ब्रेस्ट कैंसर दुनियाभर में महिलाओं की मृत्यु का एक प्रमुख कारण है और इसके इलाज में इस्तेमाल होने वाली कीमोथेरेपी और रेडिएशन थेरेपी के गंभीर साइड इफेक्ट्स इसे और भी चुनौतीपूर्ण बना देते हैं. लेकिन अब, IIT मद्रास के वैज्ञानिकों ने स्तन कैंसर के इलाज के लिए दवा देने की नया सिस्टम विकसित की है, जो बिना साइड इफेक्ट्स कैंसर का सफाया कर सकती है. उन्होंने इसका पेटेंट भी करा लिया है.
अधिकारियों के अनुसार, शोधकर्ताओं ने दवा डिलीवरी सिस्टम को डिजाइन करने के लिए ‘नैनोमटेरियल’ के अनूठे गुणों का लाभ उठाया है, जो कैंसरग्रस्त सेल्स तक कैंसर-रोधी दवाओं को पहुंचा सकते हैं. यह इनोवेशन सालों से चले आ रहे इलाज के तरीके के लिए एक सेफ और ज्यादा प्रभावी ऑप्शन प्रदान करता है.
संस्थान के एप्लाइड मैकेनिक्स और बायोमेडिकल इंजीनियरिंग विभाग की असिस्टेंटप्रोफेसर स्वाति सुधाकर ने को बताया कि नैनोकैरियर बायोकम्पैटिबल हैं और गैर-कैंसरग्रस्त या हेल्दी सेल्स के लिए विषाक्त नहीं हैं. इसलिए, वे कीमोथेरेपी या रेडिएशन थेरेपी या कीमोथेरेपेटिक दवाओं जैसे उपचारों के लिए एकदम सही ऑप्शन हैं, जो न केवल कैंसर सेल्स पर हमला करते हैं बल्कि स्वस्थ सेल्स को भी प्रभावित करते हैं जिससे बालों का झड़ना, मतली, थकान जैसे गंभीर नुकसान होते हैं.’
सुधाकर ने बताया कि बार-बार दवा की खुराक लेने से कैंसर सेल्स कीमोथैरेपेटिक दवाओं के प्रति प्रतिरोध भी विकसित कर सकती हैं, जो अंततः उपचार के प्रभाव को कम कर देती हैं. उन्होंने कहा कि प्रयोगशाला में स्तन कैंसर सेल्स पर कई टेस्ट किए गए, जिससे पता चला कि दवाओं से भरे नैनोआर्कियोसोम ने कैंसर सेल्स में सेल्स को समाप्त करना शुरू किया और कीमोथेरेपेटिक दवा की बहुत कम खुराक पर भी ट्यूमर के पनपने को प्रभावी ढंग से रोक दिया.’’
आईआईटी मद्रास और शिक्षा मंत्रालय द्वारा फंड किए गए रिसर्च के निष्कर्षों को रॉयल सोसाइटी ऑफ केमिस्ट्री द्वारा प्रकाशित मैटेरियल्स एडवांस और नैनोस्केल एडवांस सहित प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में प्रकाशित किया गया है. इस शोध के लिए पिछले महीने एक भारतीय पेटेंट प्रदान किया गया था. सुधाकर ने कहा कि यह शोध कैंसर उपचार थैरेपी को बदलने, जीवित रहने की दर में सुधार करने और दुनिया भर में लाखों मरीजों के लिए जीवन की क्वालिटी बढ़ाने के लिए बहुत बड़ा वादा करता है. हमारा अगला कदम पशु मॉडल में इस दवा के प्रभाव का टेस्ट करना है.