वाराणसी: 17वीं शताब्दी में ज्ञानवापी मस्जिद के निर्माण से पहले उस स्थान पर एक हिंदू मंदिर मौजूद था, श्रृंगार गौरी मामले में हिंदू पक्ष के वकील विष्णु शंकर जैन ने गुरुवार को दावा किया. उन्होंने 839 पेजों वाली ASI सर्वे रिपोर्ट के हवाले से यह दावा किया है. आइए इस खबर में जानते हैं कि ASI सर्वे रिपोर्ट में क्या-क्या है.इंडिया टुडे की रिपोर्ट के अनुसार दरअसल, बुधवार को कोर्ट द्वारा संबंधित पक्षों को सर्वे रिपोर्ट की कॉपी उपलब्ध कराए जाने की अनुमति दे दी गई थी. हिंदू पक्ष ने लगातार इस रिपोर्ट की कॉपी मांगी थी. अनुमति मिलने के बाद हिंदू और मुस्लिम दोनों पक्षों सहित कुल 11 लोगों ने पहले दिन काशी विश्वनाथ मंदिर से सटे ज्ञानवापी परिसर पर एएसआई सर्वे रिपोर्ट हासिल करने के लिए कोर्ट में आवेदन किया था.ASI सर्वे रिपोर्ट के अनुसार परिसर में वैज्ञानिक जांच/सर्वेक्षण के दौरान देखी गई सभी वस्तुओं का विधिवत दस्तावेजीकरण किया गया था. इसमें शिलालेख, मूर्तियां, सिक्के, वास्तुशिल्प टुकड़े, मिट्टी के बर्तन, और टेराकोटा, पत्थर, धातु और कांच की वस्तुएं शामिल है. हालांकि इस दौरान इस बात का विशेष ध्यान रखा गया था कि सर्वे के दौरान मौजूद सरचनाओं को कोई नुकसान न हो.सर्वे के दौरान एक पत्थर शिलालेख मिला, जिसका टूटा हुआ हिस्सा पहले से ASI के पास था. इसमें हजरत आलमगीर यानी मुगल सम्राट औरंगजेब के 20वें शासनकाल में (1676-77 सीई) के अनुरूप मस्जिद का निर्माण दर्ज किया गया था. इस शिलालेख में यह भी दर्ज है कि साल 1792-93 सीई में, मस्जिद की मरम्मत सहन आदि से की गई थी. मंदिर के पिलर को वर्तमान ढांचे (मस्जिद) को बनाने के लिए री-यूज किया गया. पिलर्स और प्लास्टर को री-यूज किया गया. थोड़े से मोडिफिकेशन के साथ मस्जिद में इन्हें इस्तेमाल किया गया. हिंदू मंदिर के खंभों को थोड़ा बहुत बदलकर नए ढांचे के लिए इस्तेमाल किया गया. पिलर के नक्काशियों को मिटाने की कोशिश की गई. इस मंदिर में एक बड़ा केंद्रीय कक्ष था और कम से कम एक कक्ष क्रमशः उत्तर, दक्षिण, पूर्व और पश्चिम में था. उत्तर, दक्षिण और पश्चिम में तीन कक्षों के अवशेष अभी भी मौजूद हैं, लेकिन पूर्व में कक्ष के अवशेष और इसके आगे के विस्तार का भौतिक रूप से पता नहीं लगाया जा सका है, क्योंकि यह क्षेत्र पत्थर के फर्श के नीचे ढका हुआ है. इस मंदिर का इस मंदिर में एक बड़ा केंद्रीय कक्ष था और कम से कम एक कक्ष क्रमशः उत्तर, दक्षिण, पूर्व और पश्चिम में था. उत्तर, दक्षिण और पश्चिम में तीन कक्षों के अवशेष अभी भी मौजूद हैं, लेकिन पूर्व में कक्ष के अवशेष और इसके आगे के विस्तार का भौतिक रूप से पता नहीं लगाया जा सका है, क्योंकि यह क्षेत्र पत्थर के फर्श के नीचे ढका हुआ है. पहले से मौजूद संरचना एक केंद्रीय कक्ष बनाता है. मोटी और मजबूत दीवारों वाली इस संरचना, सभी वास्तुशिल्प घटकों और फूलों की सजावट के साथ मस्जिद के मुख्य हॉल के रूप में उपयोग किया गया था. पहले से मौजूद संरचना के सजाए गए मेहराबों के निचले सिरों पर उकेरी गई जानवरों की आकृतियों को खराब कर दिया गया था और गुंबद के अंदरूनी हिस्से को दूसरे डिजाइनों से सजाया गया है.मौजूदा संरचना की पश्चिमी दीवार पहले से मौजूद हिंदू मंदिर का शेष हिस्सा है. पत्थरों से बनी और क्षैतिज सांचों से सुसज्जित यह दीवार, पश्चिमी कक्ष के शेष हिस्सों, केंद्रीय कक्ष के पश्चिमी प्रक्षेपण और इसके उत्तर और दक्षिण में दो कक्षों की पश्चिमी दीवारों से बनी है. सर्वे के दौरान मौजूदा और पहले से मौजूद संरचनाओं पर कई शिलालेख देखे गए. वर्तमान सर्वेक्षण के दौरान कुल 34 शिलालेख दर्ज किए गए और 32 शिलालेख लिए गए. ये वास्तव में, पहले से मौजूद हिंदू मंदिरों के पत्थरों पर शिलालेख हैं, जिनका मौजूदा ढांचे के निर्माण/मरम्मत के दौरान पुन: उपयोग किया गया है.इनमें देवनागरी, ग्रंथ, तेलुगु और कन्नड़ लिपियों में शिलालेख शामिल हैं. इन शिलालेखों में देवताओं के तीन नाम जैसे जनार्दन, रुद्र और उमेश्वर पाए जाते हैं. तीन शिलालेखों में उल्लिखित महा-मुक्तिमंडप जैसे शब्द बहुत महत्वपूर्ण हैं. मौजूदा वास्तुशिल्प अवशेष, दीवारों पर सजाए गए सांचे, केंद्रीय कक्ष के कर्ण-रथ और प्रति-रथ, पश्चिमी कक्ष की पूर्वी दीवार पर तोरण के साथ एक बड़ा सजाया हुआ प्रवेश अंदर और बाहर सजावट के लिए उकेरे गए जानवरों से पता चलता है कि पश्चिमी दीवार किसी हिंदू मंदिर का बचा हुआ हिस्सा है. एक कमरे के अंदर मिले अरबी-फारसी शिलालेख में उल्लेख है कि मस्जिद का निर्माण औरंगजेब के 20वें शासनकाल (1676-77 ई.) में हुआ था. इसलिए, ऐसा प्रतीत होता है कि पहले से मौजूद संरचना को 17वीं शताब्दी में औरंगजेब के शासनकाल के दौरान नष्ट कर दिया गया था, और इसके कुछ हिस्से को संशोधित किया गया था और मौजूदा संरचना में पुन: उपयोग किया गया था. .
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