रद्धालु हैं.

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