कहार जाति को मिले SC-ST का दर्जा, हाईकोर्ट में दाखिल हुई याचिका, केंद्र और राज्य सरकार से मांगा जवाब

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हाइलाइट्सकहार जाति को एससी-एसटी सूची में शामिल करने की मांग को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिकाइलाहाबाद हाईकोर्ट ने याचिका पर सुनवाई करते हुए केंद्र और राज्य सरकार को नोटिस जारी किया है प्रयागराज. देश में एक ओर जहां जातीय जनगणना की मांग जोर पकड़ रही है, तो वहीं दूसरी ओर उत्तर प्रदेश में ओबीसी सूची में शामिल कहार जाति को एससी-एसटी सूची में शामिल करने की मांग को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट में एक याचिका दाखिल की गई है. याचिका पर सुनवाई करते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट ने केंद्र और राज्य सरकार से चार हफ्ते में जवाब मांगा है. इसके दो हफ्ते बाद याची अधिवक्ता को रिज्वाइंडर दाखिल करने का कोर्ट ने आदेश दिया है. मामले की अगली सुनवाई 15 अक्टूबर को होगी.

यह याचिका धुरिया जनजाति सेवा संस्थान गोरखपुर के अध्यक्ष राम अवध गोंड की ओर से दाखिल की गई है. याचिका में कहा गया है कि कहार जाति के अंब्रेला में कई जनजातियां भी आती हैं, लेकिन उन्हें राजस्व विभाग की ओर से जनजाति का सर्टिफिकेट जारी नहीं होता है. जिससे उन्हें एसटी कोटे का आरक्षण का लाभ नहीं मिल पाता है. याचिका पर अधिवक्ता राकेश गुप्ता ने पक्ष रखा. मामले की सुनवाई जस्टिस एमसी त्रिपाठी और जस्टिस प्रशांत कुमार की डिवीजन बेंच में हुई.

याचिका में की गई है ये मांग

याचिका में कहा गया है कि कहार जाति उत्तर प्रदेश में ओबीसी में आती है. केंद्र सरकार और यूपी सरकार की लिस्ट में चौथे नंबर पर कहार जाति को रखा गया है. यह दलील दी गई है कि कहार जाति परंपरागत पेशेवर जाति है. केंद्र सरकार की लिस्ट में कहार के अलावा तंवर और सिंघाड़िया भी जातियां ओबीसी में चार नंबर पर शामिल की गई हैं. यह कहा गया है कि केंद्र और राज्य सरकार की भर्तियों में डोली ढ़ोने और पानी ढोने वाले पदों पर उनकी भर्ती होती थी. 1881 की जनगणना में कहार जाति पेशावर जाति के रूप में दर्ज है. इन्हें पालकी ढोने वाला, पानी ले जाने वाला, सिंघाड़ा उगाने वाला और मछली मारने वाली जाति के रूप में दर्ज किया गया है.  1881 की जनगणना में कहार में 11 जन जातियां यानि ट्राइब्स भी शामिल थे, जो कि कहार के पेशे से जुड़ी हुई थी.  इनमें प्रमुख रूप से भोई, धीमर, धुरिया, गुरिया, गोंड, कलेनी, कमलेथर, हुर्का, मछेरा ,महारा, पनभरा और सिंघाड़िया जनजातियां शामिल हैं.  याचिका में यह भी कहा गया है कि इनमें कई जनजातियां एससी-एसटी सूची में भी पहले से नोटिफाई हैं, लेकिन इसके बावजूद जब अनुसूचित जनजाति का सर्टिफिकेट बनवाने की बात आती है तो राजस्व विभाग साफ तौर पर इनकार कर देता है.  जिससे जनजाति में आने वाली इन 11 जनजातियों के लोगों को सर्टिफिकेट ना मिलने से आरक्षण का लाभ नहीं मिल पाता है.

अगली सुनवाई अब 15 अक्टूबर को

याची अधिवक्ता राकेश गुप्ता के मुताबिक धुरिया जनजाति सेवा संस्थान गोरखपुर के मार्फत राम अवध प्रसाद गोंड की ओर से दाखिल की गई याचिका में यही मांग की गई है कि कहार जाति को यूपी और सेंट्रल की ओबीसी लिस्ट से हटाया जाए और एससी-एसटी की लिस्ट में उन्हें स्थान दिया जाए. इससे कहार अंब्रेला जाति के जो ट्राइब्स यानि जनजातियां हैं उनकी वास्तविक पहचान से उनका वर्गीकरण किया जाए.  इस मामले में याचिकाकर्ता की ओर से केंद्र सरकार, राज्य सरकार, मुख्य सचिव उत्तर प्रदेश, प्रमुख सचिव समाज कल्याण, निदेशक समाज कल्याण, प्रमुख सचिव राजस्व, पिछड़ा वर्ग कल्याण विभाग को पक्षकार बनाया गया है. फिलहाल मामले की अगली सुनवाई अब 15 अक्टूबर को होगी.
Tags: Allahabad high court, Prayagraj NewsFIRST PUBLISHED : September 6, 2024, 11:08 IST

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