रिपोर्ट- विशाल भटनागर
मेरठ: इन दिनों कोलकाता में ट्रेनी डॉक्टर की हत्या का मामला पूरे भारत में चर्चा का विषय है. ऐसे में गिरफ्तार किए गए मुख्य आरोपी का पॉलीग्राफ़ टेस्ट करने का निर्णय लिया गया है. लोगों में एक धारणा बनी है कि यह एक सच बुलवाने वाली मशीन है. इतना ही नहीं इसे लेकर अन्य कई सवाल भी लोगों के मन में हैं. बता दें कि पॉलीग्राफ टेस्ट, जिसे आमतौर पर “लाइ डिटेक्टर” के नाम से जाना जाता है, लेकिन क्या वास्तव में पॉलीग्राफ मशीन झूठ पकड़ सकती है? एक्सपर्ट प्रो. संजय कुमार ने इसके पीछे के विज्ञान और प्रक्रिया को समझाने का प्रयास किया है.
क्या है पॉलीग्राफ टेस्टचौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय परिसर में संचालित मनोविज्ञान विभागाध्यक्ष प्रो. संजय कुमार ने कहा कि पालीग्राफ टेस्ट एक वैज्ञानिक तकनीक है जिसमें व्यक्ति जब सवालों के जवाब देता है तो उसके शारीरिक और मनोवैज्ञानिक प्रतिक्रिया को मापा जाता है. यह टेस्ट विशेष रूप से न्यायिक और आपराधिक जांच में इस्तेमाल होता है जहां व्यक्ति की सच्चाई की जांच करना महत्वपूर्ण होता है.
कैसे होता है पॉलीग्राफ टेस्टटेस्ट की शुरुआत से पहले टेस्ट लेने वाले और देने वाले के बीच एक प्री-टेस्ट इंटरव्यू होता है. इसमें टेस्ट के उद्देश्यों को समझाया जाता है और व्यक्ति को टेस्ट के दौरान क्या होने वाला है इसकी जानकारी दी जाती है. व्यक्ति को एक कुर्सी पर बैठाया जाता है और उसके शरीर पर कुछ सेंसर लगाए जाते हैं. ये सेंसर व्यक्ति के शरीर के विभिन्न हिस्सों से जुड़े होते हैं जैसे कि छाती, उंगलियों और हाथों पर. सेंसर के जरिए निम्नलिखित मापदंडों को रिकॉर्ड किया जाता है. दिल की धड़कन, रक्तचाप, श्वसन दर, त्वचा की विद्युत चालकता आदि.
प्रश्न पूछने की प्रक्रियाएक बार सेटअप हो जाने के बाद, व्यक्ति से एक सीरीज़ में सवाल पूछे जाते हैं. ये सवाल सामान्य (जैसे “क्या आपका नाम XYZ है?” से लेकर विशिष्ट सवाल जैसे “क्या आपने इस घटना में हिस्सा लिया था?” जैसे कुछ भी हो सकते हैं. व्यक्ति के जवाबों के दौरान उसकी शारीरिक प्रतिक्रिया रिकॉर्ड की जाती है. जब व्यक्ति सच बोलता है तो उसकी शारीरिक प्रतिक्रियाएं स्थिर होती हैं जबकि झूठ बोलने पर उनमें बदलाव आ सकता है.
डेटा का विश्लेषणप्रो. संजय कुमार ने बताया कि सवालों के जवाबों के दौरान जो डेटा एकत्र किया जाता है उसे ग्राफ के रूप में रिकॉर्ड किया जाता है. एक प्रशिक्षित एनालिस्ट इस डाटा की जांच करता है और यह निर्धारित करने की कोशिश करता है कि व्यक्ति झूठ बोल रहा था या सच.
क्या सच में झूठ पकड़ लेती है यह मशीनपॉलीग्राफ मशीन का उद्देश्य व्यक्ति के झूठ बोलने पर उसके शरीर की स्वाभाविक प्रतिक्रियाओं (जैसे तनाव, घबराहट) को पकड़ना है लेकिन, यह ध्यान रखना जरूरी है कि पॉलीग्राफ मशीन सीधे यह नहीं बता सकती कि व्यक्ति झूठ बोल रहा है या सच. यह सिर्फ शारीरिक प्रतिक्रियाओं का विश्लेषण करती है, जो झूठ बोलने का संकेत हो सकता है. कुछ लोग तनाव में भी सच बोल सकते हैं जबकि कुछ लोग झूठ बोलने पर भी स्थिर रह सकते हैं.
नियम और कानूनबताते चलें कि भारत में, पॉलीग्राफ टेस्ट का उपयोग कानून द्वारा सीमित है. कोर्ट में इसका प्रयोग बिना व्यक्ति की सहमति के नहीं किया जा सकता है. साथ ही कोर्ट में इसे एकमात्र सबूत के रूप में स्वीकार नहीं किया जाता है. सुप्रीम कोर्ट ने 2010 में अपने फैसले में कहा कि किसी भी व्यक्ति को उसकी इच्छा के खिलाफ नार्को, ब्रेन मैपिंग और पॉलीग्राफ टेस्ट के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता. इसे केवल सहमति के आधार पर किया जा सकता है और इसे सहायक सबूत के रूप में माना जा सकता है.
सहमति और प्रक्रियापॉलीग्राफ टेस्ट के लिए व्यक्ति की लिखित सहमति आवश्यक होती है. टेस्ट के परिणामों का उपयोग कोर्ट या अन्य जांच में सहायक सबूत के रूप में किया जा सकता है लेकिन इसे निर्णायक सबूत नहीं माना जाता.
Tags: Local18FIRST PUBLISHED : August 25, 2024, 15:16 IST