भोपाल गैस त्रासदी को हुए 40 साल पूरे हो गए, लेकिन उस भयानक रात का जहरीला असर आज भी पीड़ितों की जिंदगी को बर्बाद कर रहा है. एक रिपोर्ट के अनुसार, गैस से प्रभावित लोगों में बीमारियां उन लोगों की तुलना में कहीं ज्यादा पाई जा रही हैं, जो उस समय इसके संपर्क में नहीं आए थे. यह डेटा साम्भवना ट्रस्ट क्लीनिक ने पिछले 16 सालों में 16,305 गैस पीड़ित और 8,106 अप्रभावित मरीजों के आंकड़ों के आधार पर जारी किया है.
साम्भवना ट्रस्ट की डॉक्टर उषा आर्या ने बताया कि गैस से प्रभावित लोगों में सांस संबंधी बीमारियां 1.7 से 2 गुना ज्यादा पाई गई हैं. मेंटल हेल्थ से जुड़ी समस्याएं (जैसे डिप्रेशन) गैस पीड़ितों में 2.7 गुना ज्यादा देखी गई हैं. इसके अलावा, डायबिटीज और हाइपरटेंशन जैसे बीमारियां (जो पहले गैस त्रासदी से नहीं जुड़े थे) गैस पीड़ितों में तेजी से बढ़े हैं. डायबिटीज के मामले गैस प्रभावित मरीजों में पांच गुना ज्यादा और हाइपरटेंशन के मामले तीन गुना ज्यादा पाए गए हैं.
महिलाओं और गाइनेकोलॉजिकल समस्याएंडॉ. सोनाली मित्तल ने बताया कि गैस से प्रभावित महिलाओं में हार्मोनल समस्याएं (जैसे समय से पहले मेनोपॉज) 2.6 गुना ज्यादा पाई गई हैं. इसके अलावा, किडनी से जुड़ी समस्याएं और कार्डियक डिजीज जैसे हार्ट अटैक, प्रभावित लोगों में चार से सात गुना अधिक पाए गए.
न्यूरोलॉजिकल समस्याएं भी बढ़ींडॉ. पीके आसवती के अनुसार, हेमीप्लेजिया और न्यूरल्जिया जैसी न्यूरोलॉजिकल समस्याएं चार गुना और न्यूरोपैथी सात गुना ज्यादा पाई गई हैं. इसके अलावा, हाइपोथायरायडिज्म जैसी मेटाबॉलिक समस्याएं भी बढ़ी हैं.
विशेष स्वास्थ्य सेवाओं की जरूरतसाम्भवना ट्रस्ट के संस्थापक सतीनाथ सारंगी का कहना है कि डेटा स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि 40 साल बाद भी गैस पीड़ितों में गंभीर और नई बीमारियों का सिलसिला थमा नहीं है. यह स्थिति इन पीड़ितों के लिए विशेष और लॉन्ग-टर्म हेल्थ सेवाओं की सख्त आवश्यकता को रेखांकित करती है. भोपाल गैस त्रासदी का प्रभाव न केवल इतिहास का काला अध्याय है, बल्कि आज भी हजारों लोगों के लिए जीती-जागती त्रासदी बना हुआ है. आपको बता दें कि 1984 में 2-3 दिसंबर की मध्यरात्रि में यूनियन कार्बाइड कारखाने से अत्यधिक जहरीली गैस मिथाइल आइसोसाइनेट (एमआईसी) का रिसाव हुआ था, जिससे 5,479 लोग मारे गए और पांच लाख से अधिक लोग प्रभावित हुए.
(इनपुट- न्यूज़ एजेंसी PTI)