लखनऊ PUBG केस: एक पुलिस अफसर, साइकोलॉजिस्ट और प्रोफेसर से जानिए क्यों हो रही हैं ऐसी घटनाएं

admin

लखनऊ PUBG केस: एक पुलिस अफसर, साइकोलॉजिस्ट और प्रोफेसर से जानिए क्यों हो रही हैं ऐसी घटनाएं



देश में कुछ ऐसे शहर हैं जो अपनी ठसक, मौज-मस्ती, घुली-मिली संस्कृति, एक-दूसरे पर निर्भर समाज के लिए जाने जाते हैं. लखनऊ भी उन्हीं में से एक है. लेकिन, इन दिनों लखनऊ की चर्चा एक 16 साल के लड़के की वजह से है. पुलिस की रिपोर्ट में कहा जा रहा है कि उसने PUBG खेलने से मना करने पर अपनी मां की हत्या कर दी है.
लखनऊ पुलिस का कहना है कि बच्चे को PUBG की लत है. मां उसे रोकती थी तो उसे गुस्सा आया तो घर में पिता की लाइसेंसी बंदूक से उसने मां की हत्या कर दी. उसने 10 साल की अपनी बहन को भी डरा कर रखा कि इसके बारे में वह किसी को नहीं बताए. तीन दिन तक घर में शव पड़ा रहा. इस दौरान वह घर में ही दोस्तों के साथ पार्टी करता रहा. गेम्स खेलता रहा. बहन को भूख लगी तो पड़ोसी के यहां से खाना मांगकर खिलाता रहा. पिता का कॉल आने पर उनसे बहाना बनाता रहा कि मां कहीं बाहर गई हुई हैं.
इस पूरी घटना ने देश को हिला दिया है. बच्चे के बयानों ने समाज के अलग ही चेहरे को सामने लाकर रख दिया है. ऐसे में हमने एक्सपर्ट्स से बात की…
वाराणसी के एडिशनल कमिश्नर ऑफ पुलिस संतोष कुमार सिंह ने कहा कि बच्चा क्रिमिनल नहीं था. उसे मोबाइल गेम्स ने कुंठा में डाल दिया और उसी कुंठा से उसके अंदर एग्रेशन आ गया, जिसके बाद उसने ये कदम उठाया. जिस तरह से मोबाइल ने परिवार में दूरी बनाई है. एक ही घर में रह रहे परिवार के सदस्य एक-दूसरे से बात नहीं करते हैं. मोबाइल को ही देखकर रो रहे हैं. खुश हो रहे हैं. ये उन्हें समाज से काट दे रहा है. पहले लोग एक-दूसरे से घुलमिल कर रहते थे तो बातचीत में कुंठा निकल जाती थी. अब ऐसा नहीं हो पा रहा है. मोबाइल के जमाने में लोग एक साथ होते हुए भी साथ नहीं हैं.

संतोष कुमार सिंह ने कहा कि दूसरी तरफ PUBG जैसे गेम्स बच्चों में हिंसक मनोवृति को बढ़ा रहे हैं. यह घटना पुलिसिया क्राइम से ज्यादा साइकोलॉजिकल है. गेम्स की लत में पैदा हुई कुंठा उसे अलग ही फेज में पहुंचा देती है. उसका विवेक खत्म हो जाता है. इसमें कोई उसे मना करता है तो इतना आक्रामक रिएक्शन करता है कि आपराधिक घटना हो जाती है. मनोवैज्ञानिकों को इस पर चिंतन करना चाहिए और समय-समय पर वर्कशॉप करके लोगों को जागरूक करना चाहिए.
उन्होंने राजस्थान के कोटा का जिक्र करते हुए कहा, वहां नीट और आईआईटी की तैयारी करने देशभर से बच्चे जाते हैं. इसमें यूपी और बिहार के बच्चों की संख्या ज्यादा होती है. मां-पिता ढेरों अपेक्षाओं के बोझ तले उन्हें वहां भेज देते हैं. बच्चे उसे संभाल नहीं पाते हैं और सुसाइड कर लेते हैं. वहां इस तरह के केस बड़ी संख्या में सामने आते हैं. संतोष कुमार सिंह ने पिछले साल की एक घटना के बारे में बताते हुए कहा कि एक लड़की ने अपने सुसाइड नोट में लिखा कि मैंने दर्जनों स्टूडेंट्स को सुसाइड करने से रोका, लेकिन खुद को रोक नहीं पा रही हूं. मैं साइंस नहीं पढ़ना चाहती थी, लेकिन मां-पिता के कहने पर पढ़ी. अब संभाल नहीं पा रही हूं. उसने ये भी लिखा कि छोटी बहन का भी साइंस में मन नहीं लगता है. उसे भी उसके मन की पढ़ाई करने दो.
उन्होंने कहा, “बाल मन को समझना पेरेंट्स का काम है. पेरेंट्स बच्चों को शुरुआत से ही नियंत्रित रखें. उसमें सेल्फ गार्जियनशिप डालने की कोशिश करें. इसके बाद देखेंगे कि वह कहीं भी जाएगा नहीं बिगड़ेगा. लेकिन पेरेंट्स कर क्या रहे हैं. अपनी अपेक्षाओं और महत्वाकांक्षाओं को बच्चों के जरिए पूरा करना चाहते हैं. इसके बाद भी वह बच्चों की गलत हरकतों पर तब तक रिएक्ट नहीं कर रहे हैं जब तक पानी नाक से ऊपर नहीं चला जा रहा है. बस यहीं से केस बिगड़ जा रहा है. इस पर शुरुआत में ही खयाल रखने की जरूरत है. गार्जियन को चाहिए को बच्चों को समय दें. उनसे मित्रता रखें. ऐसा संबंध डेवलप करें कि वह सुख-दुख आपसे शेयर करे. फिर देखिए चीजें अपने आप बेहतर होंगी.
क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट क्या कहती हैंक्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट एंड साइकोथेरेपिस्ट मनीषा सिंघल कहती हैं, सबसे पहले तो कारण जानिए कि बच्चे इन गेम्स की तरफ क्यों जा रहे हैं. बच्चों के साथ खेलने वाला या उनसे बात करने वाला कोई नहीं रहा घरों में. इससे बच्चे ऐसी दुनिया में जाना चाहते हैं जहां उन्हें खुशी मिले. PUBG जैसे गेम्स इस तरह से डिजाइन होते हैं जिससे डोपामीन रिलीज होता है. इससे इंसान को खुशी और सेटिस्फेक्शन मिलता है. इसमें कहीं न कहीं एग्रेशन भी आता है. इस तरह के गेम्स एग्रेशन को ट्रिगर करते हैं. लखनऊ के केस में भी देखिए उसने अपनी मां को मार दिया है.
इस तरह के गेम्स में डिफरेंट लेवल होते हैं. रिवार्ड्स मिलते हैं. कुछ इनाम भी मिलते हैं. आपको प्रोत्साहन और संतुष्टि महसूस होती है. ये गेम्स आपको मारने के लिए मोटिवेट करते हैं. पिता फौज में हैं. मां ने एक दिन पहले गेम खेलने से रोकने के लिए मारा था. अब बच्चा इस एक्सट्रीम पर पहुंच गया है तो पिटाई काम नहीं करेगी. यहां प्यार से समझाने से बेहतर कुछ नहीं हो सकता है.
उसने जिस तरह से अपने दोस्तों को बुलाया है. बाहर से खाना मंगाया है और बहन को भी डरा कर रखा है यह उसकी स्थिति को बयां कर रहा है. उसका डिस्कनेक्ट मां से दिख रहा है और बहन को जिस तरह से रखा है, सामान्य है कि उससे भी उसका डिस्कनेक्शन होगा. इमोशन भी उसका कहीं न कहीं मिसिंग दिख रहा है. मिसिंग इमोशन एक प्रोसेस है. धीरे-धीरे होता है. एक साथ नहीं हो जाता है. यह सबसे बड़ा कारण है.

