लखीमपुर खीरी. दीपावली का त्योहार नजदीक आते ही उल्लुओं की जान पर आफत बन आई है. हर साल दिवाली के मौके पर तंत्र साधना और सिद्धि पाने के लिए उल्लुओं की बलि देने संबंधी अंधविश्वास की वजह से लुप्तप्राय इस पक्षी की जान पर बन आती है. लखीमपुर खीरी के दुधवा टाइगर रिजर्व में उल्लुओं की जान के दुश्मन एक बार फिर सक्रिय हो गए हैं. अवैध शिकारियों द्वारा उल्लू के शिकार के आशंका को लेकर दुधवा टाइगर रिजर्व में रेड अलर्ट घोषित किया गया है. सभी कर्मचारियों की छुट्टियों को निरस्त कर दिया गया है और कर्मचारियों को अलर्ट मोड पर रखा गया है.
लखीमपुर खीरी में इंडो-नेपाल बॉर्डर से सटे हुए दुधवा टाइगर रिजर्व में 12 प्रजातियों के उल्लू पाए जाते हैं. इनमें से कुछ प्रजाति बेहद दुर्लभ हैं. दिवाली के त्योहार के मद्देनजर दुधवा पार्क प्रशासन ने उल्लुओं की जान पर खतरा देखते हुए दुधवा पार्क को अलर्ट मोड पर रखा है. यहां रूटीन गश्त के साथ नाइट पेट्रोलिंग भी की जा रही है. जंगल के जिन इलाकों में वाहन नहीं जा पा रहा है. उन इलाकों में हाथी पर सवार होकर गश्त की जा रही है.
45 लाख रुपये में बिक रहे उल्लूयूं तो उल्लू को माता लक्ष्मी का वाहन माना जाता है, लेकिन कुछ अंधविश्वासी तांत्रिक और अघोरियों का मानना है कि दिवाली के त्योहार की रात में विशेष नक्षत्र पर तंत्र-मंत्र क्रिया के द्वारा अगर उल्लू की बलि दी जाए तो मनोकामना पूर्ण होती है. दावा किया जा रहा है कि इसी अंधविश्वास के चलते दिल्ली, मुंबई समेत बड़े महानगरों में लोग एक उल्लू को 40 से 45 लाख रुपये में तस्करों से चोरी-छिपे खरीद रहे हैं.दुधवा टाइगर रिजर्व के डिप्टी डायरेक्टर टी राजू रंगा का कहना है कि दिवाली के त्यौहार के आसपास हमेशा से दुधवा टाइगर रिजर्व में अलर्ट घोषित किया जाता है. इस बार भी रेड अलर्ट घोषित किया गया है.
जीव हत्या करना पाप है, हिंदू शास्त्र इस पर स्पष्ट हैंलखीमपुर खीरी के दुधवा टाइगर रिजर्व के करीब पलिया नगर में राम जानकी मंदिर के प्रमुख पुजारी सागर लाल का कहना है कि कुछ अनपढ़ लोग और कम बुद्धि के लोगों के पाखंड के चलते लोग तंत्र क्रिया को सिद्ध करने के लिए उल्लू की बलि देते हैं और एक निर्दोष जानवर की हत्या करते हैं. उल्लू पुराणों के अनुसार माता लक्ष्मी का वाहन है. अगर लोग उसे दिवाली के दिन उल्लू को दाना खिलाए और उसकी सेवा करें तो माता लक्ष्मी अपने-आप प्रसन्न हो जाएगी और लोगों को धनवान बना देगी. हत्या करना किसी भी शास्त्र में नहीं लिखा है.
40 दिन की पूजा, फिर उल्लू में जागता है20 सालों से शमशान घाट पर रहकर अघोर तप करने वाले लालाराम अघोरी ने बताया कि दीपावली से 40 दिन पहले से ही उल्लू की पूजा करनी चालू हो जाती है. दीपावली की रात अमावस की रात होती है. उस रात प्रेत आत्माओं की मौजूदगी में उल्लू को जगाया जाता है. उसके बाद उल्लू जीवन की सारी बातें बताता है जो-जो मनोकामना मांगी जाती है उसको कैसे पूरा किया जाएगा. उसके बारे में बताता है और उसके बाद उल्लू अपनी मौत का समय बताता है. जब जगाने वाले की मौत का समय बताने का समय आता है तो उससे पहले उल्लू की बलि दे दी जाती है. उसकी सभी हड्डी मांस का प्रयोग किया जाता है. हर हड्डी और हर मांस का अलग-अलग प्रयोग होता है. धनवान बनने के लिए अलग हड्डी होती है. वशीकरण के लिए अलग मांस का टुकड़ा होता है. मनचाही शादी के लिए भी अलग हिस्से का प्रयोग किया जाता है. हम लगभग 20 साल से इस प्रेत आत्माओं और उल्लू के ऊपर साधना कर रहे हैं. बहुत से लोग हमारे पास आते हैं जिनकी मनोकामना पूर्ण होती है.
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