याद कीजिए साल 1988 से 1990 का वह दौर, जब टीवी पर ‘मैं समय हूं’ की आवाज गूंजते ही देश की सड़कों पर सन्नाटा छा जाया करता था और लोग दूरदर्शन के राष्ट्रीय चैनल पर प्रसारित महाभारत देखने के लिए अपने या आस-पड़ोस में टीवी सेट के सामने जम जाते थे. ‘मैं समय हूं’, शब्दों का जादू जगाने वाले थे देश के जाने-माने साहित्यकार ड़ॉ. राही मासूम रजा. बहुत कम लोगों को मालूम होगा कि समय के ताने-बाने में पूरी महाभारत को पिरोने वाले ‘मैं समय हूं ’ के विचार का जन्म एक गाजीपुर के राही साहब के घर पत्नी की एक छोटी से भूल से हुआ था.
आधा गांव, टोपी शुक्ला जैसी कालजयी साहित्यिक रचनाओं को लिखने वाले साहित्यकार डॉ. राही मासूम रजा का आज यानी 1 सितंबर को जन्मदिन हैं. जो लखनऊ सहित पूरे देश में मनाया जा रहा है. इस मौके पर स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और देश के पहले संचार मंत्री रहे स्व. रफी अहमद किदवई के पोते हाफिज किदवई ने डॉ. राही मासूम रजा और ‘महाभारत के समय’ के जन्म से जुड़ी एक बेहद रोचक जानकारी साझा की है. उन्होंने अपनी फेसबुक पोस्ट के माध्यम से बताया कि किस तरह धारावाहिक महाभारत के लिए ‘मैं समय हूं’ के विचार और तानेबाने का जन्म हुआ. यह वही वाक्य है, जिसके टीवी पर गूंजने पर पूरे देश की सड़कों पर कर्फ्यू जैसा लग जाता था और 94 कड़ियों वाले विश्व के सबसे ज्यादा देखे जाने वाले टीवी धारावाहिकों में से एक ‘महाभारत’ को देखने के लिए लोग अपने या आस-पड़ोस में टीवी सेट के सामने 45 मिनट के लिए जम जाया करते थे.
सुबह 5 बजे उठकर लिखते थे महाभारत के संवादहाफिज अपनी फेसबुक पोस्ट में डॉ. राही मासूम रजा के महाभारत से जुडी स्मृतियों को साझा करते हुए लिखते हैं वह (डॉ. रजा) सुबह 5 बजे लिखते थे. महाभारत को लेकर एक जुनून तो था ही, यह भी बतलाना था कि यह लिखने उनका अधिकार है . ग़ैरमज़हब होने की वजह से महाभारत को लेकर बड़े सवाल थे,तो वह जुटे थे,अलार्म लगाते और सुबह पांच बजे लिखने बैठ जाते.
एक रोज़ उनकी ज़िन्दगी की सबसे मज़बूत साथी, उनकी पत्नी से पता नहीं कैसे, गलती से घड़ी में अलार्म, 5 बजे की जगह, 2 ही बजे का लग गया. आधी रात में अलार्म बजा और राही उठ गए. घड़ी देखी, तो 2 बजे थे. गुस्सा आंखों में नींद से लड़ता हुआ साफ़ नज़र आ रहा था. पत्नी ने कहा कि ग़लती हो गई अलार्म सेट करने में, आपकी नींद टूट गई. दोबारा लेट जाइए, हम 5 बजे उठा देंगे.
स्व. रफी अहमद किदवई के पोते हाफिज किदवई ने डॉ. रजा और ‘महाभारत के समय’ के जन्म से जुड़ी एक बेहद रोचक जानकारी साझा की.
बस कलम उठाई और लिख डाला ‘मैं समय हूं’रजा साहब लेट गए. मगर यह करवट, वह करवट, नींद भला कहां. लेटे-लेटे सोचते रहे कि अचानक दिमाग ने कहा कि बताओ, यह वक़्त भी भला कैसी शय है. ज़रा सी पहले आंख खुल गई, तो काटे नहीं कटता. यह समय ही तो है, जो हमें चला रहा. राही लेटे-लेटे सोचते रहे, उस समय और उसमें गुंथी उलझन को सोचते रहे, फिर अचानक उठ बैठे. कलम उठाई और महाभारत जैसे धारावाहिक में “समय” को पिरोया . ‘मैं समय हूं’, और इस तरह समय की ज़ुबान बनकर राही ने हर वह बात कह डाली, जो उनके दौर की महाभारत थी.
बहुत अलग, कांटों भरी थी राही की राहराही बहुत अलग थे. ज़ुबान और कामों में फ़र्क़ नहीं था. ज़हन और दिखावे में फ़र्क़ नहीं था. वह डरते नहीं थे. दुनिया ख़िलाफ़ हो जाए, मगर वह अपने कदम बढ़ाने से हिचकते नहीं थे. राही की राह में कितने कांटे थे, जो अपनों ने बिछाए थे, मगर वह बढ़ते गए, कभी नहीं रुके…, राही को जन्मदिन पर नमन, श्रद्धांजलि और खिराज ए अक़ीदत.
.Tags: Ghazipur news, Mahabharat, Rahi Masoom Raza BirthdayFIRST PUBLISHED : September 01, 2023, 14:45 IST
Source link