गोरखपुर. श्रीप्रकाश शुक्ला की कहानी शुरू होती है गोरखपुर से. गोरखपुर की धरती यूपी के कुख्यात गैंगस्टर की भी गवाह रही है. एक जमाने में यहां हरिशंकर तिवारी और वीरेंद्र प्रताप शाही के बीच जबर्दस्त प्रतिद्वंदिता हुआ करती थी, लेकिन तभी इसी शहर के मामखोर गांव के एक लड़के ने सारे समीकरण बदल दिए. श्रीप्रकाश शुक्ला, क्राइम की दुनिया का ऐसा नाम जिसे जिंदा या मुर्दा पकड़ने के लिए उत्तर प्रदेश पुलिस को स्पेशल टास्क फोर्स यानी एसटीएफ का गठन करना पड़ा. बचपन में पहलवानी करने वाला श्रीप्रकाश आखिर कैसे दुर्दांत अपराधी श्रीप्रकाश शुक्ला बना, इसकी कहानी भी बेहद नाटकीय है.
बहन के साथ छेड़खानी की बात को भी मामखोर गांव के लोग सत्य नहीं मानते. उनका कहना है कि पड़ोसी गांव छपरा के राकेश तिवारी का मर्डर श्रीप्रकाश शुक्ला ने वर्चस्व के चलते किया था. गांववालों का भी यह भी कहना है कि राकेश तिवारी ने ही सबसे पहले श्रीप्रकाश शुक्ला के साथ मारपीट की थी. इस घटना के 4-5 माह के भीतर ही श्रीप्रकाश ने अपने अपमान का बदला लिया था. इस घटना के बाद ही श्रीप्रकाश शुक्ला जयराम की दुनिया में आया. श्रीप्रकाश शुक्ला के पिता रामस्वरूप शुक्ला (बाबाजी) शिक्षक नहीं बल्कि एयरफोर्स में थे और बैकॉक में तैनात थे. रिटायटरमेंट के बाद ठेकेदारी का काम करने लगे थे. ए-ग्रेड के ठेकेदार थे और ठेकेदारी में उन्होंने बड़ा नाम कमाया. श्रीप्रकाश शुक्ला का परिवार पहलवानी से जुड़ा था.
दशहरा के दिन की पैदाइश वाले श्रीप्रकाश शुक्ला का पालन-पोषण गोरखपुर से हुआ और वह गांव कभी-कभार ही आता था. 90 के दशक में उसके परिवार की गिनती क्षेत्र के संभ्रांत परिवारों में होती थी. 90 के दशक में जब गोरखपुर में इक्का-दुक्का इंग्लिश मीडियम स्कूल हुआ करते थे, तब उसके पिता ने श्रीप्रकाश शुक्ला का दाखिला इंग्लिश मीडियम स्कूल में करवाया था. हालांकि श्रीप्रकाश को इंग्लिश रास नहीं आई और जल्द ही उसका दाखिला गोरखपुर के पास दाउतपुर गांव में लोकनायक ज्ञानभारती विद्या मंदिर स्कूल में करवाना पड़ा.
90 के दशक में पूर्वांचल में माफियाओं का महिमा मंडन बहुत ज्यादा होता था. लोगों की जीवनशैली पर इसका खासा असर पड़ा. गोरखपुर को सेकंड शिकागो ही कहा जाने लगा था. माफियाओं की समाज में तूती बोलती थी और इज्जत मिलती थी. माफिया दौर का असर श्रीप्रकाश शुक्ला पर भी हुआ और नशा चढ़ता गया. गांववालों का कहना है कि बचपन से ही छोटी-मोटी मारपीट करता था. श्रीप्रकाश शुक्ला को किसी की तारीफ पसंद नहीं थी. जैसे ही कोई तारीफ करता, वह उसी को घेरकर सबके सामने पीटा करता था. बचपन से ही क्षेत्र के बदमाशों की जीवनशैली को जानने में रुचि लेता था. श्रीप्रकाश ने माफियाओं का माफिया बनने की सोची और वह अपनी कोशिश में काफी हद तक सफल भी रहा.
