प्रयागराज : महाकुंभ-2025 का आगाज जूना अखाड़े की पेशवाई के साथ हो चुका है. तेरह अखाड़ों में सबसे बड़े जूना अखाड़ा के साधु-संत गाजे-बाजे के साथ प्रयागराज शहर में प्रवेश कर चुके हैं. गौरतलब है कि शिव संन्यासी संप्रदाय के जूना अखाड़ा सबसे बड़ा माना जाता है. इस अखाड़े में लाखों नागा साधु और महामंडलेश्वर संन्यासी हैं. इनमें से 5 से 6 लाख नागा साधु हैं. इस अखाड़े के संन्यासियों में पुरूष, महिला और किन्नर भी शामिल हैं. लेकिन इसमें रूस और यूक्रेन की महिला संत की जोड़ी कमाल कर रही है. इन दोनों महिला संतों को हिंदी भाषा नहीं आती.महाकुंभ में रूस की साशा और यूक्रेन की संत अंटासिया सनातन धर्म का प्रचार-प्रसार कर रही है. जूना अखाड़े से जुड़ी रूसी संत को न तो अंग्रेजी आती है और न ही हिन्दी . लेकिन, इस महिला संत की भाषा को यूक्रेन की संत अंग्रेजी में अनुवाद करती हैं. साथ ही लोगों की बात को सासा तक रूसी भाषा में पहुंचाती है, इन्होंने बताया कि साशा 25 वर्ष की उम्र में सनातन धर्म से प्रभावित होकर इससे जुड़ गई थी. 2013 के महाकुंभ में साशा और अंटासिया की दोस्ती हुई थी. हालांकि रूस और यूक्रेन में युद्ध चल रहा है लेकिन दोनों की दोस्ती पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा है.अंटासिया और साशा की दोस्तीलोकल 18 से बात करते हुए संत अंटासिया ने बताया कि साशा पिछले 25 साल से सनातन धर्म से जुड़ी हुई है. उन्होंने बताया कि साशा को अंग्रेजी और हिन्दी नहीं आती. मैं लोगों की बात को रूसी भाषा में अनुवाद करती हूँ फिर साशा के जवाब को लोगों तक अंग्रेजी में पहुंचाती हूं. खास बात यह है कि साशा को हिंदू धर्म काफी पसंद है और उनके धार्मिक झुकाव को देखते हुए हमने जूना अखाड़ा से जुड़ने का निर्णय लिया था.3 साल से चल रहा रूस-यूक्रेन में युद्धपिछले 3 साल से रूस और यूक्रेन के बीच संघर्ष चल रहा है. इसके बावजूद रूस की साशा और यूक्रेन की संत अंटासिया की जोड़ी महाकुंभ में आकर लोगों को शांति का संदेश दे रही हैं. दोनों महिला संत भारत के विचारों और संस्कृति से बहुत प्रभावित हैं. खासकर हिंदू धर्म की की शांति और अहिंसा . इसके अलावा जापान की भी संत हिंदू धर्म से प्रभावित होकर महाकुंभ 2025 में जूना अखाड़े में शामिल हुई हैं.FIRST PUBLISHED : December 17, 2024, 15:23 IST