हाइलाइट्सराधास्वामी संप्रदाय की स्थापना आगरा में सेठ शिवदयाल सिंह ने की बाद में ये संप्रदाय कई हिस्सों में टूटा लेकिन इसकी दो बड़ी शाखाएं दयालबाग और ब्यास के नाम से राधा स्वामी सत्संग सभा दयालबाग इन दिनों चर्चाओं में है. आगरा का दयालबाग राधास्वामी मत को मानने वाली एक शाखा का मुख्यालय रहा है . इसे स्थापित हुए 100 सालों से ज्यादा समय हो चुका है. आजादी के पहले से इस पर जमीनें कब्जाने का आरोप लगता रहा है. पिछले कुछ दशकों में ये आरोप और बढ़े. अब आगरा प्रशासन ने बुलडोजर चला कर अतिक्रमण को ध्वस्त कर दिया. हालांकि इस कार्रवाई का राधास्वामी सत्संगियों ने काफी विरोध भी किया.
इन खबरों के बाद लोगों में इस संप्रदाय को लेकर उत्सुकता जगनी शुरू हुई, इसे लेकर तमाम सवाल भी खड़े होने लगे – ये पंथ कब बना, कैसे बना, कैसे चलता है, इसकी फिलास्फी क्या है – ये तमाम वो सवाल हैं, जिसे लोग अब जानना चाहते हैं.
सवाल – राधास्वामी संप्रदाय कैसे शुरू हुआ और इसकी विचारधारा क्या है?– राधा स्वामी एक आध्यात्मिक परंपरा या आस्था है. जिसकी स्थापना आगरा के ही शिव दयाल सिंह ने 1861 में बसंत पंचमी के दिन आगरा में की. उसके बाद ये संस्था बढ़ती चली गई. मोटे तौर पर इसके जरिए ऐसे समाज की कल्पना की गई, जो आध्यात्मिक तौर पर तो उन्नत हो, सेवा और सहअस्तित्व में भरोसा रखता हो. ये संस्था वास्तव में आध्यात्म, नैतिक जीवन, शाकाहारी आहार विचार और सेवा का एक मेल थी.
सवाल – राधास्वामी संप्रदाय की स्थापना किसने की थी?– इसकी स्थापना सेठ शिव दयाल सिंह ने की, जिन्हें राधास्वामी अनुयायी हुजूर साहब के तौर पर संबोधित करते हैं. वह मूल तौर पर आगरा के हिंदू बैंकर थे. वैष्णव परिवार में पैदा हुए थे. उनके माता-पिता नानकपंथी थे, जो सिख धर्म के गुरु नानक के अनुयायी थे. साथ में तुलसी साहिब नामक हाथरस के एक आध्यात्मिक गुरु के अनुयायी भी थे. शिव दयाल सिंह तुलसी साहिब की शिक्षाओं से प्रभावित थे. वह अक्सर उनके पास जाते थे, लेकिन उनसे दीक्षा नहीं लेते थे. इसके बाद उन्होंने राधास्वामी मत बनाया. सार्वजनिक रूप से प्रवचन देना शुरू किया.
सवाल – इसका संप्रदाय का नाम राधा स्वामी क्यों रखा गया?– बकौल राधा स्वामी अनुयायियों के राधा स्वामी का अर्थ होता है आत्मा का स्वामी. राधा स्वामी शब्द का शाब्दिक अर्थ राधा को आत्मा और स्वामी (भगवान) के रूप में संदर्भित करता है. “राधा स्वामी” का प्रयोग शिव दयाल सिंह की ओर संकेत करने के लिए किया जाता है. शिव दयाल सिंह के अनुयायी उन्हें जीवित गुरु और राधास्वामी दयाल का अवतार मानते थे. हालांकि कुछ अन्य विद्वानों के अनुसार यह नाम शिव दयाल सिंह की पत्नी के नाम पर पड़ा. उनकी पत्नी नारायणी देवी को उनके अनुयायियों द्वारा राधा जी उपनाम दिया गया था. इसलिए, राधा जी (नारायणी देवी) के पति होने के कारण, शिव दयाल सिंह का नाम राधा स्वामी रखा गया.