शुरुआत में अशोक सिंह के नाम से मांगता था रंगदारी श्रीप्रकाश शुक्ला के एनकाउंटर में शामिल रहे पूर्व आईपीएस राजेश पांडेय बताते हैं, ‘जनवरी 19997 में लखनऊ के सबसे बड़े लॉटरी व्यवसायी बबलू श्रीवास्तव की श्रीप्रकाश शुक्ला ने शाम को गोलीमार कर हत्या कर दी थी. बड़ा हल्ला मचा. इसके 10 दिन बाद आलमबाग इलाके में टेढ़ी पुलिया चौराहे पर ट्रिपल मर्डर हो गया. फिर 31 मार्च को दिन के दस बजे वीरेंद्र प्रताप शाही की गोलियों की बौछार करके हत्या कर दी. फिर मई 1997 में लखनऊ के नामी बिल्डर मूलराज अरोड़ा को हजरतगंज ऑफिस से गन प्वॉइंट पर अगवा कर लिया और करीब-करीब 2 करोड़ की फिरौती वसूली.’ श्रीप्रकाश यहीं पर नहीं रुका. 1 अगस्त 1997 को लखनऊ में विधानसभा के पास बने दिलीप होटल में तीन लोगों की हत्या कर दी. होटल में गोलीबारी के दौरान वह एक ही बात बार-बार चिल्लाता रहा कि श्रीप्रकाश शुक्ला से दुश्मनी बहुत महंगी पड़ेगी. गोलीबारी में भानु मिश्रा नाम का शख्स जीवित बच गया था जिसने बताया था कि उसे अशोक सिंह नाम का शख्स रेलवे टेंडर न लेने की धमकी दे रहा था. यही से पहली बार पुलिस को स्पष्ट हुआ कि अशोक सिंह ही श्रीप्रकाश शुक्ला है. हद तो तब हो गई जब उसने यूपी के तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह की हत्या की सुपारी ले ली.
सुनील शेट्टी के एक पोज से हिल गया था श्रीप्रकाशयूपी एसटीएफ का गठन हुआ लेकिन श्रीप्रकाश शुक्ला की शक्ल-सूरत की जानकारी किसी को नहीं थी. पूर्व आईपीएस राजेश पांडेय बताते हैं, ‘श्रीप्रकाश शुक्ला ने गोरखपुर में एक शादी अटैंड की थी. शादी में शामिल रहे फोटोग्राफर से पूछताछ की तो उसने बताया कि सभी फोटो जला दी हैं. सौभाग्य से, श्रीप्रकाश शुक्ला का एक बहनोई लखनऊ के हजरतगंज में रहता था. पता चला कि श्रीप्रकाश शुक्ला एक बर्थडे पार्टी में शामिल हुआ था. हमने बहनोई को डरा-धमकाकर पूछताछ की लेकिन कुछ नतीजा नहीं निकला. इसी बीच, एक लड़की आई और उसने बताया कि छह माह पहले मेरे बर्थडे में श्रीप्रकाश शुक्ला आया था और उसका फोटो भी है. उसने 3-4 फोटो दिखाईं और श्रीप्रकाश के बारे में बताया. इसी बीच, उसके जीजा और बहन गिड़गिड़ाने लगे कि इस बात का पता श्रीप्रकाश को नहीं चलना चाहिए. हमने उन्हें आश्वासन दिया और फोटो लेकर हजरतगंज की एक दुकान पर गया. उसका चेहरे और कद-काठी का मिलान किया और जो कि सुनील शेट्टी से मिलता-जुलता था. फिर कलर फोटोग्राफ की दुकान पर जाकर उसका चेहरा, सुनील शेट्टी के चेहरे पर फिट कराया और 50 फोटोग्राफ पासपोर्ट साइज के निकलवाए. अभी भी आप अगर श्रीप्रकाश शुक्ला के उस फोटो को गौर से देखेंगे तो पाएंगे कि उसके सिर और धड़ का पोर्शन मिसमैच है.’
जैसे ही श्रीप्रकाश शुक्ला को पता चला कि उसकी एक तस्वीर एसटीएफ के हाथ लगी तो वह दंग रह गया. पूर्व आईपीएस राजेश पांडेय बताते हैं, ‘श्रीप्रकाश शुक्ला रोज सुबह अपने गुर्गे से पता लगवाता था कि उसके बारे में अखबार में क्या निकला है. इंग्लिश उसे आती नहीं थी तो उसने एक लड़के को बोल रखा था कि किस पीसीओ से फोन करना है. उसमें जब लड़के से बातचीत हुई तो उसने श्रीप्रकाश को बताया कि आज आपकी तस्वीर सभी अखबारों में छपी है. तो श्रीप्रकाश ने कहा कि सवाल ही नहीं उठता. फोटो कहां से मिली होगी? इस पर लड़के ने कहा कि फोटो तो आपकी है.’
फोटो छपने के बाद परेशान रहने लगा था श्रीप्रकाशअखबारों में फोटो छ्पने के बाद श्रीप्रकाश की पहचान उजागर हो गई थी. इस बात से वह परेशान रहने लगा. वहीं, यूपी एसटीएफ उसके पीछे हाथ धोकर पड़ी हुई थी. श्रीप्रकाश को मोबाइल की भी लत लग गई थी. बताया जाता है एक समय में उसके पास 14 सिम कार्ड हुआ करते थे. श्रीप्रकाश मोबाइल से पहले पेजर का भी इस्तेमाल किया करता था. नेपाल से वह भारत में पीसीओ से फोन किया करता था.
.Tags: Gorakhpur news, Suniel Shetty, UP newsFIRST PUBLISHED : March 9, 2024, 21:02 IST
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