During the rebellion of 1857 in Bulandshahr freedom fighters were hanged at this intersection – News18 हिंदी

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प्रशांत कुमार/ बुलंदशहर: बुलंदशहर में 1857 के गदर में आजादी के दीवानों को अंग्रेजी हुकूमत पकड़-पकड़ कर मौत के घाट उतार रही थी. ऐसे में बुलंदशहर और अलीगढ़ के वो लोग जो आजादी के आंदोलन में किसी प्रकार शामिल हुए थे,उनका अंग्रेजी हुकूमत ने कत्ल कर दिया था.जो लोग अंग्रेजी हुकूमत और देश की आजादी के खिलाफ आवाज उठाते थे उन्हें गिरफ्तार कर आम के बगीचे में आम के पेड़ पर लटकाकर उन्हें फांसी दे दी जाती थी.ऐसे सैकड़ों आजादी के दीवाने क्रांतिकारियों का यहां कत्ल कर दिया गया.इसी कारण आने वाले वक्त में यह जगह ‘कत्ले आम चौक’ के नाम से जानी-जाने लगी और अब काला आम चौराहा के नाम से जानी जाती है.

आज भी ‘काला आम चौराहा’ का असली नाम अधिकांश लोग व युवाओं को शायद मालूम न हो.’काला आम चौराहे’ का असली व पुराना नाम ‘कत्ले आम चौक’ है.’कत्ले आम चौक’ का नाम बदलते-बदलते अब ‘काला आम चौराहा’ हो गया और इसी नाम से लोगों की जुबान पर यह नाम चढ़ गया.यहां पहले आम का विशाल बगीचा था इसी आम के पेड़ों पर आजादी के मतवालों को लटका कर मुगल काल और अंग्रेजी हुकूमत फांसी दी जाती थी.कभी-कभी अंग्रेजी फौज क्रांतिकारियों को उल्टा लटकाकर नीचे लकड़ी डालकर आग जला देते थे.उस समय की कहानी को बताने के लिए अब कोई आम का पेड़ तो नहीं बचा है, लेकिन काला आम पर बना शहीद इस्मारक आज भी लोगों को शहीदों की याद दिलाता है.हालांकि शाहिद इस्मारक में आज भी आम के पेड़ और डहनी की तरह बना दिया है.

कत्ले आम चौक से काला आम चौराहे तक का इतिहासस्वतंत्रता संघर्ष से लेकर आजादी मिलने तक बुलंदशहर ने आजादी की लड़ाई में पूरे दम-खम से हिस्सा लिया था.10 मई 1857 को देश की आजादी की प्रथम जंग गदर शुरू हुई थी. क्रांति का सर्वप्रथम संदेश लेकर अलीगढ़ से बुलंदशहर पंडित नारायण शर्मा 10 मई को आए थे और उन्होंने गुप्त रूप से नवीं पलटन को क्रांति की प्रेरणा दी थी.जिसके बाद बुलंदशहर जिले में प्रथम स्वतंत्रता संग्राम का बिगुल वीर गूजरों ने फूंका.दादरी और सिकंदराबाद के क्षेत्रों के गुर्जरों ने विदेशी शासन के प्रतेक डाक बंगले तथा तारघरों और सरकारी इमारतों को ध्वस्त करना शुरू कर दिया था.सरकारी संस्थाओं को लूटा गया और इन्हें आग लगा दी गई.एक बार नवीं पैदल सेना के सैनिकों ने 46 क्रांतिकारी गूजरों को पकड़ कर जेलों में बंद कर दिया था. इससे क्रांति की आग और भड़क उठी जिसके बाद अंग्रेजी हुकूमत विचलित हो गई.क्रांति का दमन करने के लिए उन्होंने बरेली से मदद मांगी. लेकिन नकारात्मक उत्तर मिला. फिर रामपुर नवाब से मदद मांगी लेकिन उन्होंने भी घुड़सवार नहीं भेजे थे.अंग्रेजी हुकूमत की सिरमूर बटालियन की फौज की दो टुकड़ियां जिनके आने के इंतजार में थीं और वो भी न आ सकीं.

क्रांतिकारियों का कत्ल करने लगेबुलंदशहर में अंग्रेज अधिकारियों के लिए चारों तरफ निराशा छाई हुई थी.इसी बीच क्रांतिकारियों ने 21 मई 1857 को अलीगढ़ से बुलंदशहर तक इलाके को अंग्रेजी शासन से मुक्त करा दिया था.हालांकि 25 मई को अंग्रेजों ने फिर से कब्जा कर लिया.इसके बाद आजादी के दीवाने अंग्रेजों के आंखों में खटकने लगे और चुन-चुन कर क्रांतिकारियों का कत्ल करने लगे.वर्ष 1857 से 1947 के दौरान काला आम कत्लगाह बना रहा.इस दौरान हजारों क्रांतिकारी को यहां फांसी दी गई.अब काला आम की सूरत बदल गई है. आजादी के बाद लोगों ने सरेआम कत्ल के गवाह रहे इन पेड़ों को कटवा दिया था, क्योंकि यह पेड़ लोगों को अखरते थे.काला आम चौराहे के बीचोंबीच यहां प्रशासन द्वारा शहीद पार्क बनाया गया था. अब काला आम चौराहा बुलंदशहर का हृदय कहा जाता है.

काला आम चौराहे पर क्या कहते हैं इतिहास के जानकारइतिहास के जानकार सुमन कुमार सिंह राघव बताते हैं कि 1857 में आजादी के इस गदर में भारत माता के वीर सपूतों ने बड़ी यातनाएं व जुल्में सहा था. इसका हिसाब करना मुश्किल है अंग्रेजी हुकूमत ने वीर सपूतों की जान भी ली तो तड़पा-तड़पा कर बर्बरता से कठोर यातना दी जाती थी. उसके बाद उन्हें फांसी पर लटकाया जाता था. कई दिनों तक पेड़ से उनकी लाश लटकी रहती थी. अंग्रेज इस तरह से सामूहिक फांसी देकर लोगों को आतंकित भी करते थे, ताकि देशभक्ति की डगर पर चलने से पहले भारत के लोग सौ बार सोचे.हालांकि अंग्रेजी हुकूमत आज़ादी के मतवालों की दीवानगी को रोकने में बिलकुल नाकाम रही और देश के वीर सपूतों की दीवानगी रंग लाई अंग्रेजी हुकूमत के देश से उखाड़ फेंका और भारत को आजाद करा दिया.
.Tags: Bulandshahr news, Local18FIRST PUBLISHED : January 24, 2024, 12:16 IST



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