मथुरा. जिन गलियों में कभी दूध-दही और माखन-मिश्री की भरमार रहती थी, उन गलियों में अब जाम के हालात रहते हैं. मीलों दूर तक सड़कें ख़ाली नजर आती थी. आज के दौर में सड़कों पर गाड़ियों के हॉर्न कोलाहल करते सुनाई देते हैं. मथुरा का इतिहास द्वापर काल से जुड़ा हुआ है.
इस शहर का अपना पौराणिक इतिहास रहा है, लेकिन अब आधुनिकता की झलक दिखने लगी है और मथुरा में अब बहुत कुछ बदल गया है. पद्मश्री मोहन स्वरूप भाटिया ने मथुरा में कितना बदलाव आया है इसको लेकर लोकल 18 के जरिए जानकारी साझा किया है.
तुलसी वन की जगह इमारतों ने ले ली है जगह
पद्मश्री मोहन स्वरूप भाटिया ने प्राचीन मथुरा के बारे में लोकल 18 को बताया कि सात पुरियों में से प्रमुख पूरी मथुरा को भी माना गया. प्राचीन मथुरा का पहनावा, बोलचाल, शिक्षा और बोलने का ढंग सहज था. ब्रज भाषा में मिठास थी. आज यह सब खत्म हो चुका है. वृंदावन का अर्थ है तुलसी का वन यहां तुलसी के वन के बजाए बहुमंजिला इमारतों ने जगह ले लिया है. उन्होंने बताया कि प्राचीन मथुरा में महिलाएं टोली बनाकर चला करती थी औरवह गीत गुनगुना कर जाया करती थी. पनघट आज सूना हो गया है और कहीं भी महिलाएं एक साथ नहीं दिखाई देती हैं. उन्होंने बताया कि संभ्रांत परिवारों की महिलाएं जब निकलती थी, तो वह गीत गुनगुनाया करती थी. चिड़िया तोय तो चामरिया भावे. यानी मैं घर में एक सुंदर महिला हूं, लेकिन मेरे पति को दूसरी नारी ही अच्छी लगती है.
ब्रज भाषा से मिठास हो चुका है गायब
पद्मश्री मोहन स्वरुप ने बताया कि मथुरा में प्राचीन समय में ब्रज की एक अलग ही झलक देखने को मिलती थी. ब्रज भाषा प्राचीन समय में लोग बोला करते थे, वो ब्रज भाषा अब लोग नहीं बोलते हैं. ब्रज की भाषा में एक मिठास थी, आज वो मिठास कही गुम हो गयी है. लोगों के अंदर अपनापन और बोलने का ढंग बदलता जा रहा है. प्राचीन समय के यमुना महारानी की बात करें तो कृष्ण की पटरानी यमुना अपने स्वच्छ और अविरल जल के लिए जानी जाती थी. शहर और गांव के लोग यमुना के जल को आचमन के साथ-साथ पीने के उपयोग में लिया करते थे. आज के दौर में यमुना का पानी इतना विषैला हो गया है कि पीना तो दूर इसे अब लोग आचमन करने से कतराते हैं.
Tags: Local18, Mathura news, UP newsFIRST PUBLISHED : September 5, 2024, 18:56 IST