लखनऊ: देश की सबसे बड़ी परीक्षा यूपीएससी (UPSC) में बैठने का सपना हर युवा का होता है. यह परीक्षा देश की सबसे प्रतिष्ठित परीक्षाओं में से एक है. इस परीक्षा में सफलता पाने के लिए विद्यार्थी दिन-रात मेहनत करते हैं. जहां कुछ होनहार विद्यार्थी पहले ही प्रयास में सफलता प्राप्त कर लेते हैं, तो कुछ दूसरे, तीसरे और चौथे प्रयास में सफलता हासिल करते हैं. ऐसे में IAS अधिकारी डॉक्टर हरिओम की कहानी सबसे अलग है. आइए जानते हैं IAS डॉ. हरिओम बारे में.
IAS अधिकारी डॉ. हरिओम की कहानी यूपी के अमेठी जनपद के कटारी गांव से शुरू होती है. डॉ. हरिओम बचपन से ही पढ़ाई में अव्वल दर्जे के छात्र थे. इसके साथ ही साथ उन्हें कबड्डी खो-खो, क्रिकेट आदि खेलों में भी खासी दिलचस्पी थी.
इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से किया ग्रेजुएशन
डॉ हरिओम की शुरुआती शिक्षा-दीक्षा गांव के ही स्कूल से हुई. इसके बाद इन्होंने इंटर मीडिएट की पढ़ाई राजकीय इंटर कॉलेज जामों से की. ग्रेजुएशन के लिए इन्होंने इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में दाखिला लिया. जहां अधिकतर विद्यार्थी आईएएस और पीसीएस बनने की बात करते थे. वहीं, इसके आगे परास्नातक की पढ़ाई के लिए इन्होंने जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय दिल्ली (JNU) को चुना. यहां से इन्होंने M.A और M.Phil की डिग्री हासिल की. इसके बाद इन्होंने अपनी पहली पोस्टिंग रुद्रप्रयाग में बतौर ज्वाइंट मजिस्ट्रेट रहते हुए गढ़वाल यूनिवर्सिटी से डॉक्टरेट की उपाधि ली.
पिता से मिली IAS बनने की प्रेरणा
1997 बैच के IAS ऑफिसर डॉ. हरिओम बताते हैं कि उनके पिता चंद्रमा प्रसाद कौशल की भी पढ़ने में बहुत रुचि थी. वह भी पढ़ना चाहते थे, लेकिन परिवार की आर्थिक पृष्ठभूमि न सही होने के कारण उनकी पढ़ाई पूरी नहीं हो सकी. उनके पिताजी का सपना था कि उनका बेटा IAS बनें. डॉ हरिओम इससे जुड़ा एक किस्सा भी सुनाते हैं कि उनके पिताजी बार- बार यह कहते थे कि देखो तुम्हें यहां से पढ़कर निकलना है, ऑफिसर बनना है. जो बड़ा अधिकारी होता है, वह जिले का कलेक्टर होता है. यह सभी बातें उनके जेहन में बनी रहती थी.
अभाव को बनाया अपना हथियार
डॉ. हरिओम ने प्रतियोगी छात्रों को संदेश देते हुए कहा कि वह गांव से निकले. हिंदी माध्यम से पढ़ाई की. फिर इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएशन किए, क्योंकि उनका सपना बड़ा था. उन्होंने बताया कि यदि संघर्ष की इच्छा हो तो गांव के बच्चों में बड़ी क्षमता होती है. जो चीजें शहर के बच्चों को आसानी से उपलब्ध हैं, गांव में उन्हीं चीजों को पाने के लिए बहुत संघर्ष करना पड़ता है. यही अभाव है जो आपको मजबूत बनाता है और आगे बढ़ने की प्रेरणा देता है. दृढ़ निश्चय के साथ यदि आप कुछ करने की ठानते हैं तो हर मुश्किल आसान हो जाती है. अंत में आप अपनी मंजिल तक पंहुच ही जाते हैं.
पिता ने की स्कूल की स्थापना
डॉ. हरिओम के पिताजी चंद्रमा प्रसाद कौशल गांव के हर एक बच्चे को अच्छी शिक्षा देना चाहते थे. आर्थिक स्थिति ना सही होने के कारण वह उस समय ऐसा कर पाने में सक्षम नहीं थे. डॉ. हरिओम बताते हैं कि उन्होंने जिस स्कूल में पढ़ाई की वह भी गिर गया. ऐसे में उनके पिताजी ने ठाना कि गांव के हर एक बच्चे को अच्छी शिक्षा देना है. इसके लिए उन्होंने 2019 में कटारी गांव में ही बसंत शिक्षण संस्थान की स्थापना की और अब गांव के बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा दे रहे हैं.