How Cancer hijacks your brain: कैंसर एक बेहद खतरनाक बीमारी है जो कई बार मरीज की जान निकाल लेती है, या फिर जिंदगीभर के लिए मजबूर बना सकती है. कैंसर के आखिरी स्टेडज का एक क्रूर नतीजा ये है कि कई मरीज गहरे गम में डूब जाते हैं, क्योंकि वो उन एक्टिविटीज में भी दिलचस्पी खो देते हैं जिन्हें वो कभी बेहद पसंद करते थे.
कैंसर के नुकसानये लक्षण कैचेक्सिया (Cachexia) नामक सिंड्रोम का हिस्सा है, जो लास्ट स्टेज के तकरीबन 80 फीसदी कैंसर के मरीजों को अफेक्ट करता है. इससे मसल्स बड़े पैमाने पर खत्म होने लगते हैं और वजन घटने लगता है, जिससे प्रोपर न्यूट्रिशन के बावजूद मरीज की हड्डियां पतली हो जाती हैं.
मोटिवेशन पर बुरा असरहौंसला पस्त होने से न सिर्फ मरीजों की तकलीफ बढ़ती है, बल्कि उन्हें परिवार और दोस्तों से भी अलग कर देती है. चूंकि, पेशेंट को मुश्किल ट्रीटमेंट को अपनाने में कड़ा संघर्ष करना पड़ता है इसलिए इससे परिवारों पर भी दबाव पड़ता है और इलाज जटिल हो जाता है.
जिंदगी की दिलचस्पी कमडॉक्टर आमतौर पर ये मानते हैं कि जब कैंसर के लास्ट स्टेज के मरीज को जिंदगी से दिलचस्पी खत्म हो जाती, तो ये शारीरिक गिरावट के प्रति एक साइकोलॉजिकल रिस्पॉन्स होती है. लेकिन क्या होगा अगर उदासी सिर्फ फिजिकल डिटॉरिएशन का रिजल्ट न होकर बीमारी का ही एक अहम हिस्सा हो?
क्या कहती है रिसर्च?हाल में ही छपी हमारी रिसर्च में, मेरे सहकर्मियों और मैंने एक खास बात की खोज की है : कैंसर सिर्फ शरीर को ही वेस्ट नहीं करता है बल्कि ये ब्रेन के एक खास हिस्से को भी अपने कंट्रोल में ले लेता है, जो मोटिवेशन को कंट्रोल करता है.
‘साइंस’ मैग्जीन में छपी हमारे फाइंडिंग्स, दशकों पुरानी मान्यताओं को चुनौती देते हैं और सुझाव देते हैं कि उस चीज को फिर से हासिल करना मुमकिन हो सकता है जिसे खोना कई कैंसर रोगियों के लिए सबसे विनाशकारी बात है-जीवन के प्रति उनकी इच्छाशक्ति.
शारीरिक गिरावट से पैदा हुए थकान को दूर करना
कैंसर से पैदा हुई कमजोरी में उदासी की पहेली को सुलझाने के लिए, हमें शरीर में सूजन के सटीक रास्ते का पता लगाने की जरूरत थी, और बीमारी के बढ़ने के दौरान जिंदा ब्रेन के अंदर झांकने की जरूरत थी. जो कि लोगों में तकरीबन नामुमकिन है. हालांकि, न्यूरोसाइंटिस्ट के पास एडवांस तकनीक है जो चूहों में इसे मुमकिन बनाती है.
चूहे की एक्टिविटीज में बदलावमॉडर्न न्यूरोसाइंस हमें ऐसे पावरफुल टूल्स से लैस करता है, जिनसे हम ये पता लगा सकते हैं कि बीमारी चूहों में ब्रेन की एक्टिविटीज को कैसे बदलती है. साइंटिस्ट्स सेल्युलर लेवल पर पूरे ब्रेन को मैप कर सकते हैं, बिहेवियर के दौरान न्यूरल एक्टिविटी पर नजर रख सकते हैं, और न्यूरॉन्स को सटीकता से ऑन या ऑफ कर सकते हैं. हमने कैंसर के माइस मॉडल में इन न्यूरोसाइंस टूल्स का यूज ब्रेन और मोटिवेशन पर बीमारी के असर को स्टडी करने के लिए किया.
