How To Protect Your Children From Sickle cell disease Early detection intervention long-term management | Sickle Cell Disease: सिकल सेल डिजीज से बच्चों को कैसे बचाया जा सकता है? डॉक्टर ने बताए तरीके

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How To Protect Your Children From Sickle cell disease Early detection intervention long-term management | Sickle Cell Disease: सिकल सेल डिजीज से बच्चों को कैसे बचाया जा सकता है? डॉक्टर ने बताए तरीके



Sickle cell disease in children: सिकल सेल डिजीज एक जेनेटिक डिसऑर्डर है जिसके पीछ की वजह एबनॉर्मल  हीमोग्लोबिन है, जो रेड ब्लड सेल्स को सख्त और हंसिया के आकार का बना देता है. हालांकि ऐसी परेशानी किसी भी उम्र के लोगों को हो सकती है, लेकिन अगर बच्चों में इसके बुरे असर को रोकना है तो इसका अर्ली डिटेक्शन, इलाज और लॉन्ग टर्म मैनेजमेंट बेहद जरूरी हो जाता है.
‘अर्ली डिटेक्शन है जरूरी’फोर्टिस मेमोरियल रिसर्च इंस्टीट्यूट, गुरुग्राम के पीडियाट्रिक हेमेटोलॉजिस्ट डॉ. विकास दुआ (Dr Vikas Dua) ने बताया कि अगर हम सिकल सेल डिजीज का जल्दी पता लगाएंगे तो इसे बेहतर तरीके से मैनेज किया जा सकेगा, नवजात शिशु के स्क्रीनिंग प्रोग्राम के जरिए अर्ली डिटेक्शन में काफी सुधार हुआ है, जिससे वक्त पर इसका इलाज हो पाएगा और बीमारी को ज्यादा बढ़ने से रोका जा सकेगा. 
 
मेडिकल इंटरवेंशन
जब डाइग्रनोसिस हो जाती है जो अर्ली इंटरवेंशन स्ट्रैटेजीज पर फोकस किया जाता है जिससे सिकल सेल डिजीज से जुड़े कॉम्पलिकेशंस को रोका जा सके. हाइड्रोक्सीयूरिया (Hydroxyurea) एक तरह का मेडिकेशन है जो फीटल हीमोग्लोबिन के प्रोडक्शन को बढ़ा देता है. इससे कई बार होने वाले दर्द और अस्पताल में एडमिट करने की जरूरत को कम किया जा सकता है.  रेगुलर हेल्थ चेकअप और वैक्सिनेशन भी बेहद जरूरी है ताकि बच्चों में ऐसी परेशानी और संक्रमण को बढ़ने से रोका जा सके. 
कैसे करें इस बीमारी का पता?
ट्रांसक्रानियल डॉपलर अल्ट्रासाउंड सिकल सेल डिजीज को डिटेक्ट करने का एक अहम जरिया है. इसकी मदद से उन बच्चों की बीमारियों का पता लगाया जा सकता है जिनमें स्ट्रोक का खतरा ज्यादा है. ऐसे में सही वक्त पर ब्लड ट्रांसफ्यूजन करके रिस्क को कम किया जा सकता है. हेमेटोलॉजिस्ट, पीडियाट्रिशियन और स्पेशियलाइज नर्स अगर मिलकर काम करें बच्चों की खास जरूरत और हेल्द नीड को पूरा किया जा सकता है.

लॉन्ग टर्म मैनेजमेंट
अगर हमें  सिकल सेल डिजीज लॉन्ग टर्म इफेक्ट को कम करना है तो हर बच्चे से अलग-अलग तरह का अप्रोच दिखाना होगा. इसके लिए रेगुलर फॉलो अप, न्यूट्रीशन को लेकर सलाह देना, साइकोलॉजिकल सपोर्ट जरूरी है. इस बात की भी जरूरत है कि बच्चे और पैरेंट दोनों की इस बीमारी की सही जानकारी हो. कुछ बच्चों के लिए क्रोनिक बल्ड ट्रांसफ्यूजन लॉन्ग टर्म मैनेजनेंट प्लान का हिस्सा होता है, जिससे स्ट्रोक और ऑर्गन डैमेज जैसे कॉम्पलिकेशंस से बचाया जा सकता है.  इसके अलावा बोन मैरो ट्रांसप्लांटेशन का भी सहारा लिया जाता है, लेकिन ये थोड़ा कॉम्पलेक्स प्रॉसेस है. मौजूदा दौरा में कई एडवांस्ड मेडिकल रिसर्च टेक्नोलॉजी के जरिए बच्चों की जिंदगी को बेहतर बनाने में मदद मिली है. 
 
Disclaimer: प्रिय पाठक, संबंधित लेख पाठक की जानकारी और जागरूकता बढ़ाने के लिए है. जी मीडिया इस लेख में प्रदत्त जानकारी और सूचना को लेकर किसी तरह का दावा नहीं करता है और न ही जिम्मेदारी लेता है. हमारा आपसे विनम्र निवेदन है कि उपरोक्त लेख में उल्लेखित संबंधित समस्या के बारे में अधिक जानकारी के लिए अपने डॉक्टर से परामर्श लें. हमारा उद्देश्य आपको जानकारी मुहैया कराना मात्र है.



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