भगवान बुद्ध के समय से है काला नमक चावल का इतिहास, गोरखपुर को भी मिला है GI टैग

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भगवान बुद्ध के समय से है काला नमक चावल का इतिहास, गोरखपुर को भी मिला है GI टैग



अभिषेक कुमार सिंह

गोरखपुर. आजकल दुनिया जैविक खेती पर जोर दे रही है. इसी में से एक है काला नमक चावल. यह चावल एक पौष्टिक अनाज है. साथ ही इस चावल को कई बीमारियों में लाभकारी माना जाता है. उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में बीते कुछ समय से काला नमक चावल काफी चर्चा में है. काला नमक चावल का इतिहास 600 ईसा पूर्व या बुद्ध काल से है. प्राचीन काल में यह चावल मूल रूप से उत्तर प्रदेश और नेपाल के तराई क्षेत्र में उगाया जाता था. काला नमक चावल में इतनी सुगंध है कि अगर यह किसी के घर में पके तो इसकी खुशबू पूरे मोहल्ले में पहुंच जाती है.

काला नमक चावल को भगवान बुद्ध के महाप्रसाद के रूप में जाना जाता है. काले रंग की भूसी के चलते इसका नाम ‘काला नमक’ चावल पड़ गया. इसके महत्त्व का अंदाजा इसी से लग जाता है कि यह चावल सीधे भगवान बुद्ध से जुड़ा है.

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काला नमक चावल को विश्व स्तर पर पहचान दिलाने के लिए सबसे ज्यादा काम करने वाले अंतरराष्ट्रीय कृषि वैज्ञानिक प्रो. रामचेत चौधरी ने न्यूज़ 18 लोकल से बातचीत की. उन्होंने महात्मा बुद्ध से इस चावल के जुड़ाव की कहानी बताते हुए कहा कि गौतम बुद्ध ज्ञान प्राप्त के बाद बोधगया से अपनी राजधानी कपिलवस्तु लौट रहे थे. रास्ते में बजहा नामक जगह पड़ती है. तो वो यहां रुके थे. जब अगले दिन महात्मा बुद्ध गांव से जाने लगे तो गांववालों ने कहा कि आप हम लोगों को आशीर्वाद दीजिए. तब भगवान बुद्ध ने अपनी झोली से मुट्ठी भर चावल निकाल कर उनको दिया और कहा इसे आप अपने खेतों में लगाइए और इसकी खुशबू आपको हमेशा हमारी याद दिलाती रहेगी. तब से यह चावल भगवान बुद्ध के महा प्रसाद के रूप में जाना जाता है.

चावल की खुशबू कई देशों तक पहुंची

समान जलवायु वाले 11 जनपदों गोरखपुर, देवरिया, कुशीनगर, महराजगंज, सिद्धार्थनगर, संतकबीरनगर, बस्ती, बहराइच, बलरामपुर, गोंडा और श्रावस्ती को काला नमक चावल के लिए जीआई टैग मिला है. इस चावल का इतिहास लगभग 2,700 साल पुराना है. सिद्धार्थनगर के बजहा गांव में यह गौतम बुद्ध के जमाने से उगाया जा रहा है. इसका जिक्र चीनी यात्री ह्वेनसांग के यात्रा वृतांत में भी मिलता है. प्रो. चौधरी बताते हैं कि गौतम बुद्ध से जुड़ाव की वजह से इसकी खुशबू बौद्ध धर्म के अनुयायी देशों जापान, म्यांमार, श्रीलंका, थाइलैंड और भूटान सहित बौद्ध धर्म के मानने वाले कई देशों तक पहुंच गई है.ब्रिटेन में होती थी चावल की आपूर्ति

सिद्धार्थनगर जिला मुख्यालय से लगभग 15 किलोमीटर दूर वर्डपुर ब्लॉक काला नमक चावल के पैदावार का गढ़ है. ब्रिटिश काल में वर्डपुर, नौगढ़ व शोहरतगढ़ ब्लॉक में इसकी खेती होती थी. अंग्रेज जमींदार विलियम बर्ड ने वर्डपुर को बसाया था. इस धान के चावल की आपूर्ति ब्रिटेन में होती थी. इस चावल में एक्सपोर्ट की अपार संभावनाएं हैं.
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