किराने की दुकान खोलकर पिता ने बेटे को बनाया क्रिकेटर, अब वर्ल्ड कप में धमाका करेगा लाल

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गाजियाबाद: वेस्टइंडीज में अगले महीने से अंडर-19 वर्ल्ड कप टूर्नामेंट खेला जाएगा, जिसके लिए उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद स्थित कोटगांव में परचून की दुकान चलाने वाले एक साधारण दुकानदार के बेटे को चुन लिया गया है. अंडर-19 वर्ल्ड कप के लिए टीम इंडिया का ऐलान कर दिया गया है, जिसके बाद से ही गाजियाबाद के दुकानदार श्रवण यादव के बेटे सिद्धार्थ यादव की खूब चर्चा हो रही है. सिद्धार्थ यादव को 14 जनवरी से 5 फरवरी 2022 के बीच वेस्टइंडीज में अंडर-19 वर्ल्ड कप खेलने के लिए भारतीय टीम में सेलेक्ट किया गया है.
परचून दुकानदार के बेटे का कमाल 
इंडियन एक्सप्रेस की खबर के अनुसार श्रवण बचपन से ही भारतीय टीम के लिए खेलना चाहते थे, लेकिन क्रिकेट में वो एक नेट बॉलर बन कर रह गए. इसके बाद उन्होंने अपने बेटे को क्रिकेटर बनाने की ठानी. श्रवण ने क्रिकेट छोड़ किराने की दुकान खोली और अपने बेटे को क्रिकेटर बनाने के लिए संघर्ष शुरू किया. सिद्धार्थ यादव के पिता श्रवण यादव गाजियाबाद के कोटगांव में एक प्रोविजन स्टोर चलाते हैं. सिद्धार्थ के पिता श्रवण यादव भी एक क्रिकेटर बनना चाहते थे, लेकिन टीम के नेट बॉलर से आगे नहीं बढ़ पाए. अब उनका बेटा सिद्धार्थ यादव अपने पिता के सपने को पूरा करेगा.
भारत के लिए वर्ल्ड कप खेलने का मिला मौका
सिद्धार्थ यादव आगामी एशिया कप के लिए भी भारत की अंडर-19 टीम का हिस्सा हैं. इसके बाद जनवरी में अंडर-19 वर्ल्ड कप होगा. सिद्धार्थ यादव के पिता श्रवण यादव बेटे के सेलेक्शन के बाद उत्साहित हैं, इसलिए उनके ग्राहक भी बहुत खुश हैं. श्रवण ने बताया कि जब सिद्धार्थ छोटा था तो यह उनका ही सपना था कि उनका बेटा एक दिन क्रिकेट खेले. श्रवण ने बताया कि जब उनका बेटा पहली बार बैट पकड़ कर खड़ा हुआ था, तब वह उल्टा खड़ा हो गया. उनकी मां ने इस पर आपत्ति भी जताई, लेकिन श्रवण ने कहा कि यही उसका स्टांस होगा. तभी से सिद्धार्थ बाएं हाथ के बल्लेबाज बन गए. उनके बड़े होने पर प्रैक्टिस सबसे बड़ी चुनौती थी. इसके लिए श्रवण रोज दोपहर दो बजे से शाम छह बजे तक अपनी दुकान बंद कर देते थे और बेटे को प्रैक्टिस कराने ले जाते थे.
आठ साल की उम्र में शुरू हो गया था क्रिकेट सफर 
श्रवण यादव ने बताया, ‘एक गंभीर क्रिकेटर के तौर पर सिद्धार्थ का सफर आठ साल की उम्र में शुरू हो गया था.’ सिद्धार्थ के लिए अपने पिता के सपने को पूरा करने के लिए कड़ी मेहनत और त्याग की आवश्यकता थी. श्रवण हर दोपहर अपने बेटे को पास के मैदान में ले जाते और थ्रोडाउन कराते. वह उसे बताते कि कैसे सीधे बल्ले से खेलना है. श्रवण याद करते हुए कहते हैं, ‘मैंने सुनिश्चित किया कि उसे लगभग तीन घंटे तक ऐसा ही करना है. इसके लिए मैं दोपहर 2 बजे अपनी दुकान बंद कर देता और हम 6 बजे तक मैदान में ही रहते. फिर मैं दुकान पर वापस चला जाता.’
पिता ने की काफी मेहनत
सिद्धार्थ ने बताया, ‘मैं रात के 10.30 बजे तक खाना खा लेता और फिर जब मैं बिस्तर पर लेटता तो मुझे होश ही नहीं रहता था. परिवार में हर कोई सपोर्टिव नहीं था.’ सिद्धार्थ की दादी चाहती थीं कि वह पढ़ाई पर ध्यान दें. सिद्धार्थ ने बताया, ‘उन्हें लगता था कि यह जुएं जैसा है. अगर कुछ नहीं हुआ, तो जिंदगी खराब हो जाएगी, आवारा हो जाएगा (मैं अपना जीवन बर्बाद कर देगा, मैं बदमाश बन जाऊंगा), लेकिन मेरे पिता दृढ़ थे. यह उनका सपना था, जिसे मुझे पूरा करना था.’
वर्ल्ड कप में धमाका करेगा लाल
सिद्धार्थ की प्रगति उनके जीवन में दो अजयों के प्रवेश के साथ तेज हुई. एक अंडर-19 क्रिकेटर आराध्य यादव के पिता अजय यादव और दूसरे भारत के पूर्व क्रिकेटर अजय शर्मा, जो उनके कोच बने. अंडर-16 ट्रायल के दौरान सिद्धार्थ के पिता ने अजय यादव से सिद्धार्थ के लिए अच्छा कोच खोजने का आग्रह किया था. सिद्धार्थ को उत्तर प्रदेश की अंडर-16 टीम में चुना गया था. वह उस सीजन में राज्य के लिए एक दोहरा शतक और पांच शतक के साथ सर्वोच्च स्कोरर बने. फिर उन्हें जोनल क्रिकेट अकादमी के लिए चुना गया बाद में बेंगलुरु में राष्ट्रीय क्रिकेट अकादमी में चले गए.



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