Early identification can prevent risks in the development of the child know how these modern techniques work | जल्दी पहचान से बच सकते हैं शिशु के विकास में जोखिम, जानिए कैसे काम करती हैं ये आधुनिक तकनीकें

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Early identification can prevent risks in the development of the child know how these modern techniques work | जल्दी पहचान से बच सकते हैं शिशु के विकास में जोखिम, जानिए कैसे काम करती हैं ये आधुनिक तकनीकें



शिशु का विकास एक कॉम्प्लिकेटेड और सेंसिटिव प्रक्रिया है, जिसे मां की सेहत, जेनेटिक फैक्टर और पर्यावरणीय तत्व प्रभावित करते हैं. गर्भावस्था के दौरान किसी भी प्रकार की गड़बड़ी जन्म दोष, विकास संबंधी असमानताओं या लंबे समय तक स्वास्थ्य समस्याओं का कारण बन सकती है. ऐसे में गर्भ में पल रहे शिशु की समस्याओं की जल्दी पहचान (Early Diagnosis) करना बेहद जरूरी हो जाता है ताकि समय रहते आवश्यक उपचार और देखभाल की जा सके.
जल्दी पहचान न केवल शिशु की सेहत बल्कि मां के स्वास्थ्य के लिए भी अहम है. इससे संभावित जटिलताओं की पहचान कर समय पर इलाज किया जा सकता है. यह प्रक्रिया गर्भ में विकास संबंधी समस्याएं, जेनेटिक डिसऑर्डर और मां की स्वास्थ्य स्थिति को मैनेज करने में मदद मिलती है, जिससे शिशु की बेहतर देखभाल संभव होती है.
जल्दी पहचान के तरीकेमेट्रोपोलिस हेल्थकेयर लिमिटेड में मेडिकल जेनेटिक्स के प्रभारी चिकित्सक डॉ. तलत खान ने बताया कि प्रेग्नेंसी के दौरान शिशु के विकास में किसी भी समस्या की पहचान के लिए कई स्क्रीनिंग और डायग्नोस्टिक तकनीकें अपनाई जाती हैं. प्रमुख तरीके निम्नलिखित हैं:
1. अल्ट्रासाउंडयह सबसे सामान्य और गैर-आक्रामक (Non-invasive) तरीका है, जिससे शिशु के विकास और संरचना की जांच की जाती है. इससे न्यूरल ट्यूब डिफेक्ट, हृदय संबंधी विकार और हड्डियों की असमानता जैसी समस्याओं की पहचान संभव होती है.
2. जेनेटिक स्क्रीनिंग और टेस्टिंगनॉन-इनवेसिव प्रीनेटल टेस्टिंग (NIPT) जैसे परीक्षण डाउन सिंड्रोम, एडवर्ड्स सिंड्रोम और पटाऊ सिंड्रोम जैसे क्रोमोसोमल असामान्यताओं की पहचान में मदद करते हैं. अधिक सटीक परिणाम के लिए कोरियोनिक विल्लस सैंपलिंग (CVS) और एम्नियोसेंटेसिस किए जाते हैं.
3. मैटरनल ब्लड टेस्टप्रेग्नेंसी के दौरान किए गए विशेष ब्लड टेस्ट से भी शिशु के स्वास्थ्य जोखिम की पहचान की जा सकती है. क्वाड स्क्रीन और फर्स्ट ट्राइमेस्टर स्क्रीन हार्मोन और प्रोटीन लेवल की जांच कर संभावित समस्याओं की ओर इशारा करते हैं.
4. फीटल एमआरआई और इकोकार्डियोग्राफीयदि अधिक स्पष्ट इमेजिंग की आवश्यकता हो, तो फीटल एमआरआई और इकोकार्डियोग्राफी से शिशु के दिमाग और दिल की समस्याओं की पहचान की जाती है.
5. संक्रामक रोगों की स्क्रीनिंगमातृ संक्रमण जैसे टॉक्सोप्लाज्मोसिस, रुबेला, साइटोमेगालोवायरस (CMV) और सिफलिस शिशु के विकास पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकते हैं. गर्भावस्था में इन संक्रमणों की जांच से समय पर उपचार संभव होता है.
मां की सेहत की भूमिकामां की सेहत सीधे शिशु के विकास को प्रभावित करती है. डायबिटीज, हाई ब्लड प्रेशर, थायरॉयड और मोटापा जैसी समस्याएं शिशु के विकास में बाधा डाल सकती हैं. बैलेंस डाइट, फोलिक एसिड, आयरन और ओमेगा-3 फैटी एसिड जैसे पोषक तत्वों का सेवन शिशु के दिमाग और संपूर्ण विकास में मदद करता है.
Disclaimer: प्रिय पाठक, हमारी यह खबर पढ़ने के लिए शुक्रिया. यह खबर आपको केवल जागरूक करने के मकसद से लिखी गई है. हमने इसको लिखने में सामान्य जानकारियों की मदद ली है. आप कहीं भी कुछ भी अपनी सेहत से जुड़ा पढ़ें तो उसे अपनाने से पहले डॉक्टर की सलाह जरूर लें.



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