नवजात शिशुओं की देखभाल में कई महत्वपूर्ण कदम उठाए जाते हैं, लेकिन एक जरूरी टेस्ट जिसे अक्सर नजरअंदाज कर दिया जाता है, वह है नवजात की सुनने की जांच (Newborn Hearing Test). यह टेस्ट बच्चे के जन्म के कुछ दिनों के भीतर किया जाता है और इससे यह पता लगाया जाता है कि बच्चा ठीक से सुन सकता है या नहीं. एक्सपर्ट का कहना है कि अगर यह टेस्ट समय पर न कराया जाए, तो बच्चे की सुनने की शक्ति कमजोर हो सकती है, जिससे उसके भाषा, बोलने और सामाजिक कौशल पर नकारात्मक असर पड़ सकता है.
सुनने की क्षमता बच्चे के दिमाग के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है. जन्म के बाद के पहले छह महीने शिशु के विकास के लिए सबसे अहम होते हैं. इस दौरान, अगर बच्चे में सुनने की समस्या है और उसका इलाज नहीं किया जाता, तो इससे उनकी भाषा और संचार क्षमता में देरी हो सकती है.
एक शोध के अनुसार, जिन बच्चों की सुनने की समस्या छह महीने की उम्र से पहले पहचान ली जाती है और समय पर उपचार मिल जाता है, वे अन्य बच्चों की तरह सामान्य रूप से बोलने और समझने की क्षमता विकसित कर सकते हैं. अगर समय पर इस समस्या का पता न चले, तो इससे बच्चे का आत्मविश्वास, स्कूल में प्रदर्शन और भविष्य के अवसर प्रभावित हो सकते हैं.
कैसे होता है नवजात का हियरिंग टेस्ट?ईएनटी एक्सपर्ट डॉ. हेतल मार्फतिया पटेल बताती हैं कि यह टेस्ट आसान, त्वरित और दर्द रहित होता है और आमतौर पर बच्चे के अस्पताल से छुट्टी मिलने से पहले ही कर लिया जाता है. इसके दो मुख्य तरीके हैं:
ओटोएकॉस्टिक एमिशन (OAE) टेस्ट: इसमें एक छोटे से ईयरफोन के माध्यम से बच्चे के कान में हल्की आवाज भेजी जाती है, और एक माइक्रोफोन से अंदरूनी प्रतिक्रिया मापी जाती है.
ऑडिटरी ब्रेनस्टेम रिस्पांस (ABR) टेस्ट: इसमें बच्चे के सिर पर छोटे-छोटे सेंसर लगाए जाते हैं और कान में हल्की क्लिक जैसी आवाज दी जाती है. इससे दिमाग की ध्वनि के प्रति प्रतिक्रिया को मापा जाता है.
अगर बच्चा पहली जांच में पास नहीं होता है, तो फॉलो-अप टेस्ट के जरिए इस समस्या की पुष्टि की जाती है और उचित उपचार शुरू किया जाता है.
Disclaimer: प्रिय पाठक, हमारी यह खबर पढ़ने के लिए शुक्रिया. यह खबर आपको केवल जागरूक करने के मकसद से लिखी गई है. हमने इसको लिखने में सामान्य जानकारियों की मदद ली है. आप कहीं भी कुछ भी अपनी सेहत से जुड़ा पढ़ें तो उसे अपनाने से पहले डॉक्टर की सलाह जरूर लें.