Chitrakoot News : खूंखार डकैत ददुआ के खिलाफ खोला था मोर्चा, जानिए पाठा की शेरनी की कहानी

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Chitrakoot News : खूंखार डकैत ददुआ के खिलाफ खोला था मोर्चा, जानिए पाठा की शेरनी की कहानी



रिपोर्ट : अखिलेश सोनकर

चित्रकूट .चैत्र मास के नवरात्रि के दिन चल रहे हैं ऐसे में 9 दिनों तक देवी मां के 9 स्वरूपों की पूजा-अर्चना की जा रही है. जिसको लेकर सरकार भी नवरात्रि को नारी शक्ति के रूप में मना रही है. आज हम आपको एक ऐसी नारी के बारे में बताने जा रहे हैं जो चित्रकूट के पाठा क्षेत्र में रहने वाले लाखों लोगों के लिए किसी देवी से कम नहीं है. हम बात कर रहे हैं रामलली की जिसने बुंदेलखंड के सबसे खूंखार इनामी डकैत ददुआ और उसके 12 डाकुंओं को अकेले ही खदेड़ दिया था.

हथियारों से लैस डकैतों से लोहा लेने वाली रामलली को उत्तर प्रदेश सरकार ने “पाठा की शेरनी ” की उपाधि दी है. उसे सम्मान के तौर पर एक राइफल भी दी गई है. महिलाओं के खिलाफ आवाज उठाने वालों के विरोध में उनकी आवाज को दबाने के लिए रामलली आज भी बंदूक उठाकर निकल पड़ती है. वह 66 साल की हो चुकी है, लेकिन बदन में आज भी वही फुर्ती बरकरार है.

एक महिला कैसे बनी ‘पाठा की शेरनी’शाम का वक्त था. रामलली चूल्हे पर खाना बना रही थीं. तभी लड़का घबराया हुआ रामलली से लिपटकर रोने लगा. रामलली बोली- अरे क्या हुआ? रो क्यूं रहा है. लड़का बोला- मम्मी मुझे बचा लो. इतना कहकर वह जोर-जोर से रोने लगा. रामलली ने उसे पीने के लिए पानी दिया. लड़के ने चुप होकर पूरी कहानी कह डाली. अपनी बंदूक को साफ करते हुए रामलली कहती है, ‘लड़के ने रोते हुए जब मम्मी कहा तो मुझे दया आ गई. उसकी हालत देख मैंने ठान लिया कि चाहे कुछ भी हो जाए मैं उसे डाकुओं को नहीं सौंपूंगी’. रात का समय था. 12 से 15 डाकुओं ने पूरे गांव को घेर लिया था. डकैतों एक-एक घर की तलाशी शुरू की. वह लोगों को धमका रहे थे कि अगर लड़के को लौटाया नहीं तो वो पूरे गांव में आग लगा देंगे. इस बीच मैंने लड़के को रसोई में छिपाकर आस-पास की महिलाओं को घर में इकट्ठा कर लिया. हम सबके हाथों में एक-एक हसिया था. तभी डाकुओं ने मेरे घर पर धावा बोल दिया. मेरे सामने ददुआ के आदमी बदूंक ताने खड़े थे. डकैत घर में घुसने लगे रामलली और महिलाएं हसिया उठाकर चिल्लाने लगीं. डकैत थोड़ा पीछे हटें तो महिलाओं ने पत्थर चलाना शुरू कर दिया. औरतों के इस जमघट को देख ददुआ गैंग वापस बीहड़ में भाग गए

डकैतों ने रामलली के पति को किया किडनैपलड़का हाथ नहीं लगा तो डकैतों को खाली हाथ लौटना पड़ा. इस बात से ददुआ आगबबूला हो गया था. इसी बीच रामलली ने पति राम सुमेर और गांववालों की मदद से पूरी घटना की खबर मानिकपुर थाने को दी. इसके साथ-साथ लापता लड़के को भी पुलिस को सौंप दिया. ये बात सुनकर ददुआ भड़क गया. पारा इनता बढ़ गया कि ददुआ ने दिन-दहाड़े रामलली के पति का अपहरण कर लिया. राम सुमेर अब ददुआ के कब्जे में था. ये बात जानते हुए भी रामलली घबराई नहीं. उसे ददुआ के ठिकाना का पता मालूम था. रामलली ने पुलिस तक इस बात की खबर पहुंचा दी. इसके बाद पुलिस ने पहाड़ियों पर कांबिग करते हुए रामलली के पति को छुड़वा लिया.

