गाजीपुर: पूर्वांचल की शादियों में गाए जाने वाले गाली गीतों की अपनी सांस्कृतिक पहचान है. डॉ रामनारायण तिवारी के अनुसार, यह गीत केवल मजाक या मनोरंजन का माध्यम नहीं हैं बल्कि एक संस्कार हैं. इन गीतों में रिश्तों की मिठास और पारिवारिक मान्यता झलकती है. हल्दी, चुमावन और परीक्षावन जैसे हर रस्म के लिए अलग-अलग गाली गीत गाए जाते हैं जो पूरी शादी को रंगीन बना देते हैं.
संस्कार बनाम अश्लीलता “समधन गीत”रामनारायण तिवारी बताते हैं कि पहले इन गीतों में श्रृंगार और श्रद्धा भाव होता था. उदाहरण के लिए समधन गारी गीत या जेवनार गारी गीतों में समधियों के खाने के समय उनका स्वागत और सम्मान गाली के माध्यम से किया जाता था. महिलाएं पहले सुमिरन करती थीं फिर गाली गीत गाती थीं. समय के साथ इनमें अश्लीलता आने लगी है. आजकल की महिलाएं गाती हैं, “भागबा की न करबा ड्रामा, तोहरे बाप का ना ह अंगनवा” यह दर्शाता है कि पहले की महिलाएं कितनी सांस्कृतिक थीं. आज लोग गीतों में अश्लीलता भर देते हैं.
रिश्तों में मिठास लाते गाली गीतगाली गीत किसी विशेष व्यक्ति को लक्ष्य कर नहीं गाए जाते. इसलिए इनमें अश्लीलता का सवाल ही नहीं उठता. ये गीत समधियों, देवर-भाभी, सालों-बहनों जैसे रिश्तों को सम्मान देते हैं. तिवारी बताते हैं कि गाली गीत रिश्तों की गहराई को व्यक्त करते हैं. यदि गाली गीत नहीं गाए जाते तो लोगों को लगता था कि शादी में कुछ खटपट है.
गाली गीतों की यह परंपरा पूर्वांचल की सांस्कृतिक धरोहर है जो मजाक, संस्कार और रिश्तों की मिठास को एक साथ जोड़ती है. यह परंपरा केवल एक गीत नहीं, बल्कि संस्कृति और संबंधों की सजीव कहानी है.
Tags: Ghazipur news, Local18FIRST PUBLISHED : November 22, 2024, 10:02 IST