गोंडा में प्राकृतिक खेती: डॉ. अंकित तिवारी के सुझाव और लाभ

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Last Updated:March 14, 2025, 12:55 IST
गोंडा के कृषि विज्ञान केंद्र में प्राकृतिक खेती बिना रासायनिक उर्वरकों के की जा रही है. जीवामृत, बीजामृत और घनजीवमृत से मिट्टी की उर्वरता बनी रहती है, लागत घटती है और पर्यावरण सुरक्षित रहता है, जिससे सस्टेनेब…और पढ़ेंX

प्राकृतिक खेती.गोंडा- उत्तर प्रदेश के गोंडा जिले के दीनदयाल शोध संस्थान के लाल बहादुर शास्त्री कृषि विज्ञान केंद्र में प्राकृतिक खेती को बढ़ावा दिया जा रहा है. इस लेख में हम जानेंगे कि प्राकृतिक खेती कैसे की जाती है और यह रासायनिक खेती से किस तरह अलग है.

प्राकृतिक खेती के तीन प्रमुख घटकलोकल 18 से बातचीत के दौरान कृषि वैज्ञानिक डॉ. अंकित तिवारी बताते हैं कि प्राकृतिक खेती करने के लिए तीन प्रमुख घटकों की आवश्यकता होती है:

जीवामृत

बीजामृत

घनजीवमृत

इन तीन घटकों का प्रयोग करके प्राकृतिक खेती की जाती है. वहीं, रासायनिक खेती में डीएपी, यूरिया, फास्फोरस समेत कई प्रकार के रासायनिक उर्वरकों का उपयोग किया जाता है. लेकिन प्राकृतिक खेती में किसी भी प्रकार के रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग नहीं किया जाता है.

क्या होती है प्राकृतिक खेती?कृषि वैज्ञानिक डॉ. अंकित तिवारी बताते हैं कि गोंडा जिले के दीनदयाल शोध संस्थान के लाल बहादुर शास्त्री कृषि विज्ञान केंद्र में प्राकृतिक खेती की जा रही है. यह खेती बिना किसी रासायनिक उर्वरक या कीटनाशक के, पूरी तरह प्राकृतिक तरीकों से की जाती है.

प्राकृतिक खेती के आवश्यक घटकजीवामृत:यह जैविक खाद का एक महत्वपूर्ण रूप है, जिसे गाय के गोबर, गौमूत्र, गुड़, चना, मिट्टी और पानी से तैयार किया जाता है. यह मिट्टी की उर्वरता बढ़ाने और पौधों को आवश्यक पोषण देने में मदद करता है.

बीजामृत:बीजों को रोगमुक्त और मजबूत बनाने के लिए बीजामृत में शोधित किया जाता है। यह बीज के अंकुरण और उसके विकास को बेहतर बनाता है.

घनजीवमृत:यह मिट्टी की उर्वरता बढ़ाने और फसलों को पोषण देने में सहायक होता है। इसके उपयोग से खेतों में जैविक तत्वों की मात्रा बढ़ती है.

प्राकृतिक और रासायनिक खेती में अंतरडॉ. अंकित तिवारी बताते हैं कि रासायनिक खेती में डीएपी, यूरिया और फास्फोरस जैसे उर्वरकों का प्रयोग किया जाता है, जिससे मिट्टी की उर्वरता धीरे-धीरे कम होती जाती है. वहीं, प्राकृतिक खेती में किसी भी प्रकार के रासायनिक उर्वरक या कीटनाशक का प्रयोग नहीं किया जाता.

प्राकृतिक खेती के फायदे

मिट्टी की उर्वरता बनी रहती है

फसल की गुणवत्ता और पोषण मूल्य बढ़ता है

उत्पादन की लागत कम होती है

पर्यावरण को कोई नुकसान नहीं होता

भविष्य की दिशाडॉ. अंकित तिवारी के अनुसार, गोंडा में हो रही यह प्राकृतिक खेती किसानों को रसायन-मुक्त खेती की ओर प्रेरित कर रही है. इससे भविष्य में सस्टेनेबल एग्रीकल्चर को बढ़ावा मिलेगा और किसानों को अधिक लाभ प्राप्त होगा.
Location :Gonda,Uttar PradeshFirst Published :March 14, 2025, 12:55 ISThomeagricultureबिना रासायनिक खाद के खेती से करोड़ों की कमाई! गोंडा के किसानों का नया फार्मूला

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