ददुआ के खिलाफ खोला था मोर्चाराम सुमेर अपनी पत्नी रामलली की बहादुरी पर कहते है कि “उस रात को आज भी याद करता हूं , तो शरीर के रोएं खड़े हो जाते हैं. उस दिन रामलली की देखकर मेरी भी हिम्मत बढ़ गई थी. उस जमाने में ददुआ के सामने किसी की बोलने की हिम्मत नहीं थी. हमने तो उसके खिलाफ मोर्चा खोल दिया था. रामलली की वजह से आज हरिजनपुर के 5 किलोमीटर क्षेत्र में बसे गांवों में लोग डाकुओं के नाम से डरते नहीं हैं. लड़कियां बेखौफ स्कूल जाती हैं.

सम्मान में राजभवन में बजी तालियां, मिली लाइसेंसी बंदूकइन 2 घटनाओं की वजह से रामलली की चर्चा पूरे यूपी में होने लगी. उस वक्त अखबारों के पहले पन्ने पर उनका नाम फोटो सहित छापा गया. 6 सितंबर 2001 को चित्रकूट के डीएम रहे जगन्नाथ ने रामलली को 1 लाइसेंसी बंदूक देकर सम्मानित किया. जिला प्रशासन ने रामलली के साथ हंसिया उठाने वाली गांव की 8 और महिलाओं को भी बंदूकें दी. इन्हीं असलहों के दम पर रामलली ने कई बार ददुआ गैंग से आमना-सामना किया. रामलली की बहादुरी के लिए उस वक्त के राज्यपाल विष्णुकान्त शास्त्री ने 8 मार्च 2002 को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर उन्हें राजभवन बुलाया। उन्होंने रामलली को सम्मानित करते हुए “पाठा की शेरनी” के नाम से बुलाया, तो तालियों की गड़गड़ाहट से पूरा राजभवन गूंज उठा.

100 से ज्यादा महिलाओं को सिखाया बंदूक चलानाकंधे पर गोलियों से लैस बंदूक लिए रामलली आज 20 साल बाद भी आपको पाठा के जंगलों में घूमती दिख जाएंगी. सरकार से ईनाम के तौर पर जो बंदूकें उन्हें मिलीं. आज रामलली उन्हें चलाने की ट्रेनिंग क्षेत्र की लड़कियों को दे रही हैं. रामलली कहती हैं, 2001 में मानिकपुर की सर्कल ऑफिसर रहीं लक्ष्मी सिंह मैडम ने हमें बंदूक चलानी सिखाई थी. फिर जिस दिन से मैंने बंदूक उठाई, उस दिन के बाद से कभी साड़ी नहीं पहनी. गांव की महिलाओं को किसी के सामने झुकना न पड़े. दिन हो या रात वो बेखौफ बाहर जाएं. इसके लिए मैंने गांव के आसपास की लड़कियों को बंदूक चलाने की ट्रेनिंग दी है. बीते 10 साल में मैंने यहां की 100 से ज्यादा महिलाओं को बंदूक लोड करने के बाद उसे चलाना सिखाया है.
ब्रेकिंग न्यूज़ हिंदी में सबसे पहले पढ़ें News18 हिंदी| आज की ताजा खबर, लाइव न्यूज अपडेट, पढ़ें सबसे विश्वसनीय हिंदी न्यूज़ वेबसाइट News18 हिंदी|Tags: Chitrakoot News, Uttar Pradesh News HindiFIRST PUBLISHED : March 26, 2023, 14:31 IST



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