निखिल त्यागी/सहारनपुर: पूरे देश में होलिका दहन के बाद लोग रंग-गुलाल से सराबोर होकर होली का त्योहार मानते हैं . वहीं सहारनपुर का एक ऐसा गांव है, जहां पर होलिका दहन नहीं किया जाता. यहां महाभारत काल के समय शुरू हुई परंपरा के अनुसार होलिका पूजन और होलिका दहन नहीं होता है. महाभारत कालीन इस परंपरा को आज भी ग्रामीण निभा रहे हैं.
इस गांव के लोगों का मानना है कि होलिका दहन करने से उनके ईष्ट देव भगवान शंकर के पैर जलते हैं, इसलिए यहां पर होलिका दहन नहीं किया जाता है. होली के त्योहार पर गांव की महिलाएं व पुरुष पूजन के लिए दूसरे स्थानों पर जाते हैं. हालांकि होली के त्योहार पर बहू- बेटियों को कोथली आदि भेजी जाती है. विवाह के बाद पहली होली पर बेटियां मायके में आती हैं.
शिव पुराण में भी इस मंदिर के इतिहास का है वर्णन
सहारनपुर जनपद के गांव बरसी में गठित पौराणिक शिव मंदिर के पुजारी जन्म नाथ ने बताया कि गांव में स्थित शिव मन्दिर का वर्णन शिव पुराण में है. शिव पुराण में महाभारत कालीन इस मंदिर को वरशेश्वर शिव मंदिर के नाम से उल्लेख है. उन्होंने बताया कि मान्यता है कि महाभारत के समय मे जब दुर्योधन यहां से गुजर रहे थे, तो उन्होंने इस शिव मंदिर की स्थापना की थी. नाथ सम्प्रदाय के पुजारी जन्म नाथ ने बताया कि बताया जाता है कि उस दौरान जब पांडव पुत्र भीम यहां आए तो उन्होंने इस मंदिर के मुख को अपनी गदा से पश्चिम को ओर घुमा दिया था.
पुजारी ने बताया कि महापुरुषों व संतों की इस भूमि को बंजर की तरह देखा जाता है. क्योंकि इस गांव की अधिकतर जमीन पर फसल नहीं उगती. इसलिए फसल उत्पत्ति ना होने के कारण जमीन एक तरह से बंजर ही है. उन्होंने बताया कि पौराणिक काल से ही परंपरा के अनुसार बरसी गांव के आसपास चार-पांच गांव ऐसे हैं, जहां पर होली का पर्व और होली का दहन नहीं होता है.
क्यों नही होता बरसी गांव में होलिका दहन
बरसी गांव के शिव मंदिर में पुजारी महंत नरेंद्र गिर ने बताया कि बरसी गांव के इस शिव मंदिर में प्रतिवर्ष फ़ाल्गुन माह में महाशिवरात्री पर मेले का आयोजन होता है. जिसमे दिल्ली, पंजाब, हरियाणा, हिमाचल, उत्तराखंड आदि राज्यो से हजारों श्रद्धालु आते हैं. उन्होंने बताया कि मान्यता है कि शिव मंदिर में गुड़ की भेली प्रसाद के साथ पूजा अर्चना करने से मनोकामना पूर्ण होती है.
भगवान शंकर के जलते हैं पैर
एक अन्य महंत भोपाल गिरी ने बताया कि करीब 5 हजार वर्ष पूर्व दुर्योधन ने इस शिव मंदिर में युद्ध में अपनी जीत की मनोकामना मांगी थी. उन्होंने बताया कि होली का पर्व नहीं मनाने के बारे में मान्यता है कि पुराने समय में जब गांव में होलिका दहन हुआ था, तो एक बुजुर्ग के सपने में भगवान शिव ने होलिका दहन होने से अपने पैर जले हुए दिखाए थे. जिसका वर्णन उक्त बुजुर्ग ने सुबह ग्रामीणों के सामने किया था. तब से गांव में होलिका दहन नहीं होने की परंपरा चली आ रही है. महंत ने बताया कि यदि कभी होलिका दहन किया गया तो क्षेत्र को प्राकृतिक आपदा का सामना करना पड़ा है.
.Tags: Hindi news, Holi, Local18, Religion 18FIRST PUBLISHED : March 24, 2024, 10:06 ISTDisclaimer: इस खबर में दी गई जानकारी, राशि-धर्म और शास्त्रों के आधार पर ज्योतिषाचार्य और आचार्यों से बात करके लिखी गई है. किसी भी घटना-दुर्घटना या लाभ-हानि महज संयोग है. ज्योतिषाचार्यों की जानकारी सर्वहित में है. बताई गई किसी भी बात का Local-18 व्यक्तिगत समर्थन नहीं करता है.
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