लव जिहाद करने पर अब मिलेगी यह सजा, इलाहाबाद हाईकोर्ट के सीनियर वकील ने सब कुछ कर दिया साफ

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लव जिहाद करने पर अब मिलेगी यह सजा, इलाहाबाद हाईकोर्ट के सीनियर वकील ने सब कुछ कर दिया साफ

रजनीश यादव/प्रयागराज: उत्तर प्रदेश के विधानसभा में मानसून सत्र की शुरुआत मंगलवार को हुई और पहले ही दिन योगी सरकार ने बड़ा एक्शन लेते हुए लव जिहाद जैसे गंभीर मुद्दे पर कानून को और कठोर बनाने के लिए प्रस्ताव पास कर दिया. इस कानून की चर्चा पूरे देश में होने लगी. योगी आदित्यनाथ की सरकार ने विधानसभा में अप विरुद्ध धर्म सम परिवर्तन प्रतिषेध 2021 संशोधन विधेयक विधानसभा में पेश किया और लव जिहाद के इस बिल को विधानसभा में पास भी कर दिया. इससे इस प्रकार के अपराध करने वालों की सजा दोगुनी हो जाएगी. इस संशोधन को लेकर इलाहाबाद उच्च न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता ने पूरा कानून बता दिया.पहले और अबके कानून में क्या हुआ बदलावलोकल 18 से बात करते हुए इलाहाबाद उच्च न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता और भूत पूर्व बार काउंसिल अध्यक्ष और वर्तमान में सदस्य मेंबर ऑफ़ बार काउंसिल अमरेंद्र नाथ सिंह बताते हैं कि लव जिहाद एक धोखा प्रलोभन और दबाव के द्वारा शादी कराकर धर्म परिवर्तन करना होता है. इसके विरुद्ध 2021 में सरकार के द्वारा धर्म परिवर्तन निषेध बिल लाया गया था जिसमें धर्म परिवर्तन के विरुद्ध दंड के प्रावधान किए गए थे. इस प्रावधान में सुधार करते हुए और कठोर बनाने के लिए सरकार की तरफ से विधानसभा में संशोधन बिल पास किया गया.बताते हैं कि जहां पहले इस बिल के द्वारा 10 साल की सजा और एक लाख रुपये का जुर्माने का प्रावधान था. अब लव जिहाद करने वालों को न्यूनतम 20 साल की सजा आजीवन कारावास और 10 लख रुपए तक के जुर्माना लगाए जाने का प्रावधान कर दिया गया.उन्होंने बताया कि पहले जहां इस मामले में अग्रिम जमानत का प्रावधान था. अब इसका सेशन कोर्ट में ट्रायल के साथ ही गैर जमानती होगा. इसमें सुधार करते हुए यह भी प्रावधान किया गया कि जहां पहले इसकी शिकायत केवल पीड़ित ही कर सकता था वहीं अब किसी के संज्ञान में भी इस तरह का मामला आता है तो वह शिकायतकर्ता बन सकता है.संविधान में है यह प्रावधानलोकल 18 को अमरेंद्र नाथ सिंह ने बताया कि संविधान के मौलिक अधिकार में धर्म की स्वतंत्रता में यह साफ उल्लेख किया गया है कि सभी धर्म को अपने धर्म के प्रचार प्रसार की स्वतंत्रता है लेकिन, वह किसी को दबाव प्रलोभन देकर यह नहीं कर सकता. संविधान के अनुच्छेद 25 में अंतःकरण की और धर्म के आबाद रूप से माने आचरण और प्रचार करने की स्वतंत्रता है तो वहीं अनुच्छेद 26 में धार्मिक कार्यों के प्रबंध की स्वतंत्रता का उल्लेख है. इसका उल्लेख भारतीय दंड संहिता जो कि अब भारतीय न्याय संहिता बन चुकी है उसमें भी है इसमें आईपीसी 299 और 300 के तहत सजा का प्रावधान है.FIRST PUBLISHED : July 30, 2024, 23:17 IST

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