Even 17 doctors could not be diagnose this rare disease which 64 year old Mumbai man was suffering from | 17 डॉक्टरों को दिखाने के बाद भी नहीं चला बीमारी का पता, 6 महीने तक ‘बिगड़ी दुनिया’ में जीता रहा मरीज

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Even 17 doctors could not be diagnose this rare disease which 64 year old Mumbai man was suffering from | 17 डॉक्टरों को दिखाने के बाद भी नहीं चला बीमारी का पता, 6 महीने तक 'बिगड़ी दुनिया' में जीता रहा मरीज



मुंबई के 64 वर्षीय एक व्यक्ति को छह महीनों तक ऐसा महसूस होता रहा मानो वह एक पिकासो पेंटिंग के भीतर जी रहा हो, जहां हर चेहरा और वस्तु भद्दी और बिगड़ी हुई दिखाई दे रही थी. इस दर्दनाक स्थिति ने उसके जीवन को भयावह बना दिया था, लेकिन हैरान करने वाली बात यह थी कि 17 डॉक्टरों के बाद भी उसकी बीमारी का सही इलाज नहीं हो सका.
मरीज ने कई तरह की शारीरिक और मानसिक समस्याओं का सामना किया. उसे अच्छी नींद नहीं आ रही थी, उसका मूड बार-बार बदल रहा था और उसे अजीबोगरीब व डरावने खयालों का सामना करना पड़ रहा था. टीओआई की एक रिपोर्ट के अनुसार, पुणे स्थित सह्याद्री अस्पताल में न्यूरोलॉजी के डायरेक्टर डॉ. इचापोरिया ने बताया कि जब वह मेरी क्लिनिक में आया, तो उसकी जांच में बस थोड़ा हाई ब्लड प्रेशर पाया गया और उसके पैरों में हल्की हलचल और कभी-कभी झटके देखे गए. लेकिन जो सबसे विचित्र था, वह था उसका यह कहना कि उसे सब कुछ बिगड़ा और भयानक दिखता है.
असामान्य दृष्टि समस्याओं की वजह को समझने के लिए डॉ. इचापोरिया ने उनसे एक इंसान का चेहरा बनाने को कहा. जो उन्होंने बनाया, वह एक पिकासो पेंटिंग जैसा था- बिगड़ी और असामान्य. इससे उसकी मानसिक स्थिति का थोड़ा बहुत अंदाजा लग गया. इसके बाद उनपर कई तरह के टेस्ट हुए, जिसमें एक दुर्लभ प्रकार की ऑटोइम्यून बीमारी का पता चला. टेस्ट में CASPR2 एंटीबॉडी की उपस्थिति मिली, जो ऑटोइम्यून इंसेफेलाइटिस का कारण थी.
क्या है ये दुर्लभ बीमारी?इस दुर्लभ बीमारी के कारण उसकी नर्वस सिस्टम पर हमला हो रहा था, जिससे उसकी दृष्टि और दिमाग में दिक्कत उत्पन्न हो रही थी. हमने तत्काल इलाज शुरू किया, जिसमें इम्यूनोग्लोबुलिन और स्टेरॉयड दिए गए. कुछ महीनों में उसकी स्थिति बेहतर हो गई, लेकिन बाद में नए लक्षण सामने आए. आखिरकार सही इलाज और रितुक्सिमैब के साथ दूसरी बार इलाज के बाद उसकी स्थिति स्थिर हो गई. इस कठिन यात्रा ने इस बात को साबित किया कि ऑटोइम्यून बीमारियों की पहचान में सावधानी और आधुनिक तकनीकों का इस्तेमाल कितना महत्वपूर्ण है.



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