आज आप सबके हाथ में पूरी दूनिया को जोड़ने वाली पावर है, जिसे इंटरनेट कहा जाता है. हम एक डिजिटल यूग में जी रहे हैं. आज के समय में स्मार्टफोन, टैबलेट और कंप्यूटर हमारे जीवन का हिस्सा नहीं बल्कि केंद्र बन गए हैं. इसमें कोई दोराय नहीं कि टेक्नोलॉजी से जिंदगी बहुत आसान हो गयी है. लोग घर से बाहर निकले ही कमा खा सकते हैं. हालांकि, इसकी कीमत हम अनजान में चुका रहे हैं. इसकी बदौलत इंसान का दिमाग कई सारी समस्याओं से घिर गया है, डिजिटल डिमेंशिया इसमें से ही एक है.
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डिजिटल डिमेंशिया क्या है?
डिजिटल डिमेंशिया एक नया शब्द है जिसका उपयोग उस मानसिक स्थिति के लिए किया जाता है, जिसमें डिजिटल उपकरणों के अत्यधिक उपयोग से मस्तिष्क की कार्यक्षमता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है. इस स्थिति में, लोग संज्ञानात्मक क्षमताओं में कमी, ध्यान केंद्रित करने में कठिनाई, और याददाश्त समस्याओं का सामना कर सकते हैं.
स्क्रीन टाइम का ब्रेन पर असर
स्मार्टफोन और अन्य डिजिटल उपकरणों का लगातार उपयोग मस्तिष्क की एकाग्रता की क्षमता को प्रभावित करता है. सोशल मीडिया, ईमेल और मैसेजिंग ऐप्स के लगातार पुश नोटिफिकेशन लोगों को बार-बार ध्यान भटकाने का कारण बनते हैं, जिससे उनकी उत्पादकता और एकाग्रता में कमी आती है. लगातार स्क्रीन पर व्यस्त रहने से याददाश्त की कमजोर होती है. शोध से पता चला है कि जो लोग 3 घंटे से ज्यादा डिजिटल डिवाइस का अत्यधिक उपयोग करते हैं, वे जानकारी को लंबे समय तक याद रखने में कठिनाई महसूस करते हैं. रात में स्क्रीन का उपयोग, विशेषकर नीली रोशनी वाले डिवाइस नींद की गुणवत्ता को प्रभावित करते हैं. नीली रोशनी ब्रेन को जगाए रखती है और मेलाटोनिन (नींद लाने वाला हार्मोन) के स्तर को कम करती है, जिससे नींद की समस्याएं उत्पन्न होती हैं. डिजिटल उपकरणों पर अत्यधिक समय बिताने से लोगों के वास्तविक जीवन में सामाजिक संपर्क कम हो सकते हैं. इससे ब्रेन हेल्थ प्रॉब्लम जैसे चिंता और अवसाद का खतरा बढ़ सकता है.
डिजिटल डिमेंशिया के कारण
डिजिटल डिमेंशिया के कारणों में अत्यधिक स्क्रीन टाइम, लगातार मल्टीटास्किंग, और डिजिटल उपकरणों पर निर्भरता शामिल हैं. विशेष रूप से, युवा पीढ़ी इस समस्या का सामना कर रही है, क्योंकि वे अधिक समय डिजिटल उपकरणों पर बिता रहे हैं और व्यक्तिगत इंटरैक्शन की कमी महसूस कर रहे हैं.
कैसे करें बचाव?
अपनी स्क्रीन पर बिताए गए समय को नियंत्रित करें और सुनिश्चित करें कि आप नियमित ब्रेक लें. खासकर, सोने से पहले स्क्रीन का उपयोग कम से कम करें.ध्यान और मेडिटेशन जैसी गतिविधियां मस्तिष्क की एकाग्रता बढ़ाने में मदद कर सकती हैं. इनका नियमित अभ्यास करने से डिजिटल डिमेंशिया के प्रभाव को कम किया जा सकता है.अपने परिवार और दोस्तों के साथ अधिक समय बिताएं. वास्तविक जीवन में सामाजिक संपर्क मानसिक स्वास्थ्य के लिए लाभकारी होता है. नींद की गुणवत्ता को सुधारने के लिए सोने से पहले कम से कम एक घंटे का डिजिटल डिटॉक्स करें.
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Disclaimer: प्रिय पाठक, हमारी यह खबर पढ़ने के लिए शुक्रिया. यह खबर आपको केवल जागरूक करने के मकसद से लिखी गई है. हमने इसको लिखने में घरेलू नुस्खों और सामान्य जानकारियों की मदद ली है. आप कहीं भी कुछ भी अपनी सेहत से जुड़ा पढ़ें तो उसे अपनाने से पहले डॉक्टर की सलाह जरूर लें.