पीलीभीत. वन्यजीव प्रेमियों और एक्सपर्ट के अनुसार किसी भी वन्यजीव का प्राकृतिक वासस्थल जंगल का क्षेत्र ही होता है. अगर किसी कारण उन्हें चिड़ियाघर में रखा जाए तो किसी भी लिहाज से तो यह न्याय संगत है. लेकिन अगर कोई वन्यजीव बिना किसी वाजिब कारण के महज स्थानीय लोगों के दबाव में चिड़ियाघर भेजा जाता है तो यह उसके लिए उम्रकैद से कम नहीं होता.हाल ही में पीलीभीत टाइगर रिजर्व की माला रेंज से एक बाघ को रेस्क्यू किया गया. 4 दिन चले मंथन के बाद उसे गोरखपुर चिड़ियाघर भेज दिया गया. भले ही वनअधिकारी 15 दिन निगरानी के बाद निर्णय लेने की बात कह रहे हैं लेकिन कयास लगाए जा रहे हैं कि इस बाघ को चिड़ियाघर में ही रखा जाएगा. पीलीभीत टाइगर रिजर्व के बाघों को चिड़ियाघर भेजे जाने के मामलों पर अधिक जानकारी देते हुए वरिष्ठ पत्रकार एवं वन्यजीव विशेषज्ञ केशव अग्रवाल ने लोकल 18 से को बताया कि जिन हमले की घटनाओं के आधार पर इस बाघ को रेस्क्यू किया गया है उनमें से अधिकांश जंगल के भीतर घटित हुई हैं.वन विभाग की लापरवाही से बिगड़ा मामलाकेशव अग्रवाल बताते हैं कि वन विभाग का कहना है कि पगमार्क के मिलान के अनुसार प्रतीत होता कि लगभग एक साल के भीतर 9 हमले इस बाघ के द्वारा अंजाम डीए गए हैं. जिनमें से अधिकांश जंगल के भीतर के ही मामले हैं. लेकिन यह जंगल के आसपास रहने वाले ग्रामीणों की गलती के साथ ही साथ वन विभाग की लापरवाही का नतीजा है कि देश के इतने महत्वपूर्ण टाइगर रिजर्व के कोर एरिया में इतना इंसानी दखल हुआ कि इसमें 9 ग्रामीणों की जान चली गई. इस एक से डेढ़ साल के समय अंतराल में वन विभाग की ओर से जंगल में अवैध घुसपैठ रोकने के प्रयास क्यों नहीं किए गए. इंसानी दखल और वन विभाग की लापरवाही का नतीजा है कि बाघ उम्रकैद की कगार पर खड़ा है जबकि वह महज अपने घर को घुसपैठ से बचा रहा था.इतने बाघ और तेंदुओं को मिली उम्रकैदकेशव अग्रवाल बताते हैं कि यह पहला मौका नहीं है कि पीलीभीत टाइगर रिजर्व के किसी बाघ या तेंदुए को चिड़ियाघर के सीमित बाड़ों में स्थानांतरित किया गया हो. बीते वर्षों में 3 बाघ समेत एक तेंदुए को लखनऊ और 3 बाघ, 1 तेंदुए को कानपुर भेजा जा चुका है. वहीं 4 बाघ शावक, एक तेंदुआ शावक लखनऊ व एक तेंदुआ शावक कानपुर भेजा जा चुका है. वहीं हाल ही में पकड़े गए बाघ को भी अस्थाई रूप से गोरखपुर चिड़ियाघर भेज दिया गया है.FIRST PUBLISHED : September 28, 2024, 21:04 IST