कानपुर: कानपुर से एक दिल को छू जाने वाला मामला सामने आया है, जो इंसानियत और रिश्तों पर एक बड़ा सवाल खड़ा करता है. यह कहानी उस मां की है जिसने अपनी बेटी को पाल-पोसकर बड़ा किया, लेकिन उसी बेटी ने उसे काशी के घाट पर अकेला छोड़ दिया.
क्या है पूरा मामला
मामला कानपुर के कोतवाली थाना क्षेत्र के शिवाला का है, जहां की रहने वाली रीता ने अपने पति के साथ मिलकर अपनी 70 वर्षीय मां इंदिरा देवी को वाराणसी के घाट पर लावारिस हालत में छोड़ दिया. यह घटना 13 अप्रैल की है. रीता और उसका पति इंदिरा देवी को यह कहकर साथ ले गए थे कि वह उन्हें एक धार्मिक यात्रा पर ले जा रहे हैं, लेकिन वाराणसी पहुंचने के बाद दोनों उन्हें घाट पर एक आश्रम के बाहर छोड़कर वापस कानपुर लौट आए. उन्हें लगा कि अब कोई उनका पीछा नहीं करेगा. मगर किस्मत को कुछ और मंज़ूर था. कुछ स्थानीय लोगों ने इंदिरा देवी को घाट पर अकेले बैठा देखा. उन्होंने बात की तो महिला की हालत और उसकी कहानी ने सबको भावुक कर दिया. किसी ने यह पूरा वाकया मोबाइल में रिकॉर्ड कर सोशल मीडिया पर डाल दिया. देखते ही देखते वीडियो वायरल हो गया और कानपुर के शिवाला मोहल्ले में हलचल मच गई.
मोहल्ले के लोगों को जब यह पता चला कि इंदिरा देवी को उनकी ही बेटी ने छोड़ दिया है, तो उन्हें विश्वास नहीं हुआ. मोहल्ले में रहने वाले रिंकू ने कहा, “हमने कभी नहीं सोचा था कि रीता ऐसा करेगी. इंदिरा आंटी ने उसे बहुत प्यार से पाला था.”
पुलिस ने की कार्रवाई
वहीं जब यह मामला कोतवाली पुलिस के पास पहुंचा तो थाना प्रभारी ने तुरंत कार्रवाई करते हुए रीता और उसके पति को इंदिरा देवी को वापस लाने के लिए वाराणसी भेजा. पुलिस ने कहा कि इस मामले की गंभीरता को देखते हुए कानूनी जांच भी की जाएगी.
रीता से जब इस बारे में पूछा गया तो उसने कहा कि वह मां के व्यवहार से परेशान हो चुकी थी. उसका दावा है कि इंदिरा देवी को एक अच्छे आश्रम में छोड़ा गया था, लेकिन वहां से लौटते समय उन्होंने किसी को नहीं बताया.
समाज को आईना दिखाती हकीकत
इस पूरी घटना ने बॉलीवुड अभिनेता नाना पाटेकर की फिल्म वनवास’की याद दिला दी, जिसमें एक बुजुर्ग बाप को उनके बेटे काशी में छोड़ आते हैं. फिल्म की तरह ही यहां भी एक बाप अपने ही बच्चों द्वारा ठुकरा दी गई. फर्क बस इतना है कि यह कोई फिल्म नहीं, हकीकत है.
यह मामला सिर्फ एक खबर नहीं, बल्कि समाज के लिए एक आईना है. यह बताता है कि रिश्ते सिर्फ जन्म से नहीं, इंसानियत से टिके होते हैं. जो मां-बाप अपने बच्चों को हर मुश्किल में सहारा देते हैं, वो बुज़ुर्ग होने पर बोझ कैसे बन जाते हैं? .