सरकार की ऊंची कुर्सियों पर लेटरल एंट्री की नियुक्ति को लेकर काफी हो हल्ला हुआ. सरकार ने फिलहाल इस पर रोक लगा दी. ये भी कहा गया कि ये प्रशासनिक सुधार आयोग की रिपोर्ट में कांग्रेस शासन काल में की गई सिफारिशों के तहत किया जा रहा था. यहां तक तो सरकार और प्रतिपक्ष बहस में उलझे दिखे, लेकिन एम वीरप्पा मोइली की अध्यक्षता वाले आयोग की दसवीं रिपोर्ट में अखिल भारतीय सिविल सेवाओं के लिए विस्तार से सुधार की बातें की गई हैं. इनमें बारहवीं के बाद ही आईएएस-आईपीएस के लिए छात्रों को चुन कर उन्हें तीन वर्ष के खास पाठ्यक्रम में दाखिल कर लेने पर भी व्यापक चर्चा की गई है.
मोइली की अध्यक्षता वाले आयोग ने अपनी रिपोर्ट में कहा है सेना के अफसरों के लिए इसी तरह से योग्य व्यक्तियों का चुनाव किया जाता है. आईएएस-आईपीएस की परीक्षा लेने वाली संस्था लोकसेवा आयोग ही बारहवीं की परीक्षा दे रहे या पास कर चुके छात्रों की देश भर में परीक्षा कराता है. उसमें चुने गए कंडिडेट्स को नेशनल डिफेंस एकेडेमी में ट्रेनिंग दे कर सेना में अफसर नियुक्त किया जाता है. उसी तर्ज पर नेशनल एडमिनिस्ट्रेटिव एकेडेमी स्थापित कर सरकार बारहवीं पास छात्रों की परीक्षा ले सकता है. फिर उन्हें आगे तीन साल तक एकेडेमी में पढ़ा कर अगर वे चाहे तो उनकी रुचि और योग्यता के अनुसार आईएएस -आईपीएस जैसी सेवाओं में शामिल कर सकता है. ये रिपोर्ट दिसंबर 2008 में पेश की गई थी.
रिपोर्ट के अध्याय 5 में भर्ती शीर्षक से आयोग ने इस पर विस्तार से विचार किया है. रिपोर्ट के पैरा 5.3.1.3 में कहा गया है -” प्रस्तावित प्रणाली के लिए 3 वर्ष के स्नातक पाठ्यक्रम को संचालित करने के लिए एक राष्ट्रीय सिविल सेवा कालेज की स्थापना करना जरूरी होगा. संघ लोक सेवा आयोग इस कालेज के लिए उम्मीदवारों का चयन करने के लिए एक परीक्षा आयोजित करेगा और उसकी पात्रता सी.बी.एस.ई. (कक्षा XII) अथवा उसके समकक्ष कोई शैक्षिक योग्यता होगी. आयु के मौजूदा मानदंड को उसके अनुरूप कम करने की आवश्यकता होगी.
आईएएस आईपीएस बनने के और रास्ते खुले रहेंरिपोर्ट में इस बात पर भी चर्चा की गई है कि सिर्फ सिविल सेवा में भर्ती के लिए दूसरे मार्ग भी खुले रखने चाहिए. दूसरे विशेषज्ञ संस्थानों से जैसे मेडिकल और इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर सिविल सेवा में शामिल होने के इच्छुक प्रत्याशियों को परीक्षा में जरूर बैठने की अनुमति देनी चाहिए, लेकिन विश्वविद्यालयों में सिविल सेवा के लिए कराए जाने वाले ब्रिज कोर्स को पास करने के बाद. इसके अलावा राज्यों के सिविल सेवकों की भी अलग से परीक्षा लेनी चाहिए. इसके पक्ष में दुनिया के कुछ देशों में चलने वाली सिविल सेवा एकेडेमी का हवाला भी दिया गया है.