इसके लिए पेरेंट्स को बच्चों से घुलने-मिलने की कोशिश करनी चाहिए. उन्हें एक सुरक्षा देनी चाहिए. हर बच्चे की पर्सनैलिटी अलग-अलग होती है. ऐसे में बच्चा कुछ और चाहता है तो नो की सीरीज ज्यादा नहीं करनी चाहिए. अगर हर चीज में ना हो तो बच्चा डिस्कनेक्ट हो जाता है. पेरेंट्स को कनेक्शन बनाने की पूरी कोशिश करनी चाहिए.
क्या कहते हैं प्रोफेसरबीएचयू में साइकोलॉजी डिपार्टमेंट में प्रोफेसर राकेश पांडेय कहते हैं, “हर एडिक्शन की एक साइकोलॉजी होती है. इसमें फिजिकल डिपेंडेंसी, बायोलॉजिकिल डिपेंडेंसी और साइकोलॉजिकल डिपेंडेसी होती है. इस डिपेंडेसी के बन जाने के बाद जब कोई उसे उस तरह की एक्टिविटी से रोकता है तो इसके विड्रॉल सिम्टम्स सामने आते हैं. जैसे उदाहरण के तौर पर देखें तो किसी ने अपनी डिपेंडेंसी चाय पर कर ली है तो चाय नहीं मिलने पर भी उसमें विड्रॉल सिंपटम्स आते हैं. हालांकि, यहां डिपेंडेंसी का लेवल भी डिपेंड करता है. क्योंकि यह समय के साथ बढ़ता जाता है.
दूसरी चीज ये है कि जब कभी कोई व्यक्ति कुछ करना चाहे और कोई उसमें बाधा उत्पन्न करे तो वह कुंठा से भर जाता है. ये कुंठा ही उसके अंदर एग्रेशन लेकर आती है. ये फ्रस्ट्रेशन एग्रेशन हाइपोथिसिस है. इसका अर्थ है कि मनोवैज्ञानिक तरह से उसके ऊपर बाधा पड़ रही है. जिससे उसमें कुंठा उत्पन्न हो जाती है.

हमें इस बच्चे के केस में जिस तरह की सूचनाएं मिलीं उससे यही लगता है कि धीरे-धीरे ये मनोविकार के लेवल पर चला गया है. जिस तरह से पुलिस की पूछताछ में वह जवाब दे रहा है, उससे ऐसा ही लगता है कि इस विकार ने उसके अंदर से अच्छे और बुरे की फिलिंग निकाल दी है. उसमें किसी तरह का पछतावा भी नहीं दिखता है.
उन्होंने कहा कि यहां पेरेंट्स का रोल काफी अहम है. उन्हें बच्चों से लगातार बात करनी चाहिए और उनमें परिवर्तन देखते ही मनोचिकित्सक से बात करनी चाहिए. इस तरह की बीमारियों का आसान इलाज है और जितनी जल्दी इस पर काम हो उतनी जल्दी इससे मुक्ति भी मिल जाती है.ब्रेकिंग न्यूज़ हिंदी में सबसे पहले पढ़ें News18 हिंदी | आज की ताजा खबर, लाइव न्यूज अपडेट, पढ़ें सबसे विश्वसनीय हिंदी न्यूज़ वेबसाइट News18 हिंदी |Tags: News18 Hindi Originals, Psycho Arrested, PUBG gameFIRST PUBLISHED : June 10, 2022, 17:02 IST



Source link