सूजन का बढ़नाहमने ब्रेन के एक छोटे से हिस्से की पहचान की जिसे एरिया पोस्ट्रेमा कहते हैं जो मस्तिष्क के सूजन डिटेक्टर के तौर पर काम करता है. जैसे-जैसे ट्यूमर बढ़ता है, ये ब्लडस्ट्रीम में सूजन को बढ़ावा देने वाले मॉलीक्युल साइटोकाइन्स को छोड़ता है. पोस्ट्रेमा एरिया में टिपिकल ब्रेन बैरियर की कम होती है जो टॉक्सिंस, पैथोजेंस और दूसरे मॉलिक्यूल्स को शरीर से बाहर रखता है, जिससे ये सर्कुलेटिंग इंफ्लेमेंट्री सिग्नल का सीधे नमूना ले पाता है.
मोटिवेशन में कमीजब पोस्ट्रेमा एरिया में सूजन वाले मॉलूक्यूल में इजाफे का पता चलता है, तो ये ब्रेन के कई इलाकों में न्यूरल कैसकेड को ट्रिगर कर देता है, जो आखिरकार ब्रेन के मोटिवेशन सेंटर – न्यूक्लियस एक्म्बेंस में डोपामाइन के सिक्रिशन को दबा देता है.
कैंसर बढ़ने पर चूहों ने क्या किया?हमने कोशिश को मापने के लिए व्यावहारिक अर्थशास्त्र के सिद्धांतों पर आधारित दो क्वांटिटेटिव टेस्ट का यूज करते हुए इस बदलाव को डायरेक्ट ऑब्जर्व किया. पहली कोशिश में चूहों को आसानी से भोजन उपलब्ध हुआ और दूसरे प्रयोग में उन्हें थोड़ा कठिन रास्ता अपनाना पड़ा. जैसे-जैसे कैंसर बढ़ता गया, चूहे आसानी से उपलब्ध होने वाले भोजन की तलाश में लगे रहे, लेकिन ज्यादा कोशिश की जरूरत वाले कामों को जल्दी ही छोड़ दिया.
डोपामाइन में गिरावटइस बीच, हमने देखा कि डोपामाइन का लेवल रियल टाइम में गिर रहा था, जो चूहों में खाने की तलाश के लिए काम करने की घटती ख्वाहिश को दिखाता था. हमारी फाइंडिंग्स से पता चलता है कि कैंसर सिर्फ ब्रेन को ही डैमेज नहीं करता है, ये टारगेटेड इंफ्लेमेट्री सिग्नल्स भेजता है, जिन्हें ब्रेन पहचान लेता है. इसके बाद ब्रेन मोटिवेशन को कम करने के लिए डोपामाइन के लेवल को तेजी से कम कर देता है. शारीरिक और मनोवैज्ञानिक लक्षणों के बीच की सीमा एक इमेजनरी लाइन है.
बीमारी में उदासी पर पुनर्विचारहमारी खोज का कैंसर से कहीं ज्यादा दूर तक असर करता है. कैंसर में मोटिवेशन की कमी को बढ़ावा देने वाला इन्फ्लेमेटरी मॉलिक्यूल कई दूसरे कंडीशंस में भी शामिल है. रुमेटॉइड आर्थराइटिस जैसे ऑटोइम्यून डिसऑर्डर से लेकर क्रॉनिक इंफेक्श और डिप्रेशन तक. यही मस्तिष्क तंत्र संभवतः उस कमजोर करने वाली उदासी को एक्सप्लेन करता है जो अलग-अलग लॉन्ग टर्म डिजीज से पीड़ित लाखों लोग एक्सपीरिएंस करते हैं.
(सोर्स-द कन्वरसेशन और भाषा)