ये विषय पढ़ाए जाएंआयोग ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि विश्वविद्यालयों की सिविल सेवा कोर्स में भारतीय संविधान, नागरिक विधि, संस्कृति, इतिहास, लोक प्रशासन जैसे विषयों को पढ़ाई में शामिल किया जाना चाहिए. हालांकि अपनी सिफारिश में आयोग ने इसे पूरी तरह से लागू करने की जगह आईआईएम और आईआईटी स्तर के संस्थानों के गठन, उनमें सिविल सर्विस में आने के इच्छुक छात्र-छात्राओं की पढ़ाई और उसकी निगरानी प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली समिति से कराने की सिफारिश की गई है. साथ ही इस तरह की व्यवस्था लागू किए जाने तक वर्तमान व्यवस्था को जारी रखने की बात कही गई है. हालांकि इसके पक्ष में खूब दलीलें दी गई हैं कि इस तरह से सिविल सेवा के लिए योग्य प्रत्याशियों का चुनाव किया जा सकेगा. साथ ही बच्चों को अनावश्यक कोचिंग संस्थानों से भी बचाया जा सकेगा. रिपोर्ट में बारहवीं के बाद सिविल सेवा के लिए छात्रों को चुने जाने के विरोध में दिए गए तर्कों की भी चर्चा की गई है. इसमें ग्रामीण क्षेत्रों के स्कूलों के छात्रों को अवसर न मिलने जैसी बातें कहीं गई हैं.
आयोग ने इस मसले पर अपनी सिफारिशों ने कहा है –क – भारत सरकार को लोक प्रशासन/ शासन/ प्रबन्धन के स्नातक डिग्री पाठ्यक्रमों के संचालन के लिए राष्ट्रीय लोक प्रशासन संस्थान स्थापित करने चाहिए. यह अपेक्षा की जाती है कि अन्ततोगत्वा यह विशेष उत्कृष्टता केन्द्र (राष्ट्रीय लोक प्रशासन संस्थान) सिविल सेवाओं के आकांक्षियों के प्रमुख स्रोतों के रूप में विकसित होंगे.”
ख -चुने हुए केन्द्रीय और अन्य विश्वविद्यालयों को भी लोक प्रशासन/शासन/लोक प्रबंधन के ऐसे स्नातक स्तर के कार्यक्रम प्रस्तुत करने में सहायता दी जानी चाहिए, जो सिविल सेवाओं के पात्र आवेदकों की पूल का और आगे विस्तार करने के लिए स्नातकों का सृजन करेंगे.
ग – इन विश्वविद्यालयों में प्रस्तुत किए जाने वाले पाठ्यक्रमों में वैकल्पिक विषयों के अलावा मूल (कोर) विषय शामिल होने चाहिए, जैसे भारत का संविधान, भारतीय कानून प्रणाली, प्रशासनिक कानून, भारतीय अर्थव्यवस्था, भारतीय राज्य व्यवस्था, भारतीय इतिहास और संस्कृति.
घ – भारतीय लोक प्रशासन संस्थानों और चुने हुए विश्वविद्यालयों के उपर्युक्त विशेष पाठ्यक्रमों के स्नातक सिविल सेवाओं की परीक्षा में बैठने के लिए हकदार होंगे। इसके अलावा, अन्य विषयों के स्नातक भी सिविल सेवा परीक्षा में बैठने के पात्र होंगे, बशर्तें कि उन्होने ऊपर उल्लिखित मूल विषयों में “ब्रिज पाठ्यक्रम” पूरा कर लिया हो. ब्रिज पाठ्यक्रम उन्हीं चुने हुए राष्ट्रीय संस्थानों/ विश्वविद्यालयों द्वारा चलाया जाना चाहिए जो ऊपर (ग) में उल्लिखित स्नातक स्तर के पाठ्यक्रमों का संचालन करते हैं.
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ङ – इन संस्थानों/विश्वविद्यालयों में दाखिल किए गए छात्रों को उदार आवश्यकता-आधारित छात्रवृत्तियां दी जानी चाहिएं।
आयोग ने और भी सिफारिशें की हैं लेकिन जोर देकर ये कहा है कि इस विशेषज्ञ समिति तुरन्त स्थापित की जाए, ताकि इनमें से कुछ संस्थानों / विश्वविद्यालयों में नए पाठ्यक्रम आगामी शिक्षा वर्ष से शुरु किए जा सकें. आयोग का यह भी विचार है कि ब्रिज पाठ्यक्रमों और उनकी प्रभावकारिता की समीक्षा पांच वर्षों के अनुभव के आधार पर की जानी चाहिए. इससे पता चलता है कि आयोग बारहवीं के बाद छात्रों के चयन को लेकर गंभीर है. वो इसका ट्रायल कराना चाहता है. साथ ही आयोग ने ये सिफारिश भी है कि इस कोर्स की पढ़ाई करने के बाद अगर कोई किसी और क्षेत्र में काम करना चाहे तो उसे रोकना नहीं चाहिए.
Tags: Education news, IAS exam, Upsc examFIRST PUBLISHED : August 21, 2024, 16:37 IST