Lucknow: इस इमामबाड़े की बावली में दफन है नवाबों के खजाने की चाबी और नक्शा

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Lucknow: इस इमामबाड़े की बावली में दफन है नवाबों के खजाने की चाबी और नक्शा



रिपोर्ट-अंजलि सिंह राजपूतलखनऊ. क्या आपको पता है कि अवध के नवाबों का खजाना कहां दफन है? अगर नहीं तो आज हम आपको बताने जा रहे हैं लखनऊ के इमामबाड़ा में बनी हुई शाही बावली के बारे में.अंग्रेजों ने जब अवध पर कब्जा कर लिया था और 7 फरवरी 1857 को अवध के आखिरी नवाब वाजिद अली शाह को गद्दी से बेदखल कर दिया था. तो नवाब वाजिद अली शाह ने कलकत्ता जाने से पहले अपने सेवक को खजाने की चाबी और नक्शा थमा दिया था. ताकि वह अंग्रेजों से खजाने को बचाएं. अंग्रेजों को इसी बावली के प्रवेश द्वार पर खड़ा देख सेवक ने इसी बावली में खजाने का नक्शा और चाबी फेंक दी थी. इतना ही नहीं अंग्रेजों से बचने के लिए उसने भी इसी बावली में कूद कर मौत को गले लगा लिया था.यह बावली गोमती नदी से मिली हुई है. पहले यहां पर खूब पानी हुआ करता था लेकिन अब यह बावली पूरी तरह से सूख चुकी है. पानी सूखने के साथ ही यहां पर नवाबों के खजाने का रहस्य आज भी रहस्य बना हुआ है.जाने-माने इतिहासकार स्वर्गीय डॉ. योगेश प्रवीण ने अपनी किताब लखनऊ नामा में खजाने की चाबी और नक्शा इसी में फेंकने की बात लिखी है. यह बावली बड़े इमामबाड़े में बनी हुई है. आज यहां पर देश और विदेश से भारी संख्या में पर्यटक आते हैं और यहां पर मौजूद गाइड यह दिलचस्प इतिहास उन्हें बताते हैं.पानी करता था सीसीटीवी कैमरे का कामइस बावली में जब आप जाएंगे तो सीढ़ियों से नीचे उतरते ही आपको एक चौकोरनुमा गड्ढे में गंदा पानी भरा हुआ नजर आएगा. लेकिन जब आप इसके अंदर के फ्लोर पर खड़े होकर बाहर के गेट को देखेंगे तो इस गंदे पानी में बाहर का गेट एकदम साफ नजर आता है. यानी बाहर के गेट से कौन प्रवेश कर रहा है यह इस पानी में साफ तौर पर देखा जा सकता है. कहा जाता है कि इसी पानी में लाल ड्रेस में खड़े हुए अंग्रेजी सेना को नवाब वाजिद अली शाह के सेवक ने देख लिया था.नवाबों का मेहमान खाना थी यह बावलीइतिहासकार डॉ. रवि भट्ट ने बताया कि इसका निर्माण नवाब आसफुद्दौला ने 1784 में इमामबाड़ा बनवाने के वक्त किया था. क्योंकि जब भी कोई निर्माण कार्य होता है तो उसके लिए पानी की आवश्यकता पड़ती है इसीलिए इसे बनवाया गया था. इसमें पानी नहीं सूखा तो पता लगाया गया कि यह अंदर से गोमती नदी से जुड़ गया है. इसके बाद नवाब ने फैसला किया कि इसे मेहमान खाना बनवाया जाएगा. 1784 में भारत के अंग्रेज गवर्नर जनरल वारेन हेस्टिंग्स को यहां पर ठहराया गया था. साथ ही नवाब आसफुद्दौला के बेटे वजीर अली का यहां पर राज्याभिषेक भी हुआ था.यहां पर 12 वर्ष के बच्चों के लिए 10 रूपए का टिकट है, जबकि प्रवेश टिकट 20 रूपए का है. विदेश से आने वाले पर्यटकों के लिए 500 रूपए का टिकट है.ब्रेकिंग न्यूज़ हिंदी में सबसे पहले पढ़ें News18 हिंदी| आज की ताजा खबर, लाइव न्यूज अपडेट, पढ़ें सबसे विश्वसनीय हिंदी न्यूज़ वेबसाइट News18 हिंदी|FIRST PUBLISHED : December 13, 2022, 15:35 IST



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