सवाल – क्या ये संस्था भी बाद में कई शाखाओं में बंट गई?– शिव दयाल साहब की मृत्यु पर राधा स्वामी संप्रदाय दो हिस्सों में बंट गया. मुख्य दल आगरा में ही रहा. दूसरी शाखा एक सिख शिष्य जैमल सिंह द्वारा शुरू की गई. इसके सदस्यों को राधा स्वामी ब्यास (RSSB) के रूप में जाना जाता है. उनका मुख्यालय अमृतसर के पास ब्यास नदी के तट पर गांव डेरा में है. मुख्य तौर पर दो ही बड़ी राधास्वामी सत्संग संप्रदाय हैं, ये हैं राधास्वामी दयालबाग और राधास्वामी डेरा ब्यास.
सवाल – मौजूदा दौर में राधा स्वामी की सबसे बड़ी शाखा कौन सी है?– सबसे बड़ी शाखा राधा स्वामी सत्संग ब्यास (आरएसएसबी) है जिसका मुख्यालय ब्यास शहर में है, जिसकी स्थापना 1891 में उत्तर भारतीय राज्य पंजाब में शिव दयाल सिंह के शिष्यों में एक जैमल सिंह ने की, जिन्होंने ‘सूरत शब्द योग’ का अभ्यास किया था.कुछ दशकों में इसके प्रत्येक उत्तराधिकारी ( सावन सिंह से लेकर सरदार बहादुर महाराज जगत सिंह और महाराज चरण सिंह से लेकर वर्तमान स्वामी गुरिंदर सिंह ढिल्लों) के मार्गदर्शन में राधास्वामी ब्यास का काफी विकास हुआ है. अनुमान है कि दुनियाभर में 20 लाख से अधिक लोग इससे दीक्षा ले चुके हैं.हालांकि बाद में राधास्वामी ब्यास में भी विभाजन हुआ. सवान कृपाल मिशन और सच्चा सौदा जैसे पंथ या संप्रदाय इसी से निकले.
सवाल – राधास्वामी सत्संग दयालबाग शाखा की स्थापना कैसे हुई. इसका दर्शन क्या था?– दयालबाग की स्थापना राधास्वामी सत्संग के पांचवें संत सर आनन्द स्वरुप साहब ने की. दयालबाग की स्थापना भी बसन्त पंचमी के दिन 20 जनवरी 1915 को शहतूत का पौधा लगा कर की गई. दयालबाग राधास्वामी सत्संग के पंथ का हेडक्वाटर है. राधास्वामी सत्संग के मौजूदा गुरु आठवें संत डा प्रेम सरन सत्संगी भी यहीं रहते हैं. मुख्य तौर पर इसे कम्युन के तौर पर विकसित किया गया. जहां लोग साथ रहते, मेहनत करते और सत्संग करते हैं और सात्विक जीवन बिताते हैं. इस जगह में वो अपनी जरूरत का सभी सामान आमतौर पर खुद ही उत्पादित करते हैं. यहां कुछ कारखाने हैं, जिसमें सत्संगी मेहनत करते हैं. दयालबाग की अपनी शिक्षण संस्थाएं और इंजीनियरिंग कॉलेज भी है. इसके अनुयायी काफी बडे़ पदों पर भी रहे हैं.
सवाल – मुख्य तौर पर राधास्वामी पंथ को मानने के लिए कौन से 06 तत्व जरूरी माने गए हैं?– दयालबाग राधास्वामी अनुयायियों के लिए 06 तत्व उनके संप्रदाय की रूपरेखा बनाते हैं– एक जीवित गुरु (विश्वास और सत्य के केंद्र के रूप में कोई)– भजन ( सत नाम का स्मरण, परिवर्तनकारी मानी जाने वाली अन्य प्रथाएं)– सत्संग (फैलोशिप, समुदाय),– सेवा (बदले में कुछ भी अपेक्षा किए बिना दूसरों की सेवा करना)– केंद्र (सामुदायिक संगठन, तीर्थस्थल) और– भंडारा (बड़ी सामुदायिक सभा)
सवाल – राधास्वामी को मानने वालों के लिए खान-पान में क्या पालन करते हैं?– नैतिक और आध्यात्मिक कारणों से राधा स्वामी सख्त लैक्टो-शाकाहारी हैं. वे अंडे , मांस, समुद्री भोजन या शराब का सेवन नहीं करते. इसमें अंडे तक का सेवन मांसाहार माना जाता है. माना जाता है कि अंडे और मांस खाना जीव हत्या जैसी प्रवृत्ति हैं और आध्यात्मिक विकास को ख़राब करते हैं.
.Tags: Agra latest newsFIRST PUBLISHED : September 25, 2023, 17:10 IST
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