कभी किराए में रहने के लिए नहीं थे पैसे, मंदिर में रहकर की पढ़ाई, आज हैं नामी डॉक्टर, संघर्ष से भरी है कहानी

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कभी किराए में रहने के लिए नहीं थे पैसे, मंदिर में रहकर की पढ़ाई, आज हैं नामी डॉक्टर, संघर्ष से भरी है कहानी

कुशीनगर: कहते हैं मन में अगर कुछ कर गुजरने की इच्छा हो तो रास्ते की बाधाएं भी आपका कुछ नहीं बिगाड़ सकती.  इसको चरितार्थ करते हैं कुशीनगर के पडरौना सरकारी अस्पताल के प्रभारी चिकित्सक डॉक्टर संजीव सुमन. उत्तर प्रदेश के कुशीनगर से करीब 200KM दूर बिहार के पूर्वी चंपारण जिले के अति पिछड़े गांव तालीमपुर के रहने वाले संजीव सुमन के पिता शुरुआत में तो बच्चों को ट्यूशन पढ़ा कर परिवार का पालन पोषण करते थे, लेकिन काफी समय बाद स्वास्थ्य विभाग में छोटी सी नौकरी लगी और हेल्थ वर्कर हुए , लेकिन नौ बच्चों का परिवार चलाने के लिए वह छोटी सी नौकरी पर्याप्त नहीं थी , दो कमरे के छोटे से मकान में इतने बड़े परिवार के साथ जैसे तैसे संजीव की पढ़ाई चलती रही.

माता जी के सख्त परवरिश और पिता से विरासत के रूप में मिला हुआ ज्ञान इतना था कि बचपन से ही संजीव पढ़ने में इतने तेज थे कि तीसरी कक्षा में पढ़ते हुए छठी क्लास के सवाल भी आसानी से हल किया करते थे. डॉक्टर संजीव बताते हैं कि जब उनके पिता जी बच्चों को ट्यूशन पढ़ाते थे, तब वो बाहर खड़े हो कर बड़े ध्यान से सुनते और समझते थे. जिसका नतीजा यह हुआ कि छोटी उम्र में ही उन्हें अपने से ऊपर के कक्षा के विषयों का ज्ञान हो गया. संजीव की शुरुआती पढ़ाई गांव के ही एक सरकारी विद्यालय से हुई जहां वो स्कूल के साथ साथ पिता  द्वारा की गई दवा की दुकान भी चलाते थे. हाई स्कूल में अच्छे अंक लाने के बाद उन्होंने रेलवे का फॉर्म भरा और उसमें चयनित भी हुए. लेकिन मन में यह बात कचोटने लगी कि मैं सरकारी बाबू बनने के लिए पैदा नहीं हुआ मुझे जीवन में कुछ बड़ा करना है और लोगों की सेवा करनी है और फिर उन्होंने रेलवे के ज्वाइनिंग लेटर को ऐसा फाड़ दिया जैसे कि कोई रद्दी कागज.

इन सब के बाद संजीव के पिता ने उन्हें बगल के शहर में पढ़ने भेज दिया. जहां रूम का भाड़ा तक देने का भी पैसा नहीं हो पाता था. जिस कारण मकान मालिक के घर मे बने मंदिर में रह कर दो वर्षों तक पढ़ाई की.  इन दो वर्षों में मकान के मालिक भुनेश्वर प्रसाद श्रीवास्तव ने संजीव को अध्यात्म की भी शिक्षा दी. जिसका प्रभाव उनके जीवन में आज तक है और आज भी संजीव उनकी तस्वीर को अपने कमरे में लगा कर उन्हें गुरु की तरह पूजते हैं.

बारहवीं पास करने के बाद डॉ संजीव अपने समकक्ष के छात्रों को पढ़ाने लगे. पढ़ाने का जुनून इतना था कि स्वयं बिहार बोर्ड का होने के बावजूद पूरी रात CBSE पाठ्यक्रम के अंग्रेजी की किताबें पढ़कर सीबीएसई के छात्रों को पढ़ाते थे. बाद में बिहार के मुजफ्फरपुर में पेट्रोक्रेटर अकादमी के पढ़ाने लगे. लेकिन उस वक्त तक उनके मन में मेडिकल की तैयारी की तरफ कोई रुझान नहीं था. चूंकी पिता जी स्वस्थ विभाग से जुड़े थे और उनकी इच्छा थी कि संजीव डॉक्टर बने. उनकी इच्छा के अनुकूल बिना किसी ट्यूशन या कोचिंग के संजीव ने मेडिकल की तैयारी की और पहले ही प्रयास में 99वें रैंक के साथ सफल हुए. दरभंगा मेडिकल कालेज से MBBS की पढ़ाई के दौरान भी उन्होंने बच्चों को ट्यूशन पढ़ाकर मेडिकल कॉलेज की फीस भरी.

MBBS की पढ़ाई पूरी करने के बाद संजीव ने पटना में कार्डियोलोजी से डिप्लोमा किया और वहां से मेडिकल के प्रति उनका रुझान और भी बढ़ता गया और फिर कड़ी मेहनत कर उत्तर प्रदेश सरकार के स्वास्थ विभाग में चयनित हुए और अब छोटे से गांव के संजीव डॉक्टर संजीव सुमन पाण्डेय बन कर पडरौना के सरकारी अस्पताल के प्रभारी हैं. जो अस्पताल कुछ वर्ष पहले तक वीरान हुआ करता था लोगों का विश्वास सरकारी अस्पताल से उठ चुका था, वहां आज मरीजों का तांता लगा रहता है. डॉक्टर संजीव सुमन पर लोगों का विश्वास इतना है कि दूर दूर से मरीज डॉक्टर साहब से दिखाने आते हैं और डॉक्टर साहब भी दिन रात की चिंता किए बिना बड़े इत्मीनान से मरीजों का इलाज करते हैं. डॉक्टर संजीव सुमन से बात करने पर उन्होंने कहा कि मेरे लिए चिकित्सा पेशा नहीं मेरा धर्म है और मेरी इच्छा है जब मेरी आखिरी सांस चल रही हो तब भी मैं किसी असहाय मरीज को देखते हुए इस संसार को अलविदा कहूं.
Tags: Hindi news, Local18, Success StoryFIRST PUBLISHED : January 3, 2025, 12:06 